महाराष्ट्र में 1985 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी वसंतदादा पाटिल के नेतृत्व में 288 सीटों वाली विधानसभा में 161 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौटी और वसंतदादा को एक बार फिर राज्य का मुख्यमंत्री बनाया। हालांकि, इस दौर में कांग्रेस भीतरघात से जूझ रही थी, वसंतदादा और प्रभा राव के बीच संघर्ष चल रहा था। वसंतदादा ने प्रभा राव को महाराष्ट्र कांग्रेस कमिटी की अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर कुछ ही महीनों के भीतर अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और उनकी जगह उनके करीबी शिवाजीराव पाटील निलंगेकर को राज्य का नया मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। जिस समय निलंगेकर को मुख्यंमत्री बनाया गया थे उस समय वे किसी भी सदन के सदस्य तक नहीं थे। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों की इस सीरीज में आज जानेंगे शिवाजीराव पाटील निलंगेकर की कहानी।
9 फरवरी 1931 को लातूर में जन्मे शिवाजीराव निलंगेकर के पिता का निधन उनके जन्म के कुछ महीनों बाद ही हो गया था। हालांकि, उनकी माता ने बेटे को पढ़ाने में पूरा ध्यान लगा दिया और वकालत की पढ़ाई कराई। उनका बचपन के दौर में भारत अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहा था और वे भी इस संघर्ष में शामिल हो गया। साथ ही, निलंगेकर छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रूप से भाग ले रहे थे।
वे कांग्रेस पार्टी के लिए लगातार काम कर रहे थे और 1952 में उन्होंने निलंगा विधानसभा क्षेत्र से पहली बार चुनाव लड़ा, इस चुनाव में निलंगेकर की हार हो गई। 1962 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में वे फिर इसी सीट से चुनाव लड़े और उन्होंने पीजेंट्स ऐंड वर्कर्स पार्टी के श्रीपतराव ज्ञनारुराव को हराकर चुनाव में जीत दर्ज की।
इसके बाद निलंगेकर अलग-अलग सरकारों में राज्य के मंत्रिमंडल में विभिन्न विभागों के मंत्री रहे। आपातकाल के बाद का दौर महाराष्ट्र की चुनावी राजनीति में उथल-पुथल भरा था। इस दौर में कांग्रेस पार्टी में बगावत हुई और पुलोद गठबंधन की सरकार भी बनी। हालांकि, इस सबके बीच शिवाजीराव निलंगेकर इंदिरा गांधी की कांग्रेस के वफादार रहे। इस वफादारी का इनाम उन्हें वसंतदादा पाटिल के इस्तीफे के बाद मिला और किसी सदन का सदस्य ना होते हुए भी उन्हें महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया गया। निलंगेकर ने 3 जून 1985 को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
निलंगेकर ने लातूर और जालना जिलों के गठन में भी प्रमुख भूमिका निभाई थी। उन्होंने मराठवाड़ा, विदर्भ व कोंकण के लिए विकास कार्यक्रम लागू किए और सिंचाई से जुड़े कम प्रमुख कार्यों में भी योगदान दिया था। हालांकि, वे केवल 9 महीने ही राज्य के मुख्यमंत्री रहे और अपनी बेटी चंद्रकला व उसके दोस्तों की मदद करने के लिए एमडी की परीक्षा के परिणामों में ‘धोखाधड़ी’ करने का आरोप लगने के बाद उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया।
निलंगेकर की बेटी के कथित तौर पर परीक्षा में दो नंबर बढ़ाए गए थे। मुंबई विश्वविद्यालय ने नवंबर 1985 में एमडी (प्रसूति एवं स्त्री रोग) परीक्षा के नतीजों में निलंगेकर की बेटी ने अच्छे अंकों के साथ परीक्षा पास की थी। इसके बाद किंग एडवर्ड मेमोरियल (केईएम) अस्पताल में सहायक चिकित्सा अधिकारी ने मामला में अदालत का दरवाजा खटखटाया था जिसने निलंगेकर के खिलाफ फैसला सुनाया था। वे 1990 और 1991 के बीच महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे और 2004 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी से चुनाव लड़ रहे अपने पोते संभाजी पाटिल निलंगेकर से वे चुनाव हार गए थे। 5 अगस्त 2020 को कोविड-19 संबंधी जटिलताओं के चलते उनका निधन हो गया।