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श्रद्धा या जातिवाद: कैसे शुरू हुई केरल के मंदिरों में शर्ट ना पहनने की परंपरा?

संस्कृत के विद्वान डॉ. टी.एस. श्यामकुमार ने इस प्रथा की शुरुआत को जातिवाद से जोड़ा है

Shiv Chaudhary द्वारा Shiv Chaudhary
13 January 2025
in इतिहास, चर्चित
सबरीमाला मंदिर में काली शर्ट और मुंडू (धोती) पहनने की परंपरा है

सबरीमाला मंदिर में काली शर्ट और मुंडू (धोती) पहनने की परंपरा है

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केरल में पिछले कुछ दिनों से मंदिर में शर्ट उतारकर दर्शन करने की सदियों पुरानी परंपरा को लेकर एक नई बहस शुरू हो गई है। हाल ही में, केरल के प्रसिद्ध शिवागिरी मठ और श्री नारायण धर्म संघम ट्रस्ट के प्रमुख स्वामी सच्चिदानंद ने इस प्रथा को ‘घृणित’ बताते हुए इसे खत्म करने की मांग की है। स्वामी सच्चिदानंद ने कहा है कि शर्ट उतारने की प्रथा को ब्राह्मणों द्वारा पहने जाने वाले पुणूल (यज्ञोपवीत या जनेऊ) को दिखाने के लिए शुरू किया गया था और समय के साथ इसमें बदलाव किए जाने की ज़रूरत है।

केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन ने भी स्वामी सच्चिदानंद की इस मांग का समर्थन किया था और कहा था इस मांग को सभी मंदिरों को अपनाना चाहिए। विजयन ने कहा, “किसी को इसके लिए बाध्य करने की ज़रूरत नहीं है। समय के साथ कई प्रथाएं बदल गई हैं। श्री नारायण आंदोलन से जुड़े मंदिरों ने उस बदलाव को अपनाया है। मुझे उम्मीद है कि अन्य पूजा स्थल भी उस बदलाव का पालन करेंगे।” हालांकि, केरल बीजेपी और नायर सेवा समाज ने मुख्यमंत्री के बयान की निंदा की है।

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मंदिरों का पहनावा और विवाद

सहस्त्राब्दियों से लोगों का पहनावा ना केवल उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति बल्कि जाति, धर्म और लिंग के प्रतीक के तौर पर भी जुड़ा रहा है। विभिन्न समुदाय अपनी मान्यताओं के आधार पर अपने पहनावे का चुनाव करते आए हैं। इसमें भी मंदिरों के पहनावे को शारीरिक शुद्धता और पवित्रता के साथ जोड़ा जाता है। इसे ना केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है बल्कि कपड़ों के त्याग को भौतिकतावाद को छोड़कर आध्यात्मिक शुद्धता की ओर कदम बढ़ाए गए कदम के तौर पर देखा जाता है।

हालांकि, केरल के सभी मंदिरों के गर्भगृह में प्रवेश करने से पहले पुरुषों द्वारा शर्ट उतारे जाने की परंपरा नहीं है लेकिन तिरुवनंतपुरम के श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर, त्रिशूर के गुरुवयूर श्री कृष्ण मंदिर और कोट्टायम के एट्टुमानूर महादेव मंदिर जैसे कुछ प्रमुख मंदिरों में यह परंपरा सख्ती से लागू की जाती है। पद्मनाभस्वामी मंदिर में महिलाओं को साड़ी पहनना अनिवार्य है। सबरीमाला मंदिर में एक काली शर्ट और मुंडू (धोती) पहनने की परंपरा है। हालांकि, परंपराएं समय के साथ बदलती रही हैं और इन्हीं बदलावों के चलते शर्ट पहनकर दर्शन किए जाने की मांग ने ज़ोर पकड़ा है।

गुरुवयूर स्थित गुरुवयूर मंदिर में महिलाओं के सलवार पहनने पर कुछ समय प्रतिबंध लगा दिया गया था और वे केवल साड़ी पहनकर ही जा सकती थीं। लेकिन 2013 में इसे संशोधित किया गया और उन्हें सलवार पहनकर भी मंदिर में दर्शन की अनुमित दी गई।

केरल सरकार ने 1970 के दशक में भी मंदिर के ड्रेस कोड को खत्म करने का प्रयास किया था लेकिन तब इसका प्रभाव बहुत सीमित ही थी और इस फैसले से पीछे हटना पड़ा था। केरल उच्च न्यायालय ने 2014 में गर्भगृह के अंदर कपड़ों पर प्रतिबंध हटाने की याचिका को खारिज कर दिया था और इस मामले में कोर्ट ने आगम (तांत्रिक साहित्य की एक शाखा) के सिद्धांतों को माना था। कोर्ट ने ने आगमों को ‘मंदिरों के निर्माण, उनमें मूर्तियों की स्थापना और देवता की पूजा के आचरण से संबंधित औपचारिक कानून’ के ग्रंथ के रूप में परिभाषित किया था।

शर्ट उतारने की परंपरा पर क्या हैं मत?

केरल के कई मंदिरों में जारी शर्ट उतारने की प्रथा का कुछ विद्वान कोई शास्त्रीय आधार नहीं मानते हैं और संस्कृत के विद्वान डॉ. टी.एस. श्यामकुमार ने इस प्रथा की शुरुआत को जातिवाद से जोड़ा है। श्यामकुमार ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ से बातचीत में कहा कि इसका कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं है कि मंदिरों में शर्ट उतारने की शुरुआत कैसे हुई क्योंकि लंबे समय तक शर्ट अस्तित्व में नहीं थी। उन्होंने कहा, “केरल के शास्त्रों में स्पष्ट रूप से ये विवरण मिलते हैं कि 10वीं से 19वीं सदी के बीच हाशिए पर रहने वाले समुदायों को मंदिरों में प्रवेश से रोका गया था।”

श्यामकुमार ने कहा, “शूद्रों को मध्यकाल तक पद्मनाभस्वामी मंदिर में प्रवेश के दौरान ऊपरी शरीर को ढकने की अनुमति नहीं थी।” उन्होंने कहा कि शर्ट उतारने की प्रथा को परंपरा समझा जाना बिल्कुल गलत है और यह जातिवाद से जुड़ी हुई है। श्यामकुमार के मुताबिक, इस बात के भी प्रमाण हैं कि समृद्ध नायर समुदाय के लोगों से भी ब्राह्मणों के सम्मान में ऊपरी वस्त्र उतारने को कहा जाता था।

वहीं, लेखिका और मंदिर के तंत्रों पर शोध कर चुकीं लक्ष्मी राजीव का कहना है कि केरल में महिलाओं को स्तन ढकने के अधिकार के लिए लड़ना पड़ा जबकि पुरुषों ने कभी भी कपड़े पहनने को लेकर कोई विरोध नहीं किया था। उन्होंने कहा, “मेरा मानना ​​है कि पर्याप्त कपड़े न पहनने की यह प्रथा समय के साथ एक अनुष्ठान में विकसित हो गई।” उनका इस प्रथा को लेकर कहना है कि सभी पुरुष इस तरह के कपड़े पहनने में सहज नहीं होते हैं।

हालांकि, कुछ इतिहासकार और पुजारी इस प्रथा को जातिवाद के साथ जोड़े जाने से सहमत नहीं है और उनका मानना है कि यह गैर-ब्राह्मणों को मंदिरों से बाहर रखने के उद्देश्य से नहीं आई थी। इतिहासकार मनु एस. पिल्लई का कहना है कि केरल में यह सामान्य प्रथा थी कि लोग अपने कंधे से ‘थोर्थु’ हटा कर इसे कमर के चारों ओर लपेटते थे और यह बुजुर्ग और जमींदार जैसे लोगों के प्रति सम्मान दिखाने का एक तरीका था। पिल्लई ने कहा, “यहां लोग कभी भी अपने परिवार के बुजुर्ग के सामने ‘मेलमुण्डु’ (ऊपरी वस्त्र) या थोर्थु नहीं पहनता था।”

पिल्लई ने इस प्रथा को जनेऊ दिखाए जाने की वजह से शुरु किए जाने को खारिज करते हुए कहा कि मंदिर के पुजारी, ब्राह्मण व राजा भी मंदिरों में अपने ऊपरी वस्त्र उतारते थे और यह श्रद्धा व सम्मान का प्रतीक था। बकौल पिल्लई, तथाकथित उच्च जाति के अधिकांश लोग जनेऊ नहीं पहनते थे तो इस प्रथा जनेऊ से जुड़ी नहीं हो सकती है। उनका मानना है कि इस प्रथा की शुरुआत इस विश्वास के साथ हुई कि भगवान सभी से ऊपर हैं। उन्होंने कहा, “प्राचीन काल में त्रावणकोर और कोच्चि के राजा कभी भी अपनी कमर के ऊपर वस्त्र नहीं पहनते थे। उनके चित्रों में यह स्पष्ट रूप से नज़र आता है।”

केरल के ब्राह्मण पुजारियों के संगठन अखिल केरल तंत्री मंडलम के महासचिव एन. राधाकृष्णन पोट्टी ने कहा कि केरल के सभी प्रमुख मंदिरों में यह सदियों से प्रचलन में है। उन्होंने कहा कि माना जाता है कि पुरुष अपने हृदय और महिलाएं अपने माथे के माध्यम से मूर्ति की चमक को अवशोषित करती हैं। पोट्टी ने इस प्रथा का बचाव करते हुए कहा, “यह मंदिर में पूजा करने वालों के लिए आस्था का मामला है और इससे छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है।”

पोट्टी ने मंदिर के रीति-रिवाजों और प्रथाओं पर कनिप्पय्युर शंकरन नंबूदिरीपाद द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘क्षेत्राचारंगल’ का हवाला भी दिया है। इस पुस्तक में उन प्रथाओं की सूची दी गई है जिनसे पुरुषों को मंदिरों में जाने से बचना चाहिए। उन्होंने कहा, “इसमें आपके बालों पर घी और तेल लगाने और आपके शरीर के ऊपरी हिस्से पर कपड़े पहनने के साथ-साथ सिर पर टोपी पहनने का भी ज़िक्र है।” पोट्टी ने कहा, “किन्हीं भी सुधार को लागू करने और प्रथाओं में बदलाव करने का काम पुजारियों पर छोड़ दिया जाना चाहिए। यह संतों और राजनेताओं का मुद्दा नहीं है।”

स्रोत: केरल, मंदिर, पद्मनाभस्वामी मंदिर, गुरुवयूर श्री कृष्ण मंदिर, सबरीमाला मंदिर, Kerala, Temple, Padmanabhaswamy Temple, Guruvayur Sri Krishna Temple, Sabarimala Temple,
Tags: Guruvayur Sri Krishna TempleKeralaPadmanabhaswamy TempleSabarimala TempleTempleकेरलगुरुवयूर श्री कृष्ण मंदिरपद्मनाभस्वामी मंदिरमंदिरसबरीमाला मंदिर
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