कई मुद्दे ऐसे होते हैं जिनपर चुप्पी केवल इसलिए साध ली जाती है क्योंकि नाजुक जज़्बात वालों के जज़्बातों को ठेस न लग जाए। भारत के लिए ‘लव जिहाद’ ऐसा ही मुद्दा होता है और ब्रिटेन के लिए वैसा ही मुद्दा ‘ग्रूमिंग गैंग्स’ रहा है। वर्षों से अखबारों में यदा-कदा इन ‘ग्रूमिंग गैंग्स’ के बारे में छपता रहा, आम लोग शिकायत करते रहे लेकिन ब्रिटेन के राजनीतिज्ञों और अखबारों ने इस मुद्दे को दबाए रखा। पिछले वर्ष ऋषि सुनक ने प्रधानमंत्री बनते ही इस मुद्दे की जांच की घोषणा की थी लेकिन उन्हें उतना समय ही नहीं मिला। अगर आप सोच रहे हैं कि भारत के लिए ‘ग्रूमिंग गैंग्स’ मुद्दा क्यों होना चाहिए?
ब्रिटेन के मसले से भारत को क्या लेना देना, तो एक बार ठहरिए और ज़रा 1990-92 के दौर का ‘अजमेर बलात्कार कांड’ याद कर लीजिये। ये वो मामला था जिसमें अजमेर की दरगाह और कांग्रेस से जुड़े लोगों ने कई वर्षों में सौ से तीन सौ तक लड़कियों का बलात्कार और यौन शोषण किया था। इस मामले का एक आरोपी सुहैल घनी 26 साल तक छुपा रहा और उसने 2018 में आत्मसमर्पण किया था। एक आरोपी सलीम चिश्ती को 2012 में गिरफ्तार किया जा सका और एक प्रमुख आरोपी सैयद अलमास अभी भी फरार ही घोषित है।
भारत एक समुदाय विशेष के ‘ग्रूमिंग गैंग्स’ को वर्षों से झेल रहा है और जैसे आज के ब्रिटेन में ‘ग्रूमिंग गैंग्स’ की बातें करने वालों को ‘फार राईट’ कहकर खारिज करने की कोशिशें की जा रही हैं, वैसे ही यहाँ भी ‘लव जिहाद’ जैसे मुद्दों पर किसी भी चर्चा को दक्षिणपंथी कहकर खारिज किया जाता रहा है। वामपंथी और तथाकथित लिबरल/वोक जमातों ने जो प्रकाशनों और मीडिया घरानों पर कब्ज़ा जमाया हुआ है, उसके कारण इन मुद्दों पर बात ही नहीं हुई।
जब रांची की एक निशानेबाज़ तारा सहदेव के मामले में रकीबुल (जिसने रणजीत सिंह कोहली बनकर शादी की थी) और रकीबुल की माँ के साथ-साथ हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार मुश्ताक अहमद को सजा हुई तब जाकर इस मुद्दे को थोड़ा-बहुत स्वीकारना शुरू किया गया। अगर अजमेर बलात्कार कांड से इसकी तुलना करें तो क्रय की जा सकने वाली मीडिया (अखबार, टीवी चैनल आदि) पर शायद ही कोई इतनी हिम्मत दिखा पायेगा कि इसपर कोई प्रोग्राम बना दे। स्वयं को पॉलिटिकली करेक्ट दिखाने की ये मजबूरी ऐसी है जो भारत में भी कई बार सच पर पर्दा डालती रही है। सोशल मीडिया पर आज ब्रिटेन के ‘ग्रूमिंग गैंग्स’ पर बहसें केवल इसलिए दिख पा रही हैं, क्योंकि एक्स पर एलन मस्क लगातार इस मुद्दे पर पोस्ट कर रहे हैं।
क्या हैं ‘ग्रूमिंग गैंग्स’?
ब्रिटेन के रॉदरहैम में सैकड़ों लड़कियों के शारीरिक शोषण के मामले में एक पैटर्न का खुलासा हुआ था जिसमें आरोपी पाकिस्तानी मूल के थे। इसके बाद देश भर में ऐसे मामले सामने आए जिसमें आरोपी एक तय पैटर्न के तहत पहले बच्चियों के दोस्त बनते, उनका भरोसा जीतते और इसके बाद शारीरिक शोषण, रेप कर उन्हें हिंसा का शिकार बनाते थे। ये लोग नशे के आदी थे और अन्य लोगों के साथ भी बच्चियों को संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाता था। ऋषि सुनक ने इस मामले में एक टास्क फोर्स का गठन किया और 2023 में आई इसकी रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में ब्रिटेन में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के 1.15 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए और इनमें से 17% मामलों में का हाथ था।
इसकी तुलना में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने पहले तो कहना शुरू किया कि बहस का मुद्दा ‘ग्रूमिंग गैंग्स’ हैं ही नहीं, बहस का मुद्दा तो इस्लामोफोबिया है। उसके बाद दिए बयानों में उन्होंने ये भी जोड़ा कि ‘ग्रूमिंग गैंग्स’ की बात करने वाले लोग ‘फार राईट’ यानी दक्षिणपंथियों के हाथों में खेल रहे हैं। इससे पहले वो कह चुके हैं कि ‘ग्रूमिंग गैंग्स’ पर बात करने वालों को बहुत बुरे नतीजे झेलने होंगे। सोशल मीडिया पर ‘ग्रूमिंग गैंग्स’ से जुड़ी, बच्चियों के बलात्कार की घटनाओं में विचित्र खबरें दिखाई देने लगी हैं। बच्चियों के बलात्कारियों पर मीम बनाने वाले एक व्यक्ति की गिरफ़्तारी की खबरें आईं।
11 से 14 वर्ष की बच्चियों के बलात्कार को ‘सहमति से बना यौन संबंध’ घोषित करने की पुलिस और ब्रिटिश सांसदों और अदालतों ने जो कोशिशें की हैं, उनकी चौतरफा निंदा हो रही है। लोग पूछ रहे हैं कि जब 18 से कम उम्र में सहमती देने का कोई कानूनी मतलब ही नहीं होता तो ‘सहमति से यौन संबंध’ बना कैसे? आखिर 11 वर्ष की बच्चियों की सहमती का क्या मतलब है? सिर्फ ‘रेसिस्ट’ न कहलाना पड़ जाए, इस डर से बच्चियों के बलात्कारियों का नाम-पहचान बिलकुल वैसे ही छुपाई जाती रही जैसा कि भारत में बलात्कार के मामलों में जब आरोपी का नाम अख़बार नहीं छापते तो समझ में आ जाता है कि बलात्कारी किस समुदाय विशेष के हैं।
जन्म-जाति के आधार पर ब्रिटेन की ‘वोक’ जमातें कैसा भेदभाव करती हैं, उसके भी नमूने इस मामले में दिखाई दे गए। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘ग्रूमिंग गैंग्स’ को ‘एशियाई’ बताने की कड़ी निंदा जारी है। एशिया में नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, भारत, चीन, जापान जैसे कई देश आते हैं। इन देशों का कोई प्रवासी इन ‘ग्रूमिंग गैंग्स’ में नही था। इसकी वजह से मुख्यतः पाकिस्तानी मूल के मुस्लिम लोगों की पहचान छुपाने के लिए गिरोहों को वोक जमातों द्वारा ‘एशियन गैंग्स’ बुलाये जाने की निंदा भी जारी है।
इस बात पर पर्दा डालने के प्रयास हुए कि ये गिरोह स्कूलों के आस पास अपना शिकार ढूंढते पाए गए थे। बलात्कार जैसे मामलों में जो प्रवासियों को वापस उनके मूल देश डिपोर्ट किए जाने की व्यवस्था है, उसका कितना पालन हुआ, इस पर उत्तर देने से कीर स्टार्मर की सरकार ने इनकार कर दिया। रोथेरहम जहाँ ऐसी एक बड़ी घटना और बलात्कारी गैंग्स द्वारा हज़ारों बलात्कारों की खबर को पुलिस-प्रशासन ने दबाया वहाँ जनता का भारी विरोध पुलिस को भी झेलना पड़ा है। इसके बाद भी बलात्कारियों को डिपोर्ट करने के प्रस्ताव के विरुद्ध डेढ़ सौ से अधिक लेबर पार्टी के सांसदों ने वोट दिया। इस मुद्दे पर बहस में कितने लेबर पार्टी के सांसद शामिल हुए उसे दिखाने के लिए ली एंडरसन नाम के एमपी ने एक्स पर अपनी पोस्ट में खाली हॉल की तस्वीर लगा दी।
एक समुदाय विशेष के अपराधों को ढकने की जैसी कोशिशें भारत में होती हैं, बिलकुल वैसी ही ब्रिटेन में भी हो रही हैं। मुक़दमे की कार्रवाई में जो बातें हुईं, उन्हें पढ़ लेना हृदयविदारक है। इस मुद्दे पर पीड़ितों की दशा जो भारत में होती है, वही ब्रिटेन में भी है। ये भारतीय लोगों की वो समस्या है, जो अब अंतर्राष्ट्रीय समस्या बनी तो उस पर बात होनी शुरू हुई है।