1999 में महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी के गठबंधन की सरकार थी और राज्य में समय से पहले विधानसभा चुनाव कराए जा रहे थे। इस दौरान सोनिया गांधी के साथ मतभेद के चलते शरद पवार, कांग्रेस से अलग हो गए थे और पीए संगमा व तारिक अनवर के साथ मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का गठन कर लिया था और उनकी पार्टी भी इस चुनाव में हिस्सा ले रही थी।
एनसीपी के चुनावी मैदान में आने के बाद एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना-बीजेपी गठबंधन के बीच मुकाबला त्रिकोणीय हो गया था। इस चुनाव में किसी भी दल या गठबंधन को बहुमत नहीं मिला और कांग्रेस ने 75, बीजेपी ने 56, एनसीपी ने 58 और शिवसेना ने 69 सीटें जीतीं। कुछ दिनों की उथल-पुथल के बाद कांग्रेस और एनसीपी सरकार बनाने के लिए एकसाथ आ गए। कुछ समय पहले कांग्रेस से निलंबित किए गए पार्टी नेता विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री बने जबकि एनसीपी के छगन भुजबल उप-मुख्यमंत्री बने। आज ‘महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री’ में कहानी विलासराव देशमुख की…
सरपंच से शुरु हुआ विलासराव का सफर
विलासराव दगादोजीराव देशमुख का जन्म 26 मई 1945 को लातूर जिले के बाभलगांव में हुआ था। विलासराव ने गांव में ही 10वीं तक की पढ़ाई की और पुणे के एम.ई.एस. अबासाहेब गरवारे कॉलेज से विज्ञान में स्नातक किया। विलासराव ने पुणे के इंडियन लॉ सोसाइटी लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की। उन्होंने युवावस्था में ही समाजसेवा करना शुरू कर दिया था, वे सूखा राहत कार्य में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे और आगे चलकर यही उनके राजनीतिक जीवन का आधार भी बना। उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत उनके गांव से ही हुई और वह 1974 में बाभलगांव के सरपंच बने। वह 1974 से 1979 तक गांव के सरपंच रहे और बाद में वह उस्मानाबाद जिला परिषद के सदस्य और लातूर तालुका पंचायत समिति के अध्यक्ष बने। वह युवा कांग्रेस के अध्यक्ष और कांग्रेस के जिला अध्यक्ष भी रहे थे।
1980 में विधायक, 1982 में मंत्री
विलासराव 1974 से 1980 तक उस्मानाबाद जिला परिषद के सदस्य और लातूर तालुका पंचायत समिति के उपाध्यक्ष रहे और वे 1980 के चुनावों में पहली बार लातूर सीट से जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद 1982 में वे राज्य मंत्रिमंडल में शामिल हो गए और उन्होंने गृह, सामान्य प्रशासन, परिवहन, पर्यटन और डेयरी विकास जैसे कई विभागों में मंत्री रहे। मंत्री के तौर पर उन्होंने अपने काम के जरिए अच्छी छाप छोड़ी। हालांकि, 1995 के विधानसभा चुनाव में विलासराव हार गए थे।
कांग्रेस से किए गए निलंबित
1995 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव विलासराव के करियर का सबसे खराब दौर था। वे लातूर की अपनी परंपरागत सीट से निर्दलीय उम्मीदवार से हार गए और इसके लिए उन्होंने शरद पवार को जिम्मेदार माना था। इसके कुछ समय बाद उन्होंने कांग्रेस से ही बगावत कर दी और शिवसेना के समर्थन से विधान परिषद का चुनाव लड़ा। इसके बाद कांग्रेस ने उन्हें 6 वर्षों के लिए पार्टी से निलंबित कर दिया। हालांकि, वे विधान परिषद के चुनाव में जीत नहीं दर्ज कर सके। विलासराव इस बुरे दौर से कुछ ही समय में उबर गए और फिर कांग्रेस ने वापस लौट आए। कांग्रेस में वापसी कर उन्होंने खुद को संगठन निर्माण के कामों में लगा दिया।
दो बार मुख्यमंत्री रहे विलासराव
कांग्रेस में वापसी के बाद विलासराव लगातार मेहनत करते रहे और इसका असर 1999 के चुनाव में देखने के मिला। इस चुनाव में उन्होंने खुद की सीट रिकॉर्ड वोटों से जीती और कांग्रेस ने राज्य में 75 सीटों पर जीत दर्ज की। इस चुनाव में शिवसेना-बीजेपी गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रहे थे लेकिन उनके गठबंधन को भी पूर्ण बहुमत नहीं मिला। इस चुनाव में शरद पवार की नवगठित पार्टी एनसीपी ने 58 सीटों पर जीत दर्ज की थी। चुनाव के बाद कांग्रेस-एनसीपी ने गठबंधन किया और इस सरकार के प्रमुख के तौर पर 18 अक्टूबर 1999 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। हालांकि, विलासराव के कार्यकाल के दौरान महाराष्ट्र कांग्रेस में गुटबाजी शुरू हो गई जिसके चलते जनवरी 2003 में विलासराव को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद कांग्रेस नेता सुशील कुमार शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया गया।
हालांकि, विलासराव देशमुख पार्टी के काम में जुटे रहे और 2004 में विधानसभा चुनाव में उन्होंने पार्टी के लिए जमकर मेहनत की। इन चुनावों में कांग्रेस को 69 और शरद पवार की एनसीपी को 71 सीटें मिलीं। चुनाव के बाद यह माना जा रहा था कि राज्य में मुख्यमंत्री एनसीपी का होगा लेेकिन ऐसा नहीं हुआ और कांग्रेस के खेमे से विलासराव देशमुख दोबारा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री चुने गए। उनके दूसरे कार्यकाल के दौरान 2008 में मुंबई में कई जगहों पर आतंकी हमला हुआ था जिसमें ताज होटल भी शामिल था। हमले के बाद वे अपने बेटे रितेश देशमुख और फिल्म निर्माता रामगोपाल वर्मा के साथ होटल ताज का मुआयना करने पहुंचे जिसे लेकर उनकी खूब आलोचना हुई और बाद में इसी के चलते उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा।
मुख्यमंत्री के तौर पर फैसले
मुख्यमंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई बड़े और क्रांतिकारी फैसले लिए जिसके लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है। उन्होंने लाखों किसानों का कई हजारों करोड़ का कर्जा माफ किया और किसानों को सस्ती ब्याज दरों पर ऋण भी मुहैया कराया। उनकी सरकार के दौरान महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए अधिनियम पेश किया गया और अदालतों में लंबित मामलों के त्वरित निस्तारण के लिए सैकड़ों फास्ट ट्रैक कोर्ट बनवाए गए। उन्होंने राज्य अल्पसंख्यक आयोग का निर्माण कराया और महिला स्वयं सहायता समूहों को 4 प्रतिशत की दर पर ऋण देने का निर्णय लिया। साथ ही, अरब सागर में छत्रपति शिवाजी महाराज की घुड़सवारी प्रतिमा लगाने का निर्णय भी उनके कार्यकाल के दौरान लिया गया था।
विवादों से रहा विलासराव का नाता
विलासराव देशमुख का कार्यकाल विवादों से भी भरा रहा। देशमुख ने मुख्यमंत्री रहते हुए फिल्मकार सुभाष घई को फिल्म संस्थान बनाने के लिए सरकार की ओर से सस्ती दरों पर 20 एकड़ जमीन मुहैया कराई थी जिस फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट ने पलट दिया और घई से जमीन वापस करने को कहा था। सीएजी की एक रिपोर्ट में विलासराव देशमुख पर अपने परिवार द्वारा चलाए जा रहे ट्रस्ट को सस्ते में 23,840 वर्ग मीटर के प्लॉट का आवंटन करने का आरोप लगा था। साथ ही, चर्चा में रहे आदर्श घोटाले में भी देशमुख पर आरोप लगे थे।
मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद वे 2009 में केंद्र सरकार में शामिल हो गए। केंद्र में उनके पास उद्योग, ग्रामीण विकास और विज्ञान व प्रौद्योगिकी जैसे मंत्रालयों का प्रभार रहा था। 14 अगस्त 2012 को 67 साल की उम्र में विलासराव देशमुख का निधन हो गया।