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क्यों विवादों में फंस गया मेवाड़ के नए महाराजा का ‘रक्त-तिलक’, सिटी पैलेस से चले पत्थर: उदयपुर में ‘विश्वराज Vs लक्ष्यराज’ के पीछे का इतिहास

मेवाड़ में 493 साल यह उत्सव उदयपुर को देखने को मिला लेकिन आपसी विवाद ने इसमें रंग में भंग कर दिया

TFI Desk द्वारा TFI Desk
27 November 2024
in इतिहास, चर्चित
क्यों विवादों में फंस गया मेवाड़ के नए महाराजा का ‘रक्त-तिलक’, सिटी पैलेस से चले पत्थर: उदयपुर में ‘विश्वराज Vs लक्ष्यराज’ के पीछे का इतिहास
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बप्पा रावल, रावल खुम्माण, राणा सांगा, महाराणा प्रताप जैसे महायोद्धाओं की गौरवशाली भूमि मेवाड़ इस समय चर्चा में है। दरअसल, मेवाड़ की गद्दी पर 77वें महाराणा के रूप में विश्वराज सिंह मेवाड़ का 25 नवंबर 2024 को राजतिलक हुआ। इसके बाद विश्वराज सिंह परंपरा के अनुसार उदयपुर के राजमहल ‘सिटी पैलेस’ कहलाने वाले शंभू निवास में स्थित कुलदेवता एकलिंगजी महादेव और धूणी माता का दर्शन करना चाहते थे। हालाँकि, उन्हें महल में घुसने नहीं दिया गया और महल से उन पर और उनके समर्थकों पर पथराव करके मेवाड़/चित्तौड़ की धरती को शर्मसार कर दिया गया और राजतिलक की परंपरा अधूरी रह गई। विश्वराज सिंह मेवाड़ नाथद्वारा से भाजपा के विधायक भी हैं।

दरअसल, विश्वराज सिंह के पिता महेंद्र सिंह मेवाड़ का 10 नवंबर 2024 को निधन हो गया। इसके बाद 493 साल बाद विश्वराज सिंह मेवाड़ का राजतिलक किया गया। इस दौरान विश्वराज सिंह मेवाड़ का खून से राजतिलक किया गया। खून से तिलक करने की परंपरा महाराणा प्रताप के समय से निभाई जा रही है। कहा जाता है कि जब तिलक करने के लिए कुमकुम नहीं मिला तो तलवार से खून निकाल कर उससे राजतिलक किया गया था। इसी परंपरा के तहत विश्वराज सिंह मेवाड़ का भी राजतिलक किया गया।

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चित्तौड़गढ़ किले में राजतिलक की रस्म के दौरान विश्वराज सिंह मेवाड़ को राजतिलक करने के बाद 21 तोपों की सलामी भी दी गई। इस दौरान मेवाड़ की परंपरा के अनुसार सलूंबर के रावत देवव्रत सिंह चूड़ावत ने तलवार से खून निकालकर राजतिलक किया। इसके बाद तलवार देकर तलवार बँधाई की रस्म पूरी की गई। महाराणा लाखा के पुत्र चूड़ा जी मेवाड़ में वही स्थान है, जो हस्तिनापुर में पितामह भीष्म का था। पितामह ने ज्येष्ठ पुत्र होते हुए भी हस्तिनापुर गद्दी छोड़ दिया था। उसी प्रकार चूड़ा जी ने ज्येष्ठ पुत्र होते हुए भी त्याग किया और अपने सौतेले भाई महाराणा मोकल राजगद्दी पर बैठाया। उसी समय से मेवाड़ में नए महाराणा को राजतिलक लगाने की परंपरा चूंडावतों के पाटवी ठिकाने सलूंबर के पास है।

इसके बाद महाराणा प्रताप के छोटे भाई एवं हल्दी घाटी के युद्ध में उनका साथ निभाने वाले शक्ति सिंह के वंशज शक्तावतों के पाटवी ठिकाने भीण्डर के शक्तावतों ने भाला अर्पित किया। इसके बाद झाला क्षत्रियों ने चँवर झुलाया। महाराणा सांगा के समय अपना सर्वस्व त्याग करने वाले अज्ज़ा जी झाला एवं सज्जा जी झाला तथा महाराणा प्रताप के समय त्याग करने वाले मन्ना जी झाला के वंशजों के पाटवी ठिकाने बड़ी सादड़ी के झाला राजतिलक के समय चँवर झुलाने एवं अपर्ण करने का काम करते आए हैं।

इसके बाद उमराव, बत्तीसा एवं अन्य सरदारों ने मेवाड़ के प्रति अपने सम्मान, समर्पण एवं समर्थन दिया। इसके बाद सभी समाजों के प्रमुख लोगों ने महाराणा विश्वराज सिंह को नजराने पेश किए। बड़ी आम लोग भी इस कार्यक्रम में मौजूद रहे। उनके लिए पूरे रास्ते फूल बिछाए गए। इसके बाद विश्वराज सिंह मेवाड़ कुलदेवता एकलिंगनाथजी के 77वें दीवान बन गए हैं। इसके साथ ही मेवाड़ राजवंश के 77वें महाराणा बन गए।

कहा जाता है कि सलंबूर के चूड़ा, भिंडर के शक्तावतों तथा बड़ी सादड़ी के झालाओं द्वारा ही राजतिलक की इस इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है। इसके बाद ही कोई महाराणा बनता है। यह परंपरा सदियों से मेवाड़ में चली आ रही है। इसे पूरे सम्मान और भक्ति के साथ निभाया जाता है। बता दें कि मेवाड़ के महाराणा राज्य के असली राजा भगवान एकलिंगनाथ (भगवान महादेव) को मानते हैं और उनके दीवान के रूप में जनता की देखभाल एवं संरक्षक के रूप में कार्य करते आए हैं।

विवाद के बाद झड़प

मेवाड़ में 493 साल यह उत्सव उदयपुर को देखने को मिला, लेकिन आपसी विवाद ने इसमें रंग में भंग कर दिया। राजतिलक के बाद महाराणा विश्वराज सिंह परंपरा के अनुसार अपने कुलदेवता एकलिंग महाराजा और माता धूणी का दर्शन करने के लिए राजमहल ‘सिटी पैलेस’ जा रहे थे।

इस बीच विश्वराज सिंह मेवाड़ के चाचा अरविन्द सिंह मेवाड़ ने राजमहल के दरवाजे बंद करवा दिए। उन्होंने अखबार में इश्तिहार देकर कहा कि यहाँ कोई नहीं घुस सकता है। इसके लिए उन्होंने कानूनी कागज भी पेश करने की बात कही। हालाँकि, बात सिर्फ एकलिंग जी महाराज के दर्शन करने थी, लेकिन अरविंद सिंह मेवाड़ के बेटे लक्ष्यराज सिंह के समर्थकों ने दर्शन करने आए विश्वराज सिंह एवं उनके समर्थकों पर पथराव कर दिया। इन सबके पीछे गद्दी की लड़ाई है।

क्या है विवाद?

आजादी के दौरान मेवाड़ पर महाराणा भूपाल सिंह का शासन था। वे 1930 में गद्दी पर बैठे थे। सन 1955 में उनके निधन के बाद उनके बेटे महाराणा भगवत सिंह गद्दी पर बैठे। महाराणा भागवत सिंह के दो बेटे हैं- महेंद्र सिंह मेवाड़ (विश्वराज सिंह के पिता) और अरविन्द सिंह मेवाड़ (लक्ष्यराज सिंह के पिता) तथा एक बेटी राजकुमारी योगेश्वरी हैं। महेंद्र सिंह मेवाड़ बड़े बेटे थे और अरविन्द सिंह मेवाड़ छोटे बेटे। महाराणा भागवत सिंह ने सन 1963 से 1983 के बीच उदयपुर राजपरिवार की कई संपत्तियाँ हस्तांतरित कर दीं। इनमें लेक पैलेस, जग निवास, जग मंदिर, फतह प्रकाश, शिव निवास, गार्डन होटल, सिटी पैलेस म्यूजियम जैसी बेशकीमती संपत्ति राजघराने द्वारा स्थापित एक कंपनी को हस्तांतरित की गई थीं। इसका उनके बड़े बेटे महेंद्र सिंह मेवाड़ ने विरोध किया। यहीं से विवाद शुरू हुआ था।

आखिरकार उन्होंने अपने पिता पर सन 1983 में इसको लेकर मुकदमा दायर कर दिया। महेंद्र सिंह ने कोर्ट में कहा कि ‘रूल ऑफ प्रोइमोजेनीचर’ को छोड़कर पैतृक संपत्तियों को सबमें बराबर बाँटा जाए। हिस्सेदारों में महेंद्र सिंह के बेटे विश्वराज सिंह और बहू महिमा कुमारी तथा अरविंद के बेटे लक्ष्यराज सिंह हैं। बता दें कि आजादी के बाद लागू हुआ ‘रूल ऑफ प्राइमोजेनीचर’ में कहा गया है कि जो राजपरिवार का बड़ा बेटा होगा, वही राजा बनेगा। राजघराने की सारी संपत्ति भी उसी के पास होगी। राजतंत्र में भी सामान्यत: बड़े बेटे को ही उत्तराधिकारी बनाने की परंपरा रही है।

अपने बड़े बेटे महेंद्र सिंह के दावे के बाद उनके पिता भगवत सिंह उनसे नाराज हो गए। इसके जवाब में भगवत सिंह ने कोर्ट में कहा कि इन संपत्तियों का बँटवारा नहीं हो सकता। ये अविभाज्य हैं। भगवत सिंह ने 15 मई 1984 को अपनी वसीयत में संपत्तियों का एग्जीक्यूटर छोटे बेटे अरविंद सिंह मेवाड़ को बना दिया। 3 नवंबर 1984 को भगवत सिंह का निधन हो गया। इस दौरान महाराणा भगवत सिंह ने महेंद्र सिंह मेवाड़ को प्रॉपर्टी और ट्रस्ट से बाहर कर दिया था। भगवत सिंह ने बड़े बेटे महेंद्र सिंह को संपत्ति से बेदखल करके उन्हें राजमहल सिटी पैलेस से भी बाहर निकाल दिया। इसके बाद महेंद्र सिंह समोर बाग में अपना निवास बना लिया।

उदयपुर राजघराने की की सारी संपत्तियों का प्रबंधन 9 ट्रस्ट द्वारा होता है। महाराणा भगवत सिंह ने ‘महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउंडेशन’ की शुरू की। यह संस्था उदयपुर में सिटी पैलेस संग्रहालय द्वारा चलाई जाती है। इन सभी ट्रस्ट को विश्वराज सिंह के चाचा अरविंद सिंह मेवाड़ और चचेरे भाई लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ही संभालते हैं। अरविंद सिंह मेवाड़ इस चैरिटबल ट्रस्‍ट के चेयरमैन हैं।

महेंद्र सिंह और अरविंद सिंह के परिवारों के बीच सिटी पैलेस, बड़ी पाल और घास घर सहित अन्य संपत्तियों को लेकर लड़ाई है। बता दें कि बड़ी पाल को महाराणा जवान सिंह ने 1828 से 1838 के बीच बनवाया था। यह पिछोला झील का पानी रोकने के लिए बनाई गई थी। यह भी राजमहल का ही हिस्सा है। बाद में उदयपुर की अदालत ने इन सम्पत्तियों को चारों में बाँटने का आदेश दिया। इसके साथ ही शंभू निवास को सभी लोगों को चार-चार के लिए दिया। हालाँकि, हाईकोर्ट ने साल 2022 में उदयपुर कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी। इन सभी संपत्तियों के व्यावसायिक उपयोग पर भी विवाद है।

स्रोत: विश्वराज सिंह मेवाड़, लक्ष्यराज सिंह, सिटी पैलेस, उदयपुर, महाराणा भगवत सिंह, राजमहल संपत्ति विवाद, गद्दी विवाद, Vishvaraj Singh Mewar, Lakshyaraj Singh, City Palace, Udaipur, Maharana Bhagwat Singh, Rajmahal property dispute, Gaddi dispute
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