भारत के सबसे प्रमुख कूटनीतिक विचारकों में से एक, आचार्य चाणक्य ने कभी कहा था, “दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है।” यह रणनीति आज भी भारत की विदेश नीति में नज़र आती है, जहां पाकिस्तान और चीन के खिलाफ भारत ने अफगानिस्तान के साथ कूटनीतिक रिश्ते को नया मोड़ दिया है। 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद, दिल्ली ने काबुल में अपने दूतावास को बंद कर दिया था, लेकिन पाकिस्तान और तालिबान के बढ़ते संघर्ष को देखते हुए, अब भारत ने अफगानिस्तान के साथ अपने रिश्तों को फिर से प्रगाढ़ करने की दिशा में कदम बढ़ाया है।
6 जनवरी 2025 को भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान द्वारा अफगान नागरिकों पर किए गए एयर स्ट्राइक की कड़ी निंदा की, जिससे भारत का यह स्पष्ट संदेश था कि आतंकवाद के खिलाफ उसकी नीति कभी भी कमजोर नहीं होगी। अब, 8 जनवरी को दुबई में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मौलवी अमीर खान मुत्तकी के बीच मुलाकात ने इस कूटनीतिक दिशा को और पुख्ता किया है। यह “दुश्मन का दुश्मन दोस्त” के सिद्धांत को पूरी तरह से उजागर करता है, जहां भारत ने अपनी सुरक्षा और क्षेत्रीय हितों को सबसे पहले रखा है।
दिल्ली-काबुल वार्ता
8 जनवरी 2025 को यूएई में हुई दिल्ली-काबुल वार्ता कूटनीतिक दृष्टिकोण और क्षेत्रीय सुरक्षा के एक नए पहलू के तौर पर देखि जा रही है. यह मुलाकात सिर्फ दो देशों के रिश्तों के लिए नहीं, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के संदर्भ में भी अहम मानी जा रही है, और यह भारत की रणनीतिक सोच को नई दिशा प्रदान करती है।
तालिबान के सत्ता में आने के बाद से भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते ठंडे पड़ गए थे, लेकिन अब भारत ने सक्रिय रूप से अफगानिस्तान के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री और तालिबान सरकार के विदेश मंत्री मौलवी अमीर खान मुत्तकी के बीच इस मुलाकात के बाद, दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए कई पहलुओं पर चर्चा की गई, जैसे कि मानवीय सहायता, व्यापार, सांस्कृतिक संबंध और क्षेत्रीय सुरक्षा।
भारत ने अफगानिस्तान को निरंतर सहायता दी है, जिसमें 50,000 मीट्रिक टन गेहूं, 300 टन दवाइयाँ, 27 टन भूकंप राहत सामग्री, 40,000 लीटर कीटनाशक, 100 मिलियन पोलियो डोज़, 1.5 मिलियन कोविड वैक्सीन डोज़, 11,000 हाइजीन किट्स, 500 यूनिट सर्दियों के कपड़े और 1.2 टन स्टेशनरी किट्स शामिल हैं। यह सहयोग ना केवल अफगानिस्तान के लोगों के लिए मददगार रहा है, बल्कि यह भारत की जिम्मेदारी और कूटनीतिक जिम्मेदारी को भी दर्शाता है।
अफगानिस्तान के तालिबानी मंत्रियों ने दिल्ली के निरंतर समर्थन के लिए आभार व्यक्त किया और दोनों देशों के रिश्तों को भविष्य में और प्रगाढ़ करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई। भारत के इस कदम ने यह साबित कर दिया कि वह न केवल अपनी कूटनीति में लचीलापन रखता है, बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा और वैश्विक स्थिरता के लिए सक्रिय भूमिका निभाने के लिए हमेशा तैयार है।
यह भारत की रणनीति को दिखाता है कि वह किसी भी संकट के समय अवसर की पहचान कर अपने रिश्तों को और मजबूत करने के लिए कूटनीतिक मार्ग को अपनाता है। इससे यह भी साफ होता है कि भारत अपनी ताकत और जिम्मेदारी को महसूस करता है, और पाकिस्तान द्वारा समर्थित आतंकवाद और क्षेत्रीय चुनौतियों के खिलाफ कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगा।
जानें दिल्ली के काबुल से जुड़ने के 3 प्रमुख कारण
भारत ने तालिबान से कूटनीतिक संबंध स्थापित करने का कदम उठाया है, जो कि उसके राष्ट्रीय और सुरक्षा हितों को ध्यान में रखते हुए बेहद महत्वपूर्ण है। यह एक रणनीतिक निर्णय है, जिसे पाकिस्तान, रूस और चीन जैसे ताकतवर पड़ोसियों के साथ रिश्तों में हो रहे बदलावों के बीच लिया गया है। यह वक्त भारत के लिए अपनी सुरक्षा को मजबूत करने और कूटनीतिक स्थिति को और बेहतर बनाने का है, खासकर जब पाकिस्तान और तालिबान के रिश्तों में खटास आ चुकी है और चीन अफगानिस्तान में अपनी मजबूत उपस्थिति बनाने की कोशिश कर रहा है।
1. पाकिस्तान से बढ़ता तनाव:
जब तालिबान ने सत्ता संभाली थी, तब पाकिस्तान ने उसका समर्थन किया था, लेकिन अब पाकिस्तान और तालिबान के रिश्तों में दरार आ चुकी है। पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान के नागरिकों पर 24 दिसंबर 2024 को किए गए हवाई हमले में महिलाओं और बच्चों समेत 51 लोग मारे गए थे। भारत ने इस हमले की कड़ी निंदा की और पाकिस्तान की नीतियों को आड़े हाथों लिया। यह भारत के लिए एक अहम मौका है, क्योंकि पाकिस्तान का तालिबान पर प्रभाव अब कमजोर हो रहा है, और भारत के लिए यह एक रणनीतिक लाभ साबित हो सकता है।
2. रूस की स्थिति में बदलाव:
रूस, जो इस समय यूक्रेन युद्ध में उलझा हुआ है, तालिबान के साथ अपनी स्थिति सुधारने की कोशिश कर रहा है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने 2024 में कहा था कि तालिबान आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में रूस का सहयोगी बन सकता है। रूस के लिए अफगानिस्तान और आसपास के इलाकों से आतंकवाद का खतरा बड़ा है, और उसे तालिबान के साथ रिश्ते मजबूत करने का फायदामंद रास्ता नजर आ रहा है। भारत ने इसे ध्यान में रखते हुए अपनी कूटनीति को बदलते हालात के अनुसार ढाला है।
3. चीन की बढ़ती घुसपैठ:
चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के तहत अब अफगानिस्तान में भी अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है। चीन ने अफगानिस्तान में अपने राजदूत भेजे और तालिबान के साथ रिश्ते और मजबूत किए हैं। चीन अफगानिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों पर अपनी नजरें गड़ाए हुए है और भारत यह देख रहा है कि चीन अब पश्चिमी देशों की अनुपस्थिति में अफगानिस्तान में अपनी रणनीतिक स्थिति मजबूत कर रहा है। भारत के लिए यह चिंता का विषय है, क्योंकि चीन की बढ़ती प्रभावशाली उपस्थिति क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है।
भारत यह समझ चुका है कि ‘दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है,’ और यही वह समय है जब इस रणनीतिक कूटनीतिक दृष्टिकोण को सही तरीके से अपनाना आवश्यक है।