हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में ओडिशा में प्रचार करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य शीर्ष भाजपा नेताओं ने जगन्नाथ मंदिर के चारों द्वार खोलने और रत्न भंडार की चाबियों की गुमशुदगी के विवाद की तह तक जाने का वादा किया था।
भाजपा ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि वे न्यायमूर्ति रघुवीर दास समिति की 324 पन्नों की रिपोर्ट को सार्वजनिक करेंगे, जो जून 2018 में इस विवाद की जांच के लिए गठित की गई थी। यह रिपोर्ट नवंबर 2018 में नवीन पटनायक सरकार को सौंपी गई थी, लेकिन राज्य सरकार ने इसे सार्वजनिक नहीं किया।
चुनावी वादों की पूर्ति
भाजपा सरकार ने सबसे पहले मंदिर के चारों द्वार खोलने का वादा पूरा किया। अब, मोहान चरण मांझी की नई सरकार को रत्न भंडार की गुमशुदा चाबियों की रिपोर्ट को सार्वजनिक करना चाहिए और इस पूरे विवाद की जांच के लिए एक समिति का गठन करना चाहिए, जैसा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने वादा किया था।
रत्न भंडार के चाबियों की गुमशुदगी का विवाद
1 जून 2018 को पुरी जिला कलेक्टर, जो रत्न भंडार के भीतरी कक्ष की चाबियों के संरक्षक हैं, ने घोषणा की कि चाबियां गायब हो गई हैं। इस घोषणा ने एक बड़ा हंगामा खड़ा कर दिया, जिससे तत्कालीन मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को न्यायिक जांच का आदेश देना पड़ा। इस जांच आयोग, जिसकी अध्यक्षता ओडिशा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रघुवीर दास कर रहे थे, ने अपनी रिपोर्ट नवंबर 2018 में सौंपी।
डुप्लीकेट चाबियों की खोज
13 जून 2018 को पुरी जिला प्रशासन ने अचानक घोषणा की कि भीतरी कक्ष की डुप्लीकेट चाबियां मिल गई हैं। डुप्लीकेट चाबियों की पहले से जानकारी नहीं होने के कारण चोरी और गबन की आशंकाएं बढ़ गईं। राज्य सरकार द्वारा इस विवाद की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया गया, लेकिन आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया।
व्यापारियों की पुनर्वास और मुआवजा
भाजपा सरकार को एक और चुनावी वादा भी पूरा करना चाहिए: ‘श्रीमंदिर परिक्रमा’ परियोजना के तहत बेदखल किए गए व्यापारियों को मुआवजा और पुनर्वास प्रदान करना। 800 करोड़ रुपये की इस परियोजना के कारण सैकड़ों व्यापारियों को बेदखल कर दिया गया और उनकी दुकानों को ध्वस्त कर दिया गया। राज्य सरकार ने व्यापारियों को कोई मुआवजा या पुनर्वास प्रदान नहीं किया, जिससे पुरी में काफी नाराजगी पैदा हुई।
रत्न भंडार का महत्व
रत्न भंडार में देवताओं को अर्पित किए गए सोने और चांदी के आभूषण और वस्तुएं रखी जाती हैं। रत्न भंडार के दो कक्ष हैं – भीतरी कक्ष (भीतर भंडार) और बाहरी कक्ष (बाहरी भंडार)। भीतरी कक्ष में वे आभूषण और वस्तुएं रखी जाती हैं, जो मंदिर की पूजा में कभी उपयोग नहीं होतीं। बाहरी कक्ष में वे आभूषण और वस्तुएं रखी जाती हैं, जो समारोहों और त्योहारों के अवसरों पर उपयोग होती हैं।
निष्कर्ष
नई भाजपा सरकार को चाहिए कि वे इस विवाद को समाप्त करने के लिए न्यायमूर्ति दास समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक करें और एक पारदर्शी और व्यापक ऑडिट कराएं। इसके अलावा, ‘श्रीमंदिर परिक्रमा’ परियोजना के तहत बेदखल किए गए व्यापारियों को मुआवजा और पुनर्वास प्रदान करें।
इससे जनता का विश्वास बहाल होगा और मंदिर प्रशासन में पारदर्शिता आएगी। रत्न भंडार के खजाने का सही मूल्यांकन और उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करना अब समय की मांग है। भाजपा सरकार को अपने चुनावी वादों को निभाते हुए जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करना चाहिए।
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