हिंसा, पत्थरबाजी और आगजनी के बाद उत्तर प्रदेश के सम्भल का माहौल गर्म है। नगरपालिका कर्मचारियों का कहना है कि कथित ‘जामा मस्जिद’ के पास से 5 ट्रैक्टर-ट्रॉली भर के ईंट-पत्थर मिले हैं, यानी लगभग 7500 ईंट-पत्थर। अब तक 4 लोगों की मौत हो चुकी है, वहीं 20 घायल बताए जा रहे हैं। अदालत ने सम्भल स्थित विवादित ढाँचे के सर्वे का आदेश दिया था। इसके बाद प्रशासनिक टीम शनिवार (23 नवंबर, 2024) की शाम सर्वे के लिए पहुँची। मस्जिद समिति को भी इसकी सूचना दे दी गई थी। निर्णय लिया गया कि रात में अँधेरा होने के कारण अगले दिन के उजाले में सर्वे किया जाएगा।
सर्वे के तहत विवादित ढाँचे की संरचना से कोई छेड़छाड़ नहीं की जाने वाली थी, बल्कि सिर्फ फोटोग्राफी-वीडियोग्राफ़ी ही होनी थी। 29 नवंबर को इस सर्वे की रिपोर्ट को अदालत में पेश किया जाना है। सर्वे शुरू होते ही उग्र भीड़ ने पुलिस पर पत्थरबाजी शुरू कर दी, कई वाहनों को फूँक दिया गया और गोलीबारी भी की गई। हिन्दू पक्ष का कहना है कि जिसे ‘जामा मस्जिद’ कहा जाता है वहाँ कभी हरिहर मंदिर हुआ करता था। मान्यता ये भी है कि भगवान विष्णु का दसवाँ व अंतिम कल्कि अवतार सम्भल में ही होना है। अब सम्भल शहर की स्थिति ये है कि वहाँ 78% जनसंख्या मुस्लिमों की है। डेमोग्राफी भारत में हिंसा का एक बड़ा कारण बनती जा रही है, एक नहीं बल्कि कई इलाक़ों में।
कैसे जमा हो गए 2500 पत्थरबाज, सम्भल में मुस्लिमों की आंतरिक लड़ाई भी
सम्भल में लगभग 2500 लोगों पर FIR हुई है, जिनमें समाजवादी पार्टी के सांसद जियाउर्रहमान बर्क और इसी पार्टी के स्थानीय नवाब इकबाल महमूद के बेटे नवाब सुहैल इकबाल का भी FIR में नाम है। सम्भल में स्कूल और इंटरनेट बंद कर दिए गए हैं। उपद्रवियों के 2-3 गुट वहाँ पर थे, ऐसे में इसे मुस्लिमों की आंतरिक लड़ाई से जोड़ कर भी देखा जा रहा है। इसका कारण ये है कि सम्भल जिले के ही कुंदरकी में डेढ़ लाख मुस्लिमों की जनसंख्या होने के बावजूद भाजपा के हिन्दू उम्मीदवार ने 1.44 लाख वोटों से जीत दर्ज की है। कहा जा रहा है कि रामवीर ठाकुर को राजपूत मुस्लिमों का समर्थन मिला, जो तुर्क मुस्लिमों से पीड़ित थे। तुर्क मुस्लिम वो हैं जिनके पूर्वज इस्लामी आक्रांताओं के साथ आए थे। वहीं राजपूत मुस्लिमों में धर्मांतरित मुस्लिमों की जनसंख्या अधिक है। सम्भल में शेख बनाम पठान का भी पुराना विवाद है। सांसद तुर्क हैं, स्थानीय विधायकके साथ उनकी वर्चस्व की लड़ाई भी चलती आ रही है।
सम्भल विवादित ढाँचा मामले की सुनवाई दीवानी अदालत में चल रही है। सर्वे के लिए ‘एडवोकेट कमीशन’ भी गठित किया गया था। हिन्दू पक्ष की तरफ से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन मोर्चा सँभाल रहे हैं। हमने हाल ही में अयोध्या में देखा कि कैसे न्यायालय में लंबी लड़ाई के बाद हिन्दू पक्ष का दावा साबित हुआ। 500 वर्षों के संघर्ष के पश्चात हमें न्याय मिला। इसी तरह काशी स्थित ज्ञानवापी में सर्वे के बाद शिवलिंग से लेकर कई हिन्दू प्रतीक चिह्न मिले। वहाँ स्पष्ट दिखता भी है की मंदिर को मस्जिद में तब्दील किया गया है। इसी तरह, मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि की जगह ‘शाही ईदगाह मस्जिद’ खड़ी कर दी गई।
सम्भल का इतिहास: इस्लामी आक्रांताओं का रहा बोलबाला
इस पूरे प्रकरण को समझने के लिए हमें सम्भल का इतिहास समझना होगा। सन् 1489 से लेकर 1517 के बीच सम्भल दिल्ली सल्तनत के सिकंदर खान लोदी की राजधानी थी। वो अफगान लोदी सल्तनत के संस्थापक बहलोल खान लोदी का बेटा था। ये लोग सुन्नी इस्लाम को मानते थे। सम्भल के इतिहास को समझने के लिए हमें रोहिलखंड के भूगोल को समझना पड़ेगा। इस क्षेत्र के अंतर्गत बरेली, मुरादाबाद, बदायूँ और रामपुर वाले जिले आते हैं। मुरादाबाद प्रमंडल के अंतर्गत ही सम्भल जिला पड़ता है। जुलाई 2012 में सम्भल को मुरादाबाद से काट कर ही अलग किया गया था। प्राचीन काल में ये पांचाल साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था। बरेली का आँवला स्थित अहिच्छत्र एक प्रचीन शहर है जो उत्तरी पांचाल के अहीरों की राजधानी हुआ करती थी।
सन् 1266 में गियासुद्दीन बलबन ने सम्भल पर हमला किया था। इसके बाद उसने अमरोहा पर हमला किया था। वहाँ उसने अपनी फ़ौज को हिन्दुओं के नरसंहार के आदेश दिए थे। इसी तरह, 1365 में फिरोज तुगलक ने रोहिलखण्ड पर हमला किया। वो मलिक ख़िताब को यहाँ का गवर्नर बना कर चला गया। 1403 में जौनपुर के सुल्तान इब्राहिम ने सम्भल पर हमला किया और यहाँ एक शासक नियुक्त कर के चला गया। इसके 4 साल बाद मुहम्मद तुगलक ने इब्राहिम के लोगों को यहाँ से निकाल बाहर किया। 1473 में जौनपुर के सुल्तान हुसैन ने एक बार फिर से कुछ दिनों के लिए सम्भल में अपना शासन स्थापित किया।
स्कॉटिश इतिहासकार विलियम विल्सन हंटर ‘द इम्पीरियल गैज़ेटियर ऑफ इंडिया’ के वॉल्यूम 6 में लिखते हैं कि 1498 में सिकंदर लोदी ने तो एक तरह से सम्भल को अपनी राजधानी ही बना ली और वो 4 वर्षों तक यहीं रह कर शासन करता रहा। इस तरह ये क्षेत्र फिर से दिल्ली के सुल्तानों की गद्दी के अधीन रहा। इस दौरान सम्भल और इसके आसपास के इलाक़े दिल्ली दरबार का ठिकाना रहे। अब सोचिए, क्या ये मानने वाली बात है कि हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त करने वाला सिकंदर लोदी सम्भल में बैठा रहा और उसने वहाँ स्थित मंदिरों को छोड़ दिया होगा? सिकंदर लोदी की माँ हिन्दू थीं, ऐसे में उलेमाओं को ख़ुश करने के लिए उसने कट्टर सुन्नी इस्लाम के सारे लक्षणों को अपनाया, यहाँ तक कि एक ब्राह्मण को ईशनिंदा के आरोप में सज़ा-ए-मौत भी दे दी।
विलियम विल्सन हंटर लिखते हैं कि सम्भल में अह्या मारन ने बगावत कर दी थी और उसने सुल्तान आदिल शाह द्वारा भेजी गई फौज को हराया। इसके बाद कठेरिया राजा मित्रसेन ने हमला किया, लेकिन उन्हें हार झेलनी पड़ी। कठेरिया राजपूतों के कारण ही इस क्षेत्र को कठेर भी कहा गया। अह्या और राजा के बीच का युद्ध कुंदरकी में हुआ था। वही कुंदरकी, जहाँ भाजपा की जीत अभी चर्चा में है। मुगलकाल आने पर हुमायूँ ने अली कुली खान को सम्भल का गवर्नर नियुक्त किया। 1566 में अकबर के शासनकाल में तैमूर के वंशजों मिर्जाओं ने बगावत कर दी और मुग़ल अधिकारियों को सम्भल के किले में बंदी बना लिया था। हालाँकि, हुसैन खान के मार्च के बाद वो अमरोहा भाग खड़े हुए।
शाहजहाँ ने अपने समय में रुस्तम खान को यहाँ का गवर्नर बनाया। शाहजहाँ ने अपने बेटे के नाम पर इस जगह का मुरादाबाद रखा। मुराद शाह को बाद में आलमगीर ने मार डाला था। आलमगीर, जो औरंगज़ेब कहलाया। मुगलों की शक्ति क्षीण होने के साथ ही कठेरिया ने फिर बगावत की और इस्लामी आक्रांताओं ने यहाँ से कन्नौज का रुख किया। 1735 में मुहम्मद शाह ने फिर से यहाँ कब्ज़ा कर कर के अपना अधिकारी नियुक्त किया। कालांतर में 1744 आते-आते रोहिलखण्ड अवध के नवाब के अंतर्गत आ गया और फिर 1801 में अंततः अंग्रेजों के अधीन हुआ।
सम्भल का वो इतिहास, जिसे छिपाने की हो रही कोशिश
अब आपको बताते हैं कि कैसे सम्भल हिन्दुओं के लिए एक पवित्र स्थल हुआ करता था, भले ही आज जिले में एक तिहाई जनसंख्या मुस्लिमों की हो और डेमोग्राफी की ऐसी-तैसी कर दी गई हो। मुगलों के दरबारी लेखक अबुल फज़ल ने लिखा है कि सम्भल में एक हरि मंदिर है और मान्यता है कि भगवान विष्णु का कल्कि अवतार वहीं होगा। ‘Rays and Ways of Indian Culture’ नामक पुस्तक में DP सूबे लिखते हैं कि अब उसी जगह एक मस्जिद है। DP दुबे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास, संस्कृति और आर्कियोलॉजी के प्रोफेसर रहे हैं। वो बताते हैं कि प्राचीन काल में इस क्षेत्र का नाम ‘शम्भूपल्लिका’ हुआ करता था।
बाबर ने सम्भल के कई मंदिरों को ध्वस्त किया, उनमें से एक हरिहर मंदिर भी था। विष्णु शंकर जैन द्वारा दायर की गई याचिका में भी बताया गया है कि सन् 1529 में बाबर यहाँ आया था और उसने मंदिर को ध्वस्त किया। एनेट सुसानाह बेवेरिज ने तुर्किश भाषा में लिखे गए ‘बाबरनामा’ का अंग्रेजी अनुवाद किया है, जिसके पृष्ठ संख्या 687 पर वर्णन है कि ने बाबर के आदेश पर यहाँ के मंदिर को ध्वस्त कर उसे मस्जिद में तब्दील कर दिया था। ये सब सम्भल के धार्मिक महत्व को रेखांकित करता है। इतना ही नहीं, एक और धूर्तता देखिए। यहाँ एक फर्जी शिलालेख के जरिए उसमें बाबर का नाम जोड़ दिया गया है। ASI की रिपोर्टिंग के दौरान यहाँ के कई मुस्लिमों ने भी इसे स्वीकार किया।
इसमें बाबर का नाम भी गलत लिखा है। ये बाबर का नाम ‘शाह जमजह मुहम्मद बाबर’ लिखा है, जबकि बाबर का असली नाम ‘शाह जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर’ था। ASI की इस रिपोर्ट में ये भी जिक्र है कि कैसे इस मंदिर का गुंबद पृथ्वीराज चौहान ने बनवाया था। हिन्दू मंदिर के उन पत्थरों और ईंटों को हटा दिया गया, जिससे ज़रा सा भी इशारा मिलता हो कि ये कभी मंदिर हुआ करता था, जिनमें कोई हिन्दू प्रतीक चिह्न के संकेत मिलते थे। वहीं इसे मस्जिद का रूप देने के लिए जिन ईंटों का इस्तेमाल किया गया था वो छोटी थीं और इसके लिए मिट्टी के घोल का इस्तेमाल किया गया था। इस तरह, बाद में जोड़े गए मुस्लिम हिस्से को आसानी से पहचाना जा सकता है। जब ये मंदिर हुआ करता था तब इसमें सिर्फ एक दरवाजा था – पूर्व में। इसे मंदिर में तब्दील करने के लिए उत्तर और दक्षिण में दो-दो दरवाजे जोड़े गए।
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद मुस्लिमों ने यहाँ पूरी तरह से अपना कब्ज़ा स्थापित किया। अदालत में इस विवादित ढाँचे को लेकर केस भी चला था, लेकिन ऊपर जिस फर्जी शिलालेख का जिक्र किया गया है उसका इस्तेमाल कर के मुस्लिम पक्ष जीत गया। अब इसी कारण सर्वे का विरोध हो रहा है, क्योंकि सच्चाई सामने आ जाएगी।