भारतीय राजनीति में जाति धर्म से परे होकर लोकतंत्र मजबूत करने की साहित्यिक बातें चुनाव से पहले हमेशा की जाती हैं। लेकिन चुनाव आते ही किसी भी प्रदेश की राजनीति जातियों के आसपास घूमने लगती है। आजादी के बाद वैसे तो सभी राजनीतिक दलों ने विभिन्न जातियों को अपने पाले में शामिल करने के भरपूर प्रयास किया, लेकिन जातिवादी राजनीति की जनक इस देश में कांग्रेस है, और इस परंपरा को तमाम क्षेत्रीय दलों ने बखूबी आगे बढ़ाया है। हरियाणा में चुनाव आते ही जाट कार्ड खेल कर एक दशक तक कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे भूपेंद्र हुड्डा के बेटे दीपेंदर हुड्डा, जो खुद को कांग्रेसी मुख्यमंत्री के दावेदार के तौर पर पेश कर रहे हैं उन्होंने दलित कार्ड खेला है।
सोशल मीडिया पर आपने भी उनका एक वीडियो देखा होगा, जिसमें वह अपने गले में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा को टांग कर जय भीम, जय संविधान के नारे लगाते हुए नजर आ रहे हैं। कांग्रेस के अंदर भले ही हुड्डा परिवार के इस कदम को पार्टी के अंदर उनकी प्रतिद्वंदी दलित नेत्री कुमारी सैलजा की काट के तौर पर देखा जा रहा हो, लेकिन प्रदेश के दलित चिंतक दीपेंदर हुड्डा के इस कदम को चुनावी स्टंट बताते हुए उन्हें 2004 से 2014 तक के हुड्डा कार्यकाल में हुए दलित विरोधी कृत्यों की याद दिला रहे हैं।
हुड्डा सरकार के दौरान हिसार में अगस्त 2014 में एक दलित छात्रा ने छेड़छाड़ से परेशान होकर जहर खाकर जान दे दी थी। जनवरी 2007 में भिवानी में दलित युवक का अपहरण कर उसे नंगा करके पीटा गया था। अप्रैल 2010 में मिर्चपुर में दलितों के घर फूंक कर बाप-बेटी को जिंदा जलाया गया था। फरवरी 2006 में करनाल के महमदपुर में हुई दलित विरोधी घटना के बाद 300 से अधिक दलित गांव छोड़ने को मजबूर हुये थे, उन्हें मजबूरी में खुले में डेरा डालना पड़ा था। गोहाना में पुलिस की मौजूदगी में दंगाइयों नें तोड़फोड़ कर दलित बस्ती को फूंक डाला था। फतेहाबाद में जब दलितों पर बार-बार जुल्म हुआ तो 70 से अधिक परिवारों को रोहतक में पनाह लेनी पड़ी थी।
ये तो महज कुछ घटनाएं हैं। आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि हुड्डा सरकार के दौरान 10 सालों में हर 18 मिनट में दलितों पर अत्याचार हुआ था।
आज चुनावी दौर में कांग्रेस और कांग्रेस के सीनियर नेताओं के दलित प्रेम को लोग हरियाणा में हुडा राज के कारनामों को ढंकने के लिए ढोंग का नाम दे रहे हैं।
इन आंकडों को देखने और चुनावी राजनीति समझने के बाद हरियाणा चुनाव में दलितों, शोषितों, वंचितों को अपने मताधिकार का प्रयोग अपने नफा – नुकसान को सोचकर करना चाहिए।
-अनुज शुक्ला