प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को 3 ‘परम रूद्र’ सुपरकम्प्यूटर्स के अलावा ‘अरुणिका’ और ‘आर्क’ नाम के 2 हाई-परफॉर्मेंस कम्प्यूटिंग सिस्टम समर्पित किए। इस दौरान उन्होंने कहा कि हमारे वैज्ञानिकों के पास अत्याधुनिक संसाधन होने चाहिए। फिजिक्स के अलावा पृथ्वी विज्ञान और कॉस्मोलॉजी के अध्ययन में भी ये वैज्ञानिकों के काम आएगा। ‘परम’ सीरीज के सुपरकम्प्यूटर्स का भारत में बहुत योगदान है। ‘परम 8000’, ‘परम सिद्धि AI’ और ‘परम उत्कर्ष’ नामक सुपरकम्प्यूटर्स भी भारत के पास हैं। PARAM को पुणे स्थित ‘सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कम्प्यूटिंग’ (C-DAC) द्वारा विकसित किया गया है। 3 ‘परम’ सुपरकम्प्यूटर्स को बनाने में 130 करोड़ रुपए की लागत आई है।
2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ही सरकार ने ‘नेशनल सुपरकम्प्यूटिंग मिशन’ (NSM) को लॉन्च किया था। अकादमिक, उद्योग और शोध जगत को अत्याधुनिक कम्यूटिंग सिस्टम से जोड़ने के लिए ये योजना लाई गई थी। केंद्रीय विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय (DST) और केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeiTY) द्वारा संयुक्त रूप से प्रबंधन किया जा रहा है। वहीं C-DAC व बेंगलुरु स्थित ‘इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस’ (IISc) द्वारा इसे संचालित किया जाता है। ‘परम रूद्र’ का इस्तेमाल भी मौसम व जलवायु के अध्ययन के अलावा कम्प्यूटेशनल फ्लूड डायनेमिक्स, बायोइंफॉर्मेटिक्स और मटेरियल साइंस के अध्ययन के लिए किया जाएगा।
ये सिस्टम आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस (AI) के अलावा मशीन लर्निंग, डीप लर्निंग फ्रमवर्कस और क्लाउड सर्विस से भी लैस है। इन ‘परम रूद्र’ सुपरकम्प्यूटर्स को पुणे, दिल्ली और कोलकाता में स्थापित किया गया है। ‘परम’ एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है – ‘अत्यंत’। ये सुपरकम्प्यूटर इसीलिए भी खास है, क्योंकि 1974 में भारत ने जब परमाणु परीक्षण किया था तो उसके बाद अमेरिका ने अपने CRAY नाम के सुपरकम्प्यूटर को भारत को इस्तेमाल करने से रोक दिया था। इसके बाद ISRO को अपने कामकाज में समस्याएँ आने लगी थीं। ऐसे समय में भारत ने C-DAC की स्थापना की।
विजय पांडुरंग भटकर को इस प्रोजेक्ट का हेड बनाया गया। उन्हें भारत में सुपरकम्प्यूटर का जनक भी माना जाता है। 3 वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद भारत ने ‘परम 8000’ को तैयार किया। 1990 में ज्यूरिच में आयोजित सुपरकम्प्यूटिंग शो में अमेरिका के बाद भारत ही दूसरे स्थान पर रहा। 2002 में ‘परम 20000’/’परम पद्म’ का निर्माण हुआ। इसी तरह, आगे ‘परम ईशान’ और ‘परम कंचनजंगा’ का निर्माण हुआ। वो 1987 का साल था जब अमेरिका ने भारत को मना किया था, आज 2024 है जब ‘रूद्र’ के रूप में हमें दुनिया के बेहतरीन सुपरकम्प्यूटर्स में से एक मिले हैं।
भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने ‘परम’ के जरिए चक्रवातों और तूफानों और बाढ़ का समय पूर्व सही आकलन किया। जैसे, 2013 में ‘फेलिन’ नाम के साइक्लोन को लेकर सही अनुमान लगाया गया, जिससे ओडिशा और आंध्र प्रदेश में हजारों ज़िंदगियाँ बचीं। न केवल साइक्लोन, बल्कि कृषि में भी इसका इस्तेमाल होता है। कृषि क्षेत्र में मौसम के पूर्वानुमान से फसलों को क्षति से बचाने की तैयारी कर ली जाती है। इतना ही नहीं, ‘चंद्रयान’ और ‘मंगलयान’ जैसे मिशन के जरिए भारत को गर्व का जो मौका मिला उसमें भी ‘परम’ का योगदान है। प्रोटीन स्ट्रक्चर के अध्ययन के जरिए नई दवाओं की खोज के लिए भी इसका इस्तेमाल हुआ है।
कोरोना के दौरान वैक्सीन बनाने से लेकर इसके प्रसार को रोकने के लिए ‘परम’ सुपरकम्प्यूटर के जरिए अध्ययन किया गया। बायोमेडिकल मॉडलिंग और जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए भी ‘परम’ का इस्तेमाल हुआ है। सोचिए, इसने कितनी जानों को बचाया है। एयर क्वालिटी से लेकर क्लाइमेट स्टडी तक के लिए इसका इस्तेमाल होता है, जिस कारण हम भविष्य के लिए बेहतर तरीके से तैयार होते हैं। वैज्ञानिक रिसर्च और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में तो इसका इस्तेमाल होता ही होता है। ‘परम’ एक तरह से भारत का ‘रक्षक’ है, ये जानें बचाता है।