देश के पूर्व सेनाध्यक्ष और पहले CDS (चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ) रहे दिवंगत जनरल विपिन रावत ने एक बार जिक्र किया था कि भारतीय सेना ढाई मोर्चे का युद्ध लड़ने के लिए तैयार है। एक पाकिस्तान, एक चीन और ‘आधा’ भारत का वो वैचारिक समूह जो खाता तो यहाँ का है लेकिन गाता दुश्मनों का है। अगर दिवंगत जनरल विपिन रावत आज होते तो देखते कि कैसे देश के दुश्मनों ने अब ढाई से आगे भी कई मोर्चे खड़े करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं।
पाकिस्तान की सीमा पर भारत दशकों से जूझ रहा है, उस पार से आतंकी अक्सर घुसपैठ की फिराक में लगे रहते हैं। कई बार पाकिस्तानी फ़ौज की गोलीबारी से भारतीय नागरिकों की भी मौत हो जाती है। जहाँ तक चीन की बात है, हमने जून 2020 में गलवान और उससे पहले जून 2017 में डोकलाम का संघर्ष देखा था। भारत और चीन की सेनाओं के बीच अक्सर तनाव की खबरें आती रहती हैं, क्योंकि साम्राज्यवादी कम्युनिस्ट चीन अपने हर पड़ोसी की जमीन हड़पना चाहता है। मणिपुर को जलाने के म्यांमार से घुसपैठ की खबरें आईं। बांग्लादेश से घुसपैठ से भारत परेशान है, रोहिंग्या मुस्लिम देश भर में फैल गए हैं और अपराध में संलिप्त रहते हैं।
इन सबके बीच एक और देश से लगी सीमा पर भारत के लिए अब समस्या खड़ी हो रही है। वो देश है – नेपाल। भारत और नेपाल लगभग 1751 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं। ऐसे में इस सीमा का इस्तेमाल अब भारत के दुश्मन अब अपने इरादों को अंजाम तक पहुँचाने के लिए कर रहे हैं। नेपाल सीमा का इस्तेमाल घुसपैठ के लिए किया जा रहा है। अब ताज़ा खबर आई है कि लगभग 2500 जिहादी पाकिस्तान द्वारा तैयार किए जा रहे हैं, वो भी भारत-नेपाल सीमा पर।
‘दैनिक जागरण’ में प्रकाशित खबर के अनुसार, बहराइच के रुपईडीहा स्थित भारतीय सीमा से मात्र 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नेपालगंज में 2500 जिहादी प्रशिक्षित किए जा रहे हैं। नेपाल के मुस्लिम युवकों को भड़का कर इस मिशन में लगाया जा रहा है। ये कोई हवा-हवाई बातें नहीं हैं, बल्कि अधिसूचना विभाग की विशेष शाखा के पुलिस अधीक्षक ने मुख्यालय को इस संबंध में रिपोर्ट सौंपी है। साथ ही सरकार ने 5 सितंबर, 2024 को पुलिस महानिदेशक को कार्रवाई करने का निर्देश भी दिया है। पुलिस के अलावा भारतीय ख़ुफ़िया व सुरक्षा एजेंसियाँ इससे निपटने में लग गई हैं। उत्तर प्रदेश की सीमा से संबंधी साप्ताहिक ख़ुफ़िया रिपोर्ट में ये सूचना दी गई है कि बाँके जिला स्थित नेपालगंज के फुलटेकरा मदरसे का मुख्य मौलाना मंसूर हलवाई पाकिस्तान के कराची का रहने वाला है।
इतना ही नहीं, इस मदरसे को चलाने वालों में उसके अलावा लाहौर का मौलाना जुयायल हक़, कराची का मौलाना मदनी मरकज़, मौलाना अनवर खान, मौलाना अफरुद्दीन, मौलाना सादिक और मौलाना तौलिक हुसैन शामिल हैं। नेपालगंज में ऐसे एक-दो नहीं, बल्कि पूरे के पूरे 130 मदरसे चल रहे हैं। अब सोचिए, इसका दंश कितना भयावह होगा! ये मदरसे ISIS समेत अन्य खूँखार आतंकियों का अड्डा बनते जा रहे हैं। नेपाल के कई मुस्लिम संगठनों से इन्हें संरक्षण मिल रहा है। यूपी में महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, श्रावस्ती, बहराइच, लखीमपुर खीरी और पीलीभीत की सीमाएँ नेपाल से लगती हैं, इसीलिए ये ख़तरा कई जिलों में फैल सकता है।
सीमावर्ती क्षेत्रों में आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाने और तस्करी रोकने के लिए पुलिस व सुरक्षा एजेंसियाँ पहले से ही अभियान चला रही हैं। 2500 जिहादी एक बड़ी संख्या हैं और अब ये पता लगाना चुनौती होगी कि इनमें से कितनों को कब-कब और कहाँ-कहाँ किन-किन इलाकों से भारत में घुसाने की कोशिश की जाएगी। उससे भी बड़ी चुनौती ये पता लगाना होगा कि आखिर इन्हें किस तरह के मिशन पर लगाया जाएगा। जिस तरह भारत में ‘रेल जिहाद’ की घटनाएँ बढ़ रही हैं और ट्रेनों को बेपटरी कर के दुर्घटना कराने की 50 से अधिक साजिशों का खुलासा हो चुका है, ये कहने में कोई शक नहीं होना चाहिए कि भारत के दुश्मन बाहर और अंदर दोनों जगह एकदम से सक्रिय हो उठे हैं।
ऐसा नहीं है कि भारत-नेपाल सीमा अचानक से खतरे के निशान को पार कर गया है, बल्कि ये प्रक्रिया कई वर्ष पहले ही शुरू हो चुकी थी और धीरे-धीरे ये घाव इतना बढ़ गया है कि कहीं देश के लिए नासूर न बन जाए। इस तरह की गतिविधियों के लिए सबसे पहली शर्त होती है – फंडिंग। ये फंडिंग इन्हें विभिन्न इस्लामी मुल्कों से आ रही है। दिसंबर 2023 में सामने आया था कि नेपाल सीमा से सटे 108 मदरसों में 150 करोड़ रुपए से भी अधिक फंडिंग हुई है। और ये उस पार नहीं, बल्कि इस पार की बात है। बहाना बनाया जाता है शिक्षा के प्रचार-प्रसार का, लेकिन मंशा होती है जिहाद की।
SIT ने तभी केंद्रीय ख़ुफ़िया एजेंसियों की मदद से ये खँगालना शुरू कर दिया था कि क्या इन पैसों को देश विरोधी गतिविधयों में खपाया गया? यूपी में जब सर्वे हुए थे, तब पूरे राज्य में 4000 मदरसे अपने आय-व्यय का ठीक से हिसाब ही नहीं दे पाए। उन सबका ये कहना था कि विदेश से फंड आता है। नेपाल सीमा से सटे कई मदरसों को बंद किए जाने की अटकलें थीं। नेपाल की सीमा से सटे 300 ऐसे मदरसे हैं, जो राज्य सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग से मान्यता या सहायता प्राप्त हैं। कई मदरसे 30-35 साल से चल रहे हैं, लेकिन हिसाब-किताब के नाम पर उनका कहना है कि सब ‘आवामी चंदा’ से हो रहा है।
देखा जाए तो भारत-नेपाल की सीमा के इस पार या उस पार चल रहे मदरसों में तैयार किए जाने छात्रों की विचारधारा एक-दूसरे से बहुत अलग नहीं होगी। आखिर कैसे सैकड़ों मदरसे ‘अल्पसंख्यक कल्याण’ के नाम पर पनप गए और इनका शिक्षा विभाग से दूर-दूर तक नाता नहीं रहा, इन्होंने जम कर विदेशी फंडिंग उठाई जिनका कोई हिसाब-किताब नहीं है, और इन्होने छात्रों को ऐसी चीजें पढ़ाईं जिनका भारतीय संस्कृति या शिक्षा व्यवस्था से कोई लेना-देना नहीं है। भारत-नेपाल सीमा को अगर सुरक्षित करना है तो सबसे पहले वहाँ पनप रहे मदरसों को या तो बंद करना होगा या उन्हें भारतीय शिक्षा पद्धति के अनुरूप ढालना होगा।
सितंबर 2024 में ही भारत-नेपाल सीमा से घुसपैठ करते हुए 2 बांग्लादेशी नागरिक धराए थे। यानी, घुसपैठ के लिए बांग्लादेशी भी अब इसी सीमा का इस्तेमाल कर रहे हैं। पाकिस्तान-चीन की तरह भारत-नेपाल सीमा पर उस तरह की सख्ती नहीं रही है और दोनों देशों के नागरिक अब तक बिना किसी व्यवधान के इस पार से उस पार और उस पार से इस पार आते-जाते रहे हैं। यूपी-बिहार-उत्तराखंड में सीमा के इस पार और उस पार के लोगों के बीच नाते-रिश्ते भी हैं। आतंकियों के आका इसी चीज का फायदा उठाना चाहते हैं। नेपाल अब हिन्दू राष्ट्र नहीं रहा, वहाँ कम्युनिस्ट शासन है और KP शर्मा ओली से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल प्रचंड तक भारत के विरोध में बयान दे चुके हैं। वहाँ की सत्ताधारी पार्टी चीन की करीबी मानी जाती है, आतंकी इसका भरपूर फायदा उठाना चाह रहे हैं।
भारत और नेपाल की सीमा पर अब जाँच एजेंसियों सख्ती से नज़र भी रख रही हैं, पुलिस ने भी चौकसी बढ़ा दी है – लेकिन, अब तक ये नाकाफी सिद्ध हो रहे हैं। दशकों से वहाँ संचालित हो रहे मदरसे एक ऐसी समस्या बन गए हैं, जिनसे तैयार हजारों जिहादी भारत को कई घाव दे सकते हैं। इससे पहले कि वो अपने इरादों में कामयाब हों, आतंक के इन अड्डों को नेस्तनाबूत किया जाना ज़रूरी है।
-Anupam K Singh