महाकुम्भ 2025 – ये केवल एक आयोजन नहीं है, इस बार ये विश्व को सनातन एकता, यूपी सरकार की प्रबंधन क्षमता और केंद्र में स्थिर सरकार के कारण लगातार बढ़ती भारत की तस्वीर को वैश्विक मंच पर ले जाने का मौका है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस बार प्रयागराज में आयोजित हो रहे महाकुम्भ को अपनी प्रतिष्ठा का विषय बनाया है। हिंदुत्व के मुद्दे पर मुखर रहे CM योगी आदित्यनाथ के रहते महाकुम्भ जैसा आयोजन सामान्य ही रह जाए, तो शायद पूरी की पूरी भाजपा एक बड़ा मौका गँवा देती। लेकिन, यूपी सरकार ने इस मौके को सही में मौका बनाया।
इस बार प्रयागराज महाकुम्भ में 40 करोड़ श्रद्धालुओं के पहुँचने की संभावना है। हमारे अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सारा ध्यान ये दिखाने पर है कि भारत और चीन के अलावा किसी देश की जितनी जनसंख्या नहीं है, उससे अधिक लोग प्रयागराज जैसे छोटे शहर में डेढ़ महीने में पहुँचेंगे। न केवल पहुँचेंगे, बल्कि संगम में डुबकी लगाने के बाद वहाँ विभिन्न मंदिरों में दर्शन करेंगे, रुकेंगे, घूमेंगे-फिरेंगे। और इन सबके पीछे होगा कुशल सरकारी प्रबंधन। तकनीक का भी भरपूर इस्तेमाल होगा, ड्रोन से लेकर गूगल नेविगेशन तक की व्यवस्था होगी।
CMO में स्थित हमारे सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ये भी बताते हैं कि कैसे महाकुम्भ 2025 उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को गति देने का भी एक बड़ा माध्यम बनेगा। प्रयागराज और आसपास के इलाक़ों में रेहड़ी-पटरी वालों से लेकर बड़े-बड़े होटल चलाने वालों तक, स्थानीय उत्पाद बेचने वालों तक – सबकी मोटी कमाई होगी। श्रद्धालु यहाँ आएँगे तो रहने-खाने के लिए पैसे ख़र्च करेंगे ही, कुछ न कुछ ख़रीद कर घर ले जाएँगे ही। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। यही श्रद्धालु यूपी के अन्य धार्मिक स्थलों की यात्रा करेंगे। पूजा के लिए फूल से लेकर अगरबत्ती तक, ये सब बिकने से सामान्य व्यापारियों और किसानों को फायदा होगा।
मदन मोहन मालवीय और वायसराय: महाकुम्भ के प्रचार-प्रसार में कितना ख़र्च?
सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ महाकुम्भ को लेकर एक बड़ा ही रोचक किस्सा सुनाते हैं। इस किस्से से आपको पता चल जाएगा कि उनके दिमाग में क्या कुछ चल रहा है।
ये किस्सा है BHU के संस्थापक महामना मदन मोहन मालवीय से जुड़ा। असल में अंग्रेजों के समय भी महाकुम्भ के कारण सरकार को भारी कमाई होती थी। अंग्रेज ये देख कर हैरान रहते थे कि कैसे लाखों लोग सुव्यवस्था बना कर पहुँचते हैं और इस आयोजन को सफल बनाते हैं। वायसराय जनरल लॉर्ड लिनलिथगो ने बिना किसी भेदभाव के पूरे भारत के अलग-अलग इलाक़े से आए हिन्दुओं को महाकुम्भ में स्नान करते देखा तो वो हैरान रह गया। उसने मालवीय जी से पूछा कि इस प्रचार-प्रसार में कितने रुपए खर्च होते हैं?
अब ब्रिटिश सरकार को कमाई का तो पता था। सन् 1882 में ही महाकुम्भ से सरकार को 50,000 रुपए के आसपास की कमाई हुई थी। लेकिन, प्रचार-प्रसार में कितना ख़र्च? 1942 महाकुम्भ के दौरान पूछे गए इस प्रश्न का मदन मोहन मालवीय ने जवाब दिया – सिर्फ 2 पैसे। वायसराय हैरान रह गया। उसने पूछा – आखिर कैसे? महामना ने एक पंचांग निकाला और कहा कि ये सिर्फ दो पैसे में मिलता है, लोग खुद ही देखते हैं कि कौन सा पर्व-त्योहार कब है और वो तीर्थाटन के लिए निकल जाते हैं। वो वायसराय को ये समझाने में कामयाब रहे कि महाकुम्भ भारतीय संस्कृति की एक धारा है जो अनवरत बहती आ रही है।
2023 में महाकुम्भ के दौरान मची थी भगदड़: आज़म खान और मुस्लिम तुष्टिकरण
याद कीजिए 2013 का महाकुम्भ। एक वर्ग की बड़ी कोशिश रहती है कि भारत के हर एक पर्व-त्योहार व धार्मिक आयोजन को लेकर नकारात्मकता फैलाई जाए। 2013 में जब उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार थी, तब इसी प्रयागराज में महाकुम्भ के दौरान हुई भगदड़ में 42 लोगों की मौत हो गई थी। रेलवे स्टेशन पर एक प्लेटफॉर्म की तरफ जाने के दौरान भगदड़ मची थी। मृतकों में महिलाएँ थीं, बच्चे थे। महाकुम्भ में महिलाओं और बुजुर्गों की अच्छी-ख़ासी जनसंख्या रहती है। मंत्री आज़म खान को इस्तीफा देना पड़ा था। अव्वल तो ये कि तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उलटे उनकी तारीफ़ की और उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया।
सोचिए, आयोजन हिन्दुओं का लेकिन जिम्मेदारी आज़म खान को। ये स्तर था तुष्टिकरण का। तभी तो 2014 में मुलायम सिंह यादव ने अपना 75वाँ जन्मदिन रामपुर स्थित जौहर यूनिवर्सिटी में मनाया था जो आज़म खान की है। जन्मदिन को भव्य बनाने की सारी व्यवस्थाएँ आज़म खान ही देख रहे थे। 75 फ़ीट का केक काटा गया था, विदेश से विक्टोरिया बग्गी मँगाई गई थी और 11 किलोमीटर तक यात्रा चली थी। ख़ैर, इस बार महाकुम्भ का इस्तेमाल राजनीति के लिए नहीं बल्कि भारतीय सनातन परंपरा को सच्चे रूप में प्रस्तुत करने के लिए हो रहा है।
इस बार महाकुम्भ में पुख्ता होगी सुरक्षा व्यवस्था
2013 की घटना से सीखते हुए इस बार प्रयागराज रेलवे स्टेशन पर स्नाइपरों की नियुक्ति की गई है। किसी भी संदिग्ध गतिविधि की स्थिति में त्वरित समाधान होगा। पर्याप्त मात्रा में CCTV कैमरे इंस्टॉल किए गए हैं, RPSF-RPF-GRP की अतिरिक्त टुकड़ियाँ भी तैनात की गई हैं। हर यात्री के सामान की गहन जाँच होगी। भगदड़ की स्थिति से निपटने के लिए मॉक ड्रिल की जा रही है। NDRF, SDRF और RAF की टीमें इमरजेंसी की स्थितियों से निपटने के लिए रहेंगी। प्रयागराज रेलवे स्टेशन को नया रूप भी दिया गया है।
इतना ही नहीं, इस बार कुल 7 सुरक्षा घेरों में महाकुम्भ को आयोजित कराया जा रहा है। आसपास के जिलों से प्रयागराज में घुसने वाले वाहनों की चेकिंग – ये होगा पहला सुरक्षा घेरा। वहीं शीर्ष स्तर के सुरक्षा अधिकारी तमाम स्नानघरों के आसपास रहेंगे, जो अंतिम सुरक्षा घेरा होगा। हजारों CCTV कैमरे लगे हैं, 10,000 से अधिक जवान तैनात होंगे। कैमरे सिर्फ आकाश में ड्रोन के साथ ही नहीं रहेंगे, बल्कि गंगा-यमुना की जलधारा के भीतर भी विशेष कैमरे मौजूद रहेंगे। सोशल मीडिया पर साइबर क्राइम के अधिकारी नज़र रखेंगे। 11 भाषाओं में तीर्थयात्रियों को जानकारियाँ मुहैया कराई जाएँगी। 44 घाट होंगे, इंटरनेट स्पीड बेहतर रखी जाएगी।
द्वादश माधव से लेकर सरस्वती कूप तक, हर जगह व्यवस्थाएँ सुदृढ़
इसके अलावा और क्या हो रहा है? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जोर इस बात पर है कि प्रयागराज आने वाले श्रद्धालु केवल महाकुम्भ में स्नान कर के ही नहीं निकल जाएँ, बल्कि प्रयागराज के अन्य धार्मिक स्थलों की भी यात्रा करें। जैसे, वहाँ द्वादश माधव के दर्शन की मान्यता है। एक-एक माधव के बारे में जानने-समझने में कई घंटे लग सकते हैं। द्वादश माधव मंदिरों में परिक्रमा से लेकर दर्शन तक की व्यवस्था कर दी गई है। शंकराचार्य निरंजन देवतीर्थ ने धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के साथ 1961 में माघ मास में और 1991 में स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारीने परिक्रमा आयोजित करवाई थी।
इसी तरह, CM योगी आदित्यनाथ इसे लेकर भी उत्साहित हैं कि सरस्वती कूप की महिमा भी लोग जानें। उनका जोर है कि वहाँ भी लोग दर्शन करें, क्योंकि प्रयागराज में गंगा-यमुना के अलावा सरस्वती नदी का भी संगम होने की मान्यता है। सरस्वती कूप से लोग जल घर ले जा सकें, इसकी भी व्यवस्था की गई है। वहाँ पूरा का पूरा कॉरिडोर बनाया गया है। यह किले में स्थित है और इसकी देखरेख भारतीय सेना करती है। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या, काशी और मथुरा में भी श्रद्धालुओं के लिए तमाम व्यवस्थाएँ कराई है क्योंकि कुम्भ नहाने आने वाले अधिकतर लोग यहाँ भी दर्शन करने जाएँगे ही।
नैमिषारण्य की महिमा, महाकुम्भ में मिट जाते हैं सारे भेदभाव
इन सबके अलावा एक अन्य स्थल है जहाँ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विशेष ध्यान दे रहे हैं। वो है – नैमिषारण्य। नैमिषारण्य वो जगह थी जहाँ प्राचीन काल में धर्माचार्यों की सभाएँ होती थीं और सूत व शौनक जैसे ऋषियों के मुख से निकलीं कथाएँ हमारे पुराणों में समाहित हुईं। सीतापुर जिले में गोमती नदी के किनारे स्थित इस तीर्थस्थल वहाँ घाटों के निर्माण का कार्य लगातार चल रहा है। नैमिषारण्य की महत्ता पर CM योगी आदित्यनाथ लगातार बात करते हैं, इससे साफ़ है कि वहाँ अभी अगले कुछ वर्षों में जबरदस्त कार्य होंगे।
मुख्यमंत्री का मुख्य उद्देश्य दुनिया को यह बताने का है कि महाकुम्भ एक ऐसा आयोजन है जहाँ सारे भेद मिट जाते हैं। यानी, हिन्दू धर्म में शैव, वैष्णव और शाक्त समेत तमाम पंथ होने की बातें की जाती हैं। जातिगत भेदभाव की बातें की जाती हैं। दक्षिण भारत में हिन्दू धर्म का अलग रूप होने की बात की जाती है। लेकिन, महाकुम्भ एक ऐसा आयोजन है जहाँ क्या शैव और क्या वैष्णव, सारे अखाड़े हिस्सा लेते हैं। क्या तमिलनाडु और क्या कश्मीर, हर जगह के हिन्दू पुण्य का भागी बनने के लिए पहुँचते हैं। क्या ब्राह्मण, क्या वैश्य, क्या जाटव और क्या जनजातीय समाज – सब पहुँचते हैं।