बांग्लादेश की मोहम्मद युनूस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार ने इस्लामी कट्टरपंथी जमात-ए- इस्लामी पर लगाया गया प्रतिबंध हटा लिया है। जमात के छात्र संगठन पर से भी प्रतिबंध हटा लिया गया है। युनूस सरकार ने कहा है कि इन दोनों संगठनों के विरुद्ध आतंक का कोई भी सबूत नहीं मिला है। जमात का बांग्लादेश के हालिया तख्तापलट में बड़ा हाथ है। इस पर बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अगस्त 2024 में ही पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया था।
बांग्लादेश की मोहम्मद युनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार ने बुधवार को जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश और इसके छात्र संगठन, छात्र शिविर पर से प्रतिबंध हटाने का निर्णय लिया। इस बाबत एक आदेश भी जारी किया गया। इसमें कहा गया है कि बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी और उसके छात्र संगठन इस्लामी छात्र शिविर की आतंकवाद और हिंसा में संलिप्तता का कोई ठोस सबूत नहीं है और सरकार का मानना है कि यह संगठन आतंकवादी गतिविधियों में शामिल नहीं हैं इसलिए इस पर प्रतिबंध हटाया जाता है।
जमात के समर्थन वाले लोग अब सत्ता पर होंगे काबिज
युनुस सरकार ने 1 अगस्त 2024 को हसीना सरकार द्वारा जारी किए गए प्रतिबंध के आदेश को निरस्त कर दिया है। यह प्रतिबंध तत्काल प्रभाव से हटालिया गया है। अब जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश में खुले तौर पर सभाएं कर पाएगी। इसके अलावा छात्र शिविर भी खुले तौर पर चल सकेगी। बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे के बाद यह साफ हो गया था कि अब जमात के समर्थन वाले लोग सत्ता में काबिज होंगे, ऐसे में इन पर से प्रतिबंध हटना तय माना जा रहा था।
जमात पर शेख हसीना सरकार को अस्थिर करने का आरोप
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 1 अगस्त को 2024 को जमात -ए- इस्लामी और इसके छात्र संगठन को आतंकी गतिविधियां करने के कारण प्रतिबंध कर दिया था। हसीना सरकार का कहना था कि जुलाई में शुरू हुए छात्रों के आरक्षण विरोधी आंदोलन की आड़ में जमात ने अपना एजेंडा चलाया है। जमात पर आरोप है कि इसने इस प्रदर्शन के दौर में लगातार हिंसा की और कई जगह पुलिसकर्मियों तक पर हमले किए। शेख हसीना सरकार ने जमात पर सरकार अस्थिर करने का आरोप लगाया था। इसके कुछ दिनों बाद ही शेख हसीना को इस्तीफा भी देना पड़ा। जमात-ए- इस्लामी ने इसके बाद खुले तौर पर प्रेस कांफ्रेस भी की। वर्तमान में जमात के बड़े नेता बांग्लादेश में अहम फैसलों में भी दखल दे रहे हैं। युनुस सरकार में भी जमात की विचारधरा वाले लोगों को शामिल किया गया।
जमात-ए-इस्लामी है कट्टरपंथी संगठन
जमात-ए- इस्लामी बांग्लादेश का एक इस्लामी कट्टरपंथी संगठन है। इसकी जड़ें अविभाजित भारत में थीं। इसकी स्थापना 1941 में भारत में मौलाना मौदूदी ने की थी। भारत के विभाजन के बाद यह पाकिस्तान का जमात-ए-इस्लामी हो गया। यह संगठन बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में पाकिस्तान के साथ था और इसने पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर बंगालियों पर काफी अत्याचार किया था।
जमात के अधिकांश नेताओं ने इसके बाद बांग्लादेश छोड़ दिया था और सऊदी अरब या पाकिस्तान भाग गए थे। हालांकि, जब 1975 में बांग्लादेश में मुजीबुर रहमान की हत्या कर सैन्य शासन लगा दिया गया तो जमात यहां फिर से ज़िंदा हो गई और इस बार बांग्लादेश में एक राजनीतिक शक्ति के रूप में लौटी।
जमात का लक्ष्य मुस्लिमों को कट्टरपंथी इस्लाम की तरफ लाना है। यह सूफीवाद के विरोध में खड़ा हुआ संगठन है। बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान सभी जगह यह संगठन इस्लामी कट्टरपंथ का समर्थक है। यह बांग्लादेश को भी कट्टर इस्लाम की तरफ ले जाना चाहता है।
जमात की राह में शेख हसीना बाधक
शेख हसीना इसकी राह में एक बाधा थीं क्योंकि वह लगातार कट्टरपंथ को कुचलने में आगे थी। हसीना सरकार में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर भी कदम बढ़ाए गए थे जमात बांग्लादेश की विपक्षी पार्टी बीएनपी के साथ मिलकर शेख हसीना के खिलाफ चुनाव भी लड़ती रही है।
जमात का लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास नहीं
जमात का राजनीतिक पार्टी के तौर पर रजिस्ट्रेशन बांग्लादेश के हाईकोर्ट ने 2013 में रद्द कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि जमात राजनीतिक पार्टी के तौर पर नहीं मानी जा सकती, क्योंकि इसका विश्वास लोकतांत्रिक प्रक्रिया से अधिक अल्लाह में है। अब जमात पर से प्रतिबंध हट गया है। अब अंदाजा लगाया जा रहा है कि यह अगले चुनाव में बीएनपी के साथ गठबंधन करके सत्ता में आ सकती है।
विश्व नाथ झा।