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मुगल काल के ‘रोबिन हुड’ दुल्ला भट्टी: लोहड़ी से भट्टी का क्या है नाता; क्यों अकबर ने इनका नाम लेते हुए खुद को ‘भांड’ बताया था?

himanshumishra द्वारा himanshumishra
14 January 2025
in चर्चित
This Lohri Know About Dulla Bhatti

This Lohri Know About Dulla Bhatti

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आज भारत भर में लोग लोहड़ी का त्यौहार धूमधाम से मना रहे हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि लोहड़ी के गीतों में एक नाम क्यों बार-बार आता है—”दुल्ला भट्टी वाला”? यह वही दुल्ला भट्टी थे जिन्होंने मुगलों से लोहा लिया, लड़कियों को बुरी नज़र से बचाया और किसानों की आवाज़ उठाई। लेकिन उनकी भूमिका सिर्फ इतना तक सीमित नहीं थी। कहते हैं कि अगर दुल्ला भट्टी न होते, तो आज लोहड़ी का पर्व भी न मनाया जाता, सलीम कभी जहांगीर नहीं बन पाता, अकबर को अपने दरबारियों के सामने झुकना पड़ता, मिर्जा-साहिबा की प्रेम कहानी न होती, और पंजाब के लोग “दुल्ले दी वार” कभी नहीं गाते।

दुल्ला भट्टी उस दौर के रॉबिनहुड थे, जिन्हें अकबर ने डकैत माना, लेकिन वो अमीरों और सिपाहियों से लूटकर आम जनता के लिए न्याय की आवाज उठाते थे। अगर दुल्ला भट्टी न होते, तो न केवल लोहड़ी का पर्व अधूरा होता, बल्कि मुगलों के अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले एक महान नायक की कमी भी होती।

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कैसे जुड़ा है दुल्ला भट्टी का नाम इस त्योहार से?

भारत भर में लोहड़ी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस खास दिन का दुल्ला भट्टी से क्या संबंध है? लोहड़ी के गीतों में जिनका नाम बार-बार आता है, वह दुल्ला भट्टी कौन थे? आइए जानते हैं इस दिलचस्प कहानी को।

लोहड़ी का पर्व भगवान श्री कृष्ण के लोहिता राक्षसी के वध के बाद मनाया जाता है, लेकिन पंजाब में यह पर्व दुल्ला भट्टी से जुड़ा हुआ है। वह समय था जब मुगलों का आतंक था और लोग बुरी तरह जुल्मों का शिकार हो रहे थे। एक किसान, सुंदरदास, जो अपने परिवार के साथ गांव में रहता था, अपनी दो बेटियों—सुंदरी और मुंदरी—की शादी को लेकर परेशान था। गांव के नंबरदार की नीयत उन पर खराब थी, और वह सुंदरदास को धमकी देकर चाहता था कि दोनों बेटियां उसकी शादी के लिए तैयार हो जाएं।

जब सुंदरदास ने दुल्ला भट्टी से मदद मांगी, तो दुल्ला भट्टी ने बिना देर किए नंबरदार के गांव में पहुंचकर उसके खेतों में आग लगा दी और सुंदरदास की बेटियों की शादी उस जगह करवाई, जहां वह खुद चाह रहे थे। इसके बाद, उन्होंने इन बेटियों के लिए शगुन के तौर पर शक्कर दी। तब से हर साल लोहड़ी के दिन लोग आग जलाकर गेहूं की बालियां उसमें डालते हैं और इस खुशी का जश्न मनाते हुए गीत गाते हैं. जैसे

सुन्दर मुंदरिए तेरा, कौन विचारा, दुल्ला भट्टीवाला,
दुल्ले दी धी व्याही, सेर शक्कर पायी,
कुड़ी दा लाल पताका, कुड़ी दा सालू पाटा,
सालू कौन समेटे, मामे चूरी कुट्टी, जिमींदारां लुट्टी,
जमींदार सुधाए, गिन गिन पोले लाए,
इक पोला रह गया, सिपाही पकड़ के ले गया,
सिपाही नूं मारी इट्ट, भावें रो ते भावें पिट्ट,
साहनूं दे लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी,
साहनूं दे दाणे, तेरे जीण न्याणे

लेकिन दुल्ला भट्टी का योगदान यहीं खत्म नहीं हुआ। उस समय अमीर व्यापारी गरीब लड़कियों को अपहरण कर उन्हें बेचते थे। जब दुल्ला भट्टी को इसका पता चला, तो उन्होंने इन लड़कियों को बचाया और उन्हें सम्मान की जिंदगी दी। उन्होंने न केवल इन लड़कियों को इनके परिवारों के पास लौटाया, बल्कि उनकी शादियां भी करवाईं।

क्यों अकबर ने दुल्ला भट्टी का नाम लेते हुए खुद को ‘भांड’ कहा था?

पाकिस्तान के पंजाब में स्थित पिंडी भट्टियां, जो वाघा बॉर्डर से करीब 200 किलोमीटर दूर है, वहाँ 1547 में एक वीर पैदा हुआ—दुल्ला भट्टी, जिनका असली नाम राय अब्दुल्ला खान था। वह राजपूत मुसलमान थे, और उनकी वीरता की कहानी आज भी पंजाब के हर कोने में सुनाई जाती है। दुल्ला का जीवन सिर्फ उनकी बहादुरी से ही नहीं, बल्कि उनके परिवार की शहादत से भी गहरे तौर पर जुड़ा हुआ था।

चाहे उनकी दादी-सरीके पूर्वज हों, दुल्ला के दादा संदल भट्टी और पिता को हुमायूं ने बेरहमी से मारकर उनकी खाल में भूंसा भरवाकर गांव के बाहर लटका दिया था। इसके पीछे कारण था कि वे मुगलों के खिलाफ खड़े हुए थे और लगान देने से मना कर दिया था। आज भी पंजाब में इस घटना को लेकर कहानियां सुनाई जाती हैं, और लोग हुमायूं की क्रूरता को याद करते हैं।

दुल्ला भट्टी का जन्म उस रक्तपात और अत्याचार के बीच हुआ था। उनका जीवन ही विरोध, साहस और सम्मान की लड़ाई का प्रतीक बन गया। उस दौर में वह अपने समय के रॉबिनहुड थे, जो गरीबों के अधिकार के लिए लड़ते थे। अकबर, जो खुद को हिंदुस्तान का सबसे शक्तिशाली सम्राट मानता था, दुल्ला भट्टी से बहुत डरता था। दुल्ला के खिलाफ अकबर के पास सेना थी, लेकिन वह कभी भी उन्हें पकड़ने में सफल नहीं हुआ। दुल्ला भट्टी अमीरों से सामान लूटते, उसे गरीबों में बांटते, उनका यही साहस अकबर के लिए सिरदर्द बना हुआ था, और उसने अपनी राजधानी को आगरा से लाहौर शिफ्ट करने का फैसला किया।

कहानी यहाँ खत्म नहीं होती। पंजाब में कई किंवदंतियां हैं जो कहती हैं कि दुल्ला भट्टी ने खुद अकबर को भी पकड़ लिया था। जब अकबर से मुलाकात हुई, तो उसने कहा, “भईया, मैं तो शहंशाह नहीं हूं, मैं तो भांड हूं।” इस पर दुल्ला भट्टी ने मजाक करते हुए जवाब दिया, “भांड को क्या मारूं, और अगर अकबर खुद को भांड कह रहा है, तो उसे मारने का क्या फायदा?”

अकबर ने दुल्ला भट्टी को नीचा दिखाने के लिए एक साजिश रची थी। उसने उन्हें दरबार में बुलाया, और कहा कि वह उनके साथ बात करना चाहता है। असल में उसका उद्देश्य था कि दुल्ला को सिर झुका कर उनका अपमान किया जाए। लेकिन दुल्ला भट्टी ने अकबर की साजिश को नाकाम कर दिया। उन्होंने सिर झुकाने की बजाय, रास्ते में पहले अपने पैरों को डाला, जिससे अकबर की पूरी ताजपोशी ध्वस्त हो गई।

दुल्ला भट्टी के खिलाफ अकबर की 12,000 सैनिकों की सेना भी नाकाम रही। फिर सन 1599 में एक धोखे के तहत उन्हें पकड़वाया गया। बाद में लाहौर में उन्हें फांसी दी गई, हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि वे लड़ाई में पकड़े गए और दिल्ली में फांसी दी गई। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि आज भी मियानी साहिब में दुल्ला भट्टी की कब्र मौजूद है।

Grave of Dulla Bhatti at Miani Sahib Graveyard (Image Source: Wikipedia)
मियानी साहिब में दुल्ला भट्टी की कब्र

दुल्ला भट्टी की मौत के बाद भी वह आज भी ज़िंदा हैं, उनके साहस, उनके संघर्ष और उनके नाम से जुड़ी कहानियाँ आज भी जीवित हैं। लोहड़ी के दिन उनके नाम का गीत गाया जाता है—”सुंदर मुंदरिये हो!”, जो उनके अदम्य साहस और बलिदान का प्रतीक बन चुका है। आज भी लोग उन्हें याद करते हैं, और उनकी वीरता की कहानियां न केवल पंजाब, बल्कि भारत के हर हिस्से में सुनाई जाती हैं।

 

स्रोत: लोहड़ी, लोहड़ी 2025, दुल्ला भट्टी, पंजाब, पकिस्तान, अकबर, हुमायूँ, Lohri, Lohri 2025, Dulla Bhatti, Punjab, Pakistan, Akbar, Humayun
Tags: AkbarDulla BhattiHumayunLohriLohri 2025PakistanPunjabअकबरदुल्ला भट्टीपकिस्तानपंजाबलोहड़ीलोहड़ी 2025हुमायूँ
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