सोचिए कैसा हो अगर यूरोप या ब्रिटेन के किसी धार्मिक उत्सव को लेकर कोई खबर छपे और उसमें चर्च के पादरियों को सम्मान देने के बजाय उनकी पहचान को उनके कपड़ों और रंग तक ही सीमित कर दिया जाए। ऐसे स्थिति में यह मुद्दा पूरी दुनिया में बहस का केंद्र बन जाएगा और यूरोप के तमाम देश उस खबर को छापने वाले पर टूट पड़ेंगे। अब भारत में आते हैं, भारत में दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन ‘महाकुंभ’ हो रहा है। इस महाकुंभ में करोड़ों साधु-संन्यासी और श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। इनमें बड़ी संख्या में हिंदू साधना परंपरा के प्रतिनिधि नागा साधु भी मौजूद हैं। आध्यात्म के उच्चतम स्तर को प्राप्त करने के लिए कपड़े जैसी मौलिक ज़रूरत को भी त्याग देने वाले इन नागा साधुओं का ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (BBC) ने मज़ाक़ उड़ाया है।
यूनाइटेड किंगडम (UK) के सरकारी मीडिया BBC ने उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में चल रहे भव्य महाकुंभ को लेकर खबर छापी और इसमें नागा साधुओं का अपमान किया गया है। BBC ने अपनी हेडिंग में लिखा ‘Naked ash-smeared ascetics to lead India bathing spectacle’ यानी BBC ने नागा साधुओं को ‘राख से सना’ और ‘नग्न’ बताया और कुंभ को बस एक ‘तमाशे’ जैसा। इस खबर को लेकर ही कुछ समय बाद बवाल और BBC का विरोध शुरू हो गया। सोशल मीडिया पर यूज़र्स ने BBC की खूब खिंचाई की। हालांकि, BBC ने जो नई हेडलाइन बनाई है उसमें से ‘Naked’ शब्द को हटा दिया गया और ‘ascetics’ को बदलकर ‘Holy men’ कर दिया गया।
BBC की जिस पत्रकार गीता पांडेय ने इस खबर को लिखा है वो खुद भी शायद हिंदू ही हैं। कम से कम नाम से तो ऐसा लगता है। लेकिन गीता ने पहली बार ऐसी खबर लिखी हो ऐसा भी नहीं है। इन्हीं गीता ने अपनी एक पोस्ट और खबर में गैंगस्टर अतीक अहमद को रॉबिनहुड बताया था जो गरीबों की मदद करता है।
एक और BBC जहां तपस्वियों का मज़ाक उड़ता है तो दूसरी और यूरोप के Nudefest को वो प्रकृति के लिए वरदान के तौर पर पेश करता है। Nudefest की एक खबर की BBC ने ‘Nudefest: Inside Europe’s largest naturist festival’ यानी ‘न्यूडफेस्ट: यूरोप के सबसे बड़े प्रकृतिवादी उत्सव से’ हेडिंग लिखी थी। महाकुंभ और नागा साधुओं का मज़ाक उड़ाने की वजह हिंदू मान्यताओं के विरोध के अलावा और क्या ही हो सकता है। हिंदुओं के सबसे अधिक तपस्वी माने जाने वाले नागा साधुओं का मज़ाक और उनके अपमान इसके लिए नया बहाना बना है।
नागा साधुओं ना केवल तपस्वी हैं बल्कि उन्हें धर्म के रक्षक के तौर पर भी देखा जाता है। शांत समय में हिमालय की बर्फानी गुफाओं से लेकर एकांत और निर्जन स्थानों में रहने वाले इन साधुओं ने ज़रूरत पड़ने पर शस्त्र भी उठाए हैं। माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने जब 4 मठों की स्थापना की थी तो किसी भी परिस्थिति में धर्म की रक्षा के लिए नागा साधुओं के दल बनाए थे। 1757 में जब अहमद शाह अब्दाली ने गोकुल पर आक्रमण किया था तो उसके 4000 सैनिकों को 111 नागा साधुओं ने मुंहतोड़ जवाब दिया था। अब्दाली की सेना के इसके बाद पांव उखड़ गए थे और सेना भाग गई थी। 1857 की क्रांति के दौरान सैकड़ों नागा साधुओं ने रानी लक्ष्मीबाई को बचाने के लिए अपने प्राणों को बलिदान दे दिया था। इस दौरान 745 से अधिक नागाओं ने अपनी जान दे दी थी। ये नागा साधुओं के लंबे बलिदानी इतिहास की झलकी मात्र है और ऐसे लोगों को BBC जैसे मीडिया हाउस मज़ाक़ उड़ा रहे हैं।