प्लास्टिक का आधुनिक जीवन में महत्वपूर्ण योगदान है, लेकिन इसके साथ ही उसके पर्यावरणीय प्रभावों को भी ध्यान में रखना जरूरी है। प्लास्टिक की बहुत सी प्रकारें होती हैं, जिनमें से कुछ को रीसायकल किया जा सकता है और कुछ की पुन:प्रयोग की कोई संभावना नहीं होती।
प्लास्टिक के उपयोग से होने वाले पर्यावरणीय नुकसानों को समझने के लिए हमें उसके उत्पादन, उपयोग, और विघटन की प्रक्रिया को गहराई से अध्ययन करना चाहिए। इसके साथ ही, हमें प्लास्टिक उत्पादों की वैज्ञानिक और तकनीकी पहलियों का समाधान ढूंढने की भी जरूरत है।
इसके अतिरिक्त, सार्वजनिक जागरूकता और शिक्षा के माध्यम से लोगों को प्लास्टिक के संपर्क में सतर्क और सावधान रहने की जरूरत है। साथ ही, प्रभावी कानून और नियमों की उपयोगिता भी बढ़ानी चाहिए ताकि प्लास्टिक के अत्यधिक उपयोग को नियंत्रित किया जा सके और पर्यावरण को हानि से बचाया जा सके।
इस प्रकार, हमें प्लास्टिक के उपयोग की नियति से उत्पन्न होने वाली समस्याओं को समझने के साथ ही इसके निर्माण, उपयोग, और नष्ट होने की प्रक्रिया को सुधारने के लिए उचित कदम उठाने की जरूरत है।
यह है स्थिति
दुनिया भर में प्लास्टिक के अत्यधिक उपयोग की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। अक्सर उपयोग किया जाने वाला प्लास्टिक बहुमूल्य उत्पाद के रूप में हमारे जीवन में समाहित होता है, लेकिन इसका बहुत कम हिस्सा ही रीसायकल किया जाता है। सुखबीर संधू, दक्षिण ऑस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय के एक एसोसिएट प्रोफेसर, और उनकी टीम इस मुद्दे पर काम कर रही है।
संधू के अनुसार, कुछ प्लास्टिक को आसानी से रीसायकल किया जा सकता है, जो उन्हें अन्य उत्पादों में पुनर्निर्मित करने में मदद करता है। लेकिन कुछ प्लास्टिक का रीसायकल करना कठिन होता है, क्योंकि उनमें ऐसे तत्व होते हैं जो प्रक्रिया को अधिक जटिल बना देते हैं। इससे नई समस्याएं उत्पन्न होती हैं, जैसे रीसायकल की गई सामग्री को खरीदने की अभाविता।
इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए विशेषज्ञों की आवश्यकता है, जो प्लास्टिक के पुन:प्रयोग के लिए नए और समृद्ध तरीके खोज सकें। साथ ही, समाज को भी इस मुद्दे के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है ताकि हम साथ मिलकर एक स्वच्छ और संतुलित पर्यावरण की ओर अग्रसर हो सकें।
प्लास्टिक प्राकृतिक नहीं है
प्लास्टिक का एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि यह प्राकृतिक नहीं होता। सुखबीर संधू के अनुसार, प्लास्टिक कई प्रकार का होता है, और इसमें विभिन्न उपयोगों के लिए अलग-अलग गुण होते हैं। कई बार हमें लगता है कि एक प्रकार का प्लास्टिक दूसरे से भिन्न क्यों होता है। उदाहरण के लिए, शीतल पेय की बोतलें बनाने के लिए उपयोग किया जाने वाला प्लास्टिक दही के टब या प्लास्टिक बैग से अलग क्यों लगता है?
प्लास्टिक को सात मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है, लेकिन यह और भी विविध है। प्लास्टिक उत्पादन में अलग-अलग मिश्रणों का उपयोग किया जाता है, और कई नए और असामान्य प्रकार का प्लास्टिक विकसित किया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि प्लास्टिक “सिंथेटिक” होता है और इसमें प्राकृतिक धातुओं का उपयोग नहीं होता। इसलिए, हमें प्लास्टिक के प्रयोग को समझने के साथ-साथ उसके पर्यावरणीय प्रभावों को भी ध्यान में रखना जरूरी है।
रीसायकल करना है मुश्किल
प्लास्टिक की रीसायकलिंग कार्य अक्सर मुश्किल साबित होती है। सुखबीर संधू बताते हैं कि प्लास्टिक का निर्माण विभिन्न प्रकार के पॉलिमर्स के मिलने से होता है। पॉलिमर शब्द का अर्थ है ‘कई’ और ‘भाग’, जिससे उन्हें लंबी श्रृंखला में जोड़ा जाता है। कुछ प्लास्टिक प्रकारों को रीसायकल करना आसान होता है क्योंकि उन्हें पिघलाया जा सकता है और उन्हें नए उत्पादों में पुनः उपयोगी बनाया जा सकता है।
प्रमुखतः सात प्रकार के प्लास्टिक होते हैं, जिनमें से पहला प्रकार, “पॉलीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट” (PET), जो कि शीतल पेय की बोतलों के लिए प्रयोग होता है। दूसरे प्रकार, “उच्च घनत्व पॉलीथीन” (HDPE), जो कि कुछ दूध की बोतलों के निर्माण में प्रयोग किया जाता है। पांचवा प्रकार, “पॉलीप्रोपाइलीन” (PP), जो कि दही के कंटेनर बनाने के लिए प्रयोग होता है।
अन्य प्लास्टिक जैसे कि टाइप नंबर तीन, “पॉलीविनाइल क्लोराइड”, जो प्लंबिंग पाइप में पाए जाते हैं, और नंबर छह, “पॉलीस्टाइरीन” जैसे स्टायरोफोम, को रीसायकल करना बहुत कठिन होता है। इसका मुख्य कारण यह है कि उनमें बहुत सारी अतिरिक्त सामग्री होती है, जिससे इनका पिघलना और रीसायकल मुश्किल हो जाता है। क्योंकि इनमें कई अतिरिक्त सामग्रियां शामिल होती हैं, जैसे कि रंग और आग पकड़ने से बचाने वाले रसायन। ये अतिरिक्त सामग्रियां प्लास्टिक की पुनर्चक्रीकरण प्रक्रिया को कठिन बनाती हैं।
ऐसे हैं हालात
प्लास्टिक की खतरनाकी का बखान, संदू का विश्लेषण गंभीरता से स्पष्ट करता है। उनके अनुसार, दुनिया भर में प्लास्टिक के उपयोग का बढ़ता प्रयास न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक है, बल्कि इससे प्लास्टिक के परिणाम समझना और इसे पुनः उपयोग करने के लिए उत्साही लोगों को खोजना भी कठिन हो रहा है।
प्लास्टिक के साथ कागज के मिश्रण से बने कॉफी कप्सुलों की खासियत, उन्हें रीसायकल करना मुश्किल बना देती है। इस अवस्था में, कम्पोस्टेबल कॉफी कप्सुल का उपयोग एक संभावित समाधान हो सकता है।
सरकारों और व्यवसायिक संगठनों को इस दिशा में कदम बढ़ाने की जरूरत है। प्लास्टिक के पुनर्चक्रण में सहायक होने वाले व्यवसायों को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ, उत्पादों को पर्यावरण के लिए सही तरीके से प्रक्रियात्मक बनाने का भी प्रयास करना होगा।
इस विचार के साथ, संधू की सलाह को मानते हुए, हमें प्लास्टिक की बाधाओं को समझने और इसे समाधान के लिए सक्रिय रूप से काम करने की आवश्यकता है। इसके लिए हमें संवेदनशीलता और क्रियाशीलता के साथ एक साथ काम करना होगा।
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