आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल एक पॉडकास्ट में मान गए हैं कि यमुना की सफाई से वोट नहीं मिलेंगे। शायद यही कारण है कि खुद को ईमानदार बताकर अलग लेवल की राजनीति करने का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार ने कभी यमुना सफाई को गंभीरता से नहीं लिया। इसका नतीजा ये निकला कि यमुना नदी के हालात बद से बदतर हो गए हैं। जो नदी हिंदुओं के पवित्र मानी जाती है, वो एक सिर्फ नाले में तब्दील होकर रह गई है। इसके बावजूद अरविंद केजरीवाल चुनाव दर चुनाव दिल्लीवासियों से ये दावा करते रहते हैं कि वे यमुना नदी को स्वच्छ बनाकर रहेंगे। केजरीवाल ने ये स्वीकार किया कि वे 2020 के चुनावों के दौरान किए गए तीन बड़े वादों को पूरा करने में विफल रहे हैं। ये 3 वादे हैं- यमुना नदी की सफाई, हर घर में स्वच्छ नल का पानी पहुँचना और दिल्ली की सड़कों को यूरोपीय मानकों के अनुरूप बनाना।
ये मानते हुए भी यमुना नदी उन्हें वोट नहीं दिला सकती, फिर वे अपने बयान को मॉडिफाई किए और कहा कि इस मुद्दे पर वोट नहीं मिलेगा, फिर वे यमुना को साफ करेंगे। पिछले दिल्ली विधानसभा चुनाव यानी 2020 के अपने बयान में भी उन्होंने कहा था कि अगर उनकी आम आदमी पार्टी की सरकार बनी तो वे यमुना को साफ कर देंगे। हालाँकि, इसमें वे पूरी तरह विफल रहे। इस कार्यकाल में उनकी सरकार सिर्फ भ्रष्टाचार और जेल की बातें करती रही। साल 2020 के अपने पुराने वादे को पूरा नहीं करने को लेकर अरविंद केजरीवाल ने बहाना बनाया। उन्होंने कहा कि इसके दो मुख्य कारण हैं। पहला, कोविड-19 महामारी और दूसरा, खुद एवं आम आदमी पार्टी के नेताओं का जेल जाना। उन्होंने कहा कि “पहले ढाई से तीन साल कोविड-19 महामारी में ही निकल गए। उसके बाद एक-एक करके हमारे महत्वपूर्ण सदस्यों को फर्जी मामलों में जेल भेजा गया।”
अरविंद केजरीवाल का कहना है कि यमुना को साफ करने का उनके पास पूरा प्लान है और उनकी सरकार के पास पैसा भी है। ऐसे में सवाल है कि जब दोनों है उनके पास तो दिक्कत कहाँ है? जाहिर है कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार की प्राथमिकता वाली सूची में यमुना नदी की सफाई है ही नहीं। इसके बावजूद अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि उन्हें एक मौका दिल्ली की जनता दे और वे इस बार ज़रूर यमुना नदी को साफ कर देंगे। हालाँकि, इस तरह के झूठे वादे उन्होंने साल 2015 और साल 2020 के चुनाव में भी किए थे, लेकिन वे वादे सिर्फ वादे ही बनकर रह गए। इन वादों को पूरा नहीं होने की वजह अरविंद केजरीवाल कोविड को प्रमुख कारण बता रहे हैं, लेकिन शायद ये वजह नहीं है।
अरविंद केजरीवाल का यह दावा पूरी तरह झूठा है। साल 2020 में कोविड के शुरुआत में लॉकडाउन 24 मार्च से 31 मई 2020 तक लगा रहा। इसके बाद कुछ दिशा-निर्देशों के साथ यह लॉकडाउन 1 जून 2020 को हटा लिया गया। इसके बाद साल 2021 में 5 अप्रैल से 15 जून 2021 तक लॉकडाउन रहा। उसके बाद हालात धीरे-धीरे सामान्य होने लगे थे। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बन चुकी थी। अगले साल यानी 2021 में लॉकडाउन भी खत्म हो चुका था। इसके बाद सरकार के पास 4.5 साल का वक्त था। इन साढ़े चार सालों में दिल्ली सरकार ने यमुना को साफ करने के लिए कोई गंभीर उपाय नहीं किए।
नवंबर 2019 में उन्होंने कहा था कि उनकी सरकार ने अगले चार से पाँच वर्षों में यमुना को साफ करने की योजना बनाई है और लोग इसमें डुबकी लगा सकेंगे। उसी साल दिसंबर में उन्होंने अपनी रैली में उपस्थित लोगों से वादा किया था कि अगले चुनाव यानी साल 2025 में तक वे पूरे गाँव को यमुना में स्नान के लिए ले जाएँगे। जनवरी 2020 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अरविंद केजरीवाल ने दावा किया था, “यमुना को साफ किया जाएगा और प्रदूषण मुक्त बनाया जाएगा। हम वादा करते हैं कि पांच साल बाद कोई भी व्यक्ति गंदे पानी से होने वाली बीमारियों के डर के बिना यमुना में डुबकी लगा सकेगा।”
यही दावा उन्होंने साल 2021 में दोहराया। अरविंद केजरीवाल ने फिर दावा किया था कि वे 2025 तक यमुना को इतना साफ कर देंगे कि लोग यहाँ आकर डुबकी लगाएँगे। हालाँकि, डूबकी लगाने की बात तो दूर, गंदगी देखकर कोई पास भी नहीं जाना चाहता। वहीं, साफ करने की बात भी खयाली पुलाव साबित हुआ। यमुना को और गंदा होने से बचाने के लिए भी उनकी सरकार ने कोई उपाय नहीं किया। इसका परिणाम ये हुआ कि यमुना दिन-पर-दिन गंदी होती चली। आज अगर को यमुना में स्नान कर ले तो उसे गंभीर बीमारियाँ हो सकती हैं।
हाँ, इस दौरान वे अपने अपने निवास स्थान मुख्यमंत्री आवास को आलीशान बनाने में लगे। उसमें लाखों रुपए के सोफा, टॉयलेट, टीवी, गीजर जैसे अत्याधुनिक सामान की व्यवस्था करते रहे और इस पूरी व्यवस्था पर उन्होंने लगभग 50 करोड़ रुपए खर्च कर दिए। मुख्यमंत्री के आवास को बड़ा करने के लिए उन्होंने अगल-बगल के घरों का अधिग्रहण करके उसे बड़ा बनाया। विरोधी दल भाजपा का तो यहाँ तक कहना है कि अपने शीशमहल को बनवाने में अरविंद केजरीवाल 200 करोड़ रुपए खर्च करने वाले थे। अब इस शीशमहल को लेकर अरविंद केजरीवाल मुश्किल में है। दिल्ली सरकार की सतर्कता विभाग ने लोक निर्माण विभाग से उनके घर के भव्य वस्तुओं की सूची माँगी है। इसके साथ ही उनके बंगले से संबंधित एक पूरी रिपोर्ट माँगी है।
खैर, वापस लौटते हैं यमुना नदी की सफाई के मुद्दे पर। अरविंद केजरीवाल ने यमुना नदी को साफ करने की बात उन्होंने सिर्फ 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान ही नहीं की थी। इसके पहले साल 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान भी उन्होंने यही किया था। हालाँकि, साल 2020 में जब उनसे 2015 के वादे को याद दिलाई गई तो वे इससे साफ नकार गए। साल 2020 में एक कार्यक्रम के दौरान अरविंद केजरीवाल ने कहा था, “मैं 25 बार बोल चुका हूँ कि अगर 2025 तक मैं यमुना साफ ना करूँ, तो मुझे अगली बार वोट मत देना।” उस दौरान उन्होंने इंडिया टुडे के एक कार्यक्रम में गोवा में उन्होंने यह बात कही थी। जब पत्रकार ने उनसे पूछा कि साल 2015 में भी उन्होंने ऐसा ही दावा किया था। तब अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि उन्होंने साल 2020 के चुनाव से पहले कहा था कि 2015 के चुनावों के दौरान उन्होंने यमुना को साफ करने को लेकर किसी तरह का वादा नहीं किया था।
दरअसल, साल 2015 में यमुना नदी को साफ करने का दिखावा करने के लिए वे अपनी पार्टी के नेताओं और कुछ अधिकारियों को लेकर यमुना के तट पर गए थे। वहाँ उन्होंने कहा था, “यमुना अभी साफ नहीं हुई है। ये बात हम भी मानते हैं, लेकिन ये आज एक बहुत बड़ी शुरुआत हुई है। यहाँ पूरी दिल्ली सरकार बैठी हुई है। दिल्ली सरकार के सारे मंत्री यहाँ बैठे हुए हैं। दिल्ली के बड़े-बड़े अफसर यहाँ बैठे हुए हैं। आज यहाँ दिल्ली सरकार संकल्प लेकर जा रही है कि हम पाँच साल के अंदर….. पाँच साल से पहले… हम यमुना को जीवित करेंगे। यहाँ यमुना के तट पर दिल्ली के एक-एक व्यक्ति को लाना है और उन्हें यहाँ गौरवान्वित महसूस करवाना है।”
साल 2025 के चुनाव को देखते हुए उन्होंने यमुना नदी को साफ करने का दिखावा भी किया। यमुना को साफ करने के लिए उन्होंने दिल्ली सरकार के बजट में भी प्रावधान किया और नदी को साफ करने का एक बार फिर से वादा किया। दिल्ली सरकार द्वारा वित्त वर्ष 2023-24 के लिए पेश किए गए बजट में यमुना नदी की सफाई के लिए करीब 1,028 करोड़ रुपए रखे गए हैं। मुख्यमंत्री के रूप में अरविंद केजरीवाल ने फिर वादा किया था कि वह अगले विधानसभा चुनाव में नदी में डुबकी लगाएँगे।
ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि अगर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की सरकार ने यमुना की सफाई के लिए कोई कदम नहीं उठाया तो यमुना की सफाई के नाम पर केंद्र से लिए गए पैसे कहाँ गए? क्या उन्होंने अगले चुनाव का प्रबंधन करने के लिए इसका इस्तेमाल किया? इसको स्पष्टता नहीं है। भाजपा के दिल्ली अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा का कहना है कि यमुना की सफाई के लिए केंद्र सरकार ने बीते आठ सालों में दिल्ली सरकार को कुल 8,500 करोड़ रुपए दिए हैं। उनका आरोप है कि अरविंद केजरीवाल उन पैसों को हजम कर चुके हैं।
इतना ही नहीं, दिल्ली की निगरानी की बागडोर जब से उपराज्यपाल के पास आई है, तब से अरविंद केजरीवाल सरकारी कार्यों में राजनीतिक मकसद से हस्तक्षेप करते नज़र आए हैं। इसकी एक बानगी दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना के बयान से मिलता है। पिछले महीना सक्सेना ने कहा था कि यमुना में प्रदूषण को रोकने के लिए उन्होंने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) के निर्देश पर जनवरी 2023 में उनकी देखरेख में यमुना की सफाई शुरू हुई थी। इसके छह माह बाद ही सुप्रीम कोर्ट जाकर उन्होंने इस पर रोक लगवा दिया। सक्सेना का कहना है कि यदि यह काम जारी रहता तो आज यमुना की स्थिति कुछ और होती।
वीके सक्सेना ने कहा था कि उन्होंने जून 2022 में नजफगढ़ ड्रेन की सफाई शुरू कराई थी। दरअसल, यमुना में 74 प्रतिशत प्रदूषण इसी ड्रेन से होता है। उन्होंने कहा था कि 23 वर्षों तक सुप्रीम कोर्ट और सात वर्षों से एनजीटी की निगरानी में यह काम किया गया, लेकिन स्थिति में बहुत सुधार नहीं हुआ। इसके बाद एनजीटी के निर्देश में उन्होंने जनवरी 2023 में यमुना की सफाई शुरू कराई। छह महीने में 11 किलोमीटर से अधिक क्षेत्रों में सफाई कार्य हुआ। इस अभियान में नदी किनारे स्थित मंदिरों के 570 पुजारियों को जोड़ा गया। 1600 मस्जिदों और चर्च से सहयोग लिया गया। नदी के तट पर लगभग दो लाख पेड़ लगाए गए। लेकिन, श्रेय लेने की नीति ने अरविंद केजरीवाल को राजनीति का मौका दे दिया। उन्हें लगा कि इसका श्रेय केंद्र सरकार को चला जाएगा और उन्होंने इसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज कर दिया। परिणाम ये हुआ कि काम रुक गया।
इतना ही नहीं, पिछले साल अप्रैल में अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली दिल्ली सरकार ने 2017-2021 के बीच 5 सालों में यमुना की सफाई के नाम पर करीब 6,856.91 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। हालाँकि, सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसी अवधि में दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के आँकड़े बताते हैं कि यमुना नदी में प्रदूषण दोगुना हो गया है। कुछ ऐसा है अरविंद केजरीवाल का यमुना साफ करने का अभियान। पैसों का प्रावधान किया जाता है, केंद्र से पैसे लिए जाते हैं लेकिन नदी साफ नहीं होती है। इसके उलट वह और ज्यादा प्रदूषित हो जाती। इसे राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार ना कहा जाए और क्या कहा जाए?