भोजपुरी या लोक-गीतों में रुचि रखने वालों के लिए इसके कारणों का अनुमान लगाना भी कोई कठिन नहीं। शारदा सिन्हा स्वयं भी बताती हैं कि गीत भी स्तरीय नहीं थे और कुछ निर्माता कंपनियों के ताम-झाम ऐसे रहे कि दस वर्षों की दूरी हो गई।
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दुखवा मिटाईं छठी मईया… बिहार के प्रवासियों को संस्कृति से जोड़ती रही शारदा सिन्हा की आवाज़

इस पूरे दौर में बिहार की स्थिति “जंगलराज” की थी, जिसके कारण फिल्म या संगीत जैसे उद्योग बिहार में पनप भी नहीं रहे थे

Anand Kumar द्वारा Anand Kumar
5 November 2024
in चलचित्र, ज्ञान, बैठक, संस्कृति, सिनेमा
शारदा सिन्हा, लोकगायिका

भिखारी ठाकुर की एक रचना “कौन सी नगरिया” पर आधारित एक गीत को शारदा सिन्हा ने स्वर दिया था

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भारतीय फिल्मों में संगीत के फिर से प्रधान होने के 1990 वाले दौर में एक फिल्म आई – “मैंने प्यार किया”। आजकल खासे विवादों में चल रहे सलमान खान के लिए भी बतौर मुख्य अभिनेता ये पहली फिल्म थी, इसलिए भी इसे याद किया जाता है। जो पक्ष इस फिल्म को विशेष बना देता था, वो था इसका संगीत और इसी फिल्म ने एक बार फिर से भारतीय सिने प्रेमियों का परिचय बिहार के लोक गीतों तथा संगीत से करवा दिया। इस फिल्म का “कहे तोसे सजना” आज भी कभी-कभार बजता सुनाई दे जाता है। शारदा सिन्हा उस दौर में भी बिहार के लिए कोई अपरिचित नाम नही थीं।

मैथिली, भोजपुरी, मगही इत्यादि बिहार की भाषाओं के श्रोता उससे बहुत पहले से शारदा सिन्हा के नाम से परिचित हो चुके थे। ऐसा इसलिए क्योंकि तब के सहरसा और अब के सुपौल कहलाने वाले जिले में 1952 में जन्मी शारदा सिन्हा ने गायन की शुरुआत मैथिली गीतों से ही की थी।

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बॉलीवुड से लेकर बिहार के महोत्सवों तक, हर जगह दिखीं शारदा सिन्हा

नब्बे के दौर के कई वर्ष बाद जब अनुराग कश्यप की “गैंग्स ऑफ वासेपुर 2” आई तो फिल्मों में एक बार उनकी आवाज फिर से “तार बिजली से पतले हमारे पिया” गाने में सुनाई दी। ऐसा नहीं है कि इसके बाद के दौर में उन्होंने दूसरी किन्ही फिल्मों में गाया नहीं था। एक गुमनाम रह गई फिल्म थी “चार फुटिया छोकरे” जो कि बिहार के ही मुद्दे पर आधारित थी, उसमें शारदा सिन्हा की आवाज सुनाई दी थी। विदेशों से बिहार के गाँव में एक स्कूल खोलने आई युवती की कहानी पर आधारित ये फिल्म 2014 में आई थी। इसमें मालिनी अवस्थी के एक गीत के अलावा, भिखारी ठाकुर की एक रचना “कौन सी नगरिया” पर आधारित एक गीत को शारदा सिन्हा ने स्वर दिया था। एक और भी छोटे से गाने में उनकी आवाज थी। हाँ अगर गीतों के पूरे एल्बम की बात करें तो ये अवश्य था कि 2006 में आये उनके एल्बम के बाद दूसरा एल्बम 2016 में, दस वर्षों बाद आया था।

भोजपुरी या लोक-गीतों में रुचि रखने वालों के लिए इसके कारणों का अनुमान लगाना भी कोई कठिन नहीं। शारदा सिन्हा स्वयं भी बताती हैं कि गीत भी स्तरीय नहीं थे और कुछ निर्माता कंपनियों के ताम-झाम ऐसे रहे कि दस वर्षों की दूरी हो गई। भारत सरकार ने शारदा सिन्हा को 1991 में ही पद्म श्री दिया था और बाद में उन्हें (2018 में) पद्मभूषण भी मिला। इस पूरे नब्बे से लेकर अबतक के पैंतीस के करीब वर्षों में बिहार से जुड़ा शायद ही कोई ऐसा महोत्सव था, जहाँ शारदा सिन्हा की उपस्थिति न रही हो। प्रयाग संगीत समिति का प्रयागराज में किया हुआ संगीत उत्सव हो या दिल्ली के प्रगति मैदान का बिहार उत्सव (2009), सभी में शारदा सिन्हा ने प्रस्तुतियाँ दीं। बिहार और आसपास के इलाकों में उनकी प्रसिद्धि की एक बड़ी वजह उनका छठ के गीतों से जुड़ा होना था।

छठ के गीतों का पर्याय बन गईं शारदा सिन्हा

लोक-आस्था के पर्व छठ के साथ दूसरे सभी त्योहारों की ही तरह लोक-गीत भी जुड़े होते हैं। भोजपुरी में अश्लीलता को गीतों के नाम पर परोसने का जो पिछले तीन दशकों का दौर था, उस दौर में बिहार की दूसरी भाषाओं में (जैसे मैथिली या मगही-अंगिका आदि) में फ़िल्में और गीत ना के बराबर आ रहे थे। यही दौर बिहार से व्यापक स्तर पर पलायन का दौर भी था। अपनी संस्कृति से जबरन काट दिए गए बिहार के प्रवासी मजदूरों के लिए एकमात्र शारदा सिन्हा की आवाज ही होती थी जो उसे वापस उसकी जड़ों से जोड़ती थी। छठ के गीत जैसे “सुपवो न मिले माई…” या “पहिले-पहिल छठी मैया…” उस प्रवासी मजदूर को छठ पर वापस घर बुलाती सी लगती थी। अपने संगीत करियर में शारदा सिन्हा ने केवल छठ के गीतों के कुल 9 एल्बम दिए जो टिप्स, एचएमवी और टी-सीरीज जैसी कंपनियों ने जारी किये। फिर उन्हीं कंपनियों से अच्छे गीत इत्यादि न मिलने के कारण वो थोड़े समय एल्बम निकालने से परहेज भी करती रहीं।

इस पूरे दौर में बिहार की स्थिति “जंगलराज” की थी, जिसके कारण फिल्म या संगीत जैसे उद्योग बिहार में पनप भी नहीं रहे थे। अब कहीं जाकर बिहार ने अपनी एक फिल्म नीति घोषित की है। हाँ, बिहार की फिल्म इंडस्ट्री को बनाने और आगे बढ़ाने के लिए इसी दौर में नीतू चंद्रा और नितिन नीरा चंद्रा जैसे कुछ लोग भी जुटे थे। मैथिली जैसी भाषाओं में उन्होंने हाल ही में पुनः फिल्में बनानी भी शुरू कर दी हैं। जो 2016 में शारदा सिन्हा का एल्बम आया था उसे भी नीतू चंद्रा, नितिन नीरा चंद्रा और अंशुमन सिन्हा (शारदा सिन्हा के पुत्र) ने ही निर्माता के रूप में सामने रखा था। इसके लिए स्वर शारदा (शारदा सिन्हा म्यूजिक फाउंडेशन), चंपारण टॉकीज और नीओ बिहार का बैनर प्रयुक्त हुआ। नितिन नीरा चंद्रा की आने वाली फिल्म “देसवा” के लिए भी शारदा सिन्हा ने स्वर दिया है।

शारदा सिन्हा के कद का अनुमान लगाना हो तो इस बात से भी लगा सकते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी लगातार एम्स में डॉक्टरों से संपर्क करके उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछ रहे हैं। जनता के लिए शारदा सिन्हा क्या होती हैं, ये समझना हो तो देखिए कि हर ओर शारदा सिन्हा का ही गाया हुआ “दुखवा मिटाईं छठी मईया” उनके ही शीघ्र स्वस्थ होने की कामना के साथ बज रहा है। छठ की शुभकामनाओं के साथ ही बिहार कोकिला शारदा सिन्हा के भी शीघ्र स्वस्थ होने की कामना है।

स्रोत: Sharda Sinha, शारदा सिन्हा, लोकगीत, Lokgeet, छठ, Chhath,
Tags: ChhathFolk SongsSharda Sinhaछठलोकगीतशारदा सिन्हा
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जब सरदार पटेल पर मुस्लिम भीड़ ने किया था जानलेवा हमला:  घटना तो दूर 86 वर्षों तक हमलावरों के नाम भी सामने क्यों नहीं आने दिए गए ?

31 October 2025

बात वर्ष 1939 की है।अंग्रेजी शासन के ख़िलाफ़ पूरे देशभर में भावनाएं उफान पर थीं जनता न सिर्फ अपने लिए ज्यादा से ज्यादा अधिकारों की...

सरदार पटेल: लौहपुरुष जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर दिया
इतिहास

सरदार पटेल: लौहपुरुष जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर दिया

31 October 2025

31 अक्टूबर 2025 को पूरा भारत सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती मना रहा है। लौहपुरुष के रूप में विख्यात सरदार पटेल केवल स्वतंत्र भारत...

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