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हाथ-पाँव बाँध कर अप्रवासियों को भगा रहा अमेरिका, भारत में कब होगा? देश भर में फैले हैं लाखों बांग्लादेशी, इनमें ISI की भी पैठ

राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए संकट

himanshumishra द्वारा himanshumishra
6 February 2025
in विश्व
भारत को कब मिलेगा समाधान?

America’s Tough Stance on Illegal Immigration: When Will India Find a Solution? (Image Source: the Tribune)

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अमेरिका ने हाल ही में (5 फ़रवरी 2025, बुधवार) 104 भारतीय नागरिकों को अवैध प्रवास के आरोप में डिपोर्ट कर भारत भेजा। इन नागरिकों को लेकर अमेरिकी सेना का विमान अमृतसर एयरपोर्ट पर उतरा ऐसे में अमरीका से भारत आए हरविंदर सिंह ने बताया, “40 घंटों तक हमें हथकड़ियों में जकड़ा गया, हमारे पैरों में जंजीरें बंधी थीं और हमें अपनी सीट से हिलने की भी इजाजत नहीं थी। बार-बार अनुरोध करने के बाद, हमें खुद को घसीटते हुए वॉशरूम तक जाने की अनुमति मिली। क्रू वॉशरूम का दरवाजा खोलता और हमें अंदर धकेल देता।”

यह मुद्दा संसद में भी जोर-शोर से उठाया गया। विपक्षी दलों ने इसे सरकार की विदेश नीति और भारतीय नागरिकों के अधिकारों से जोड़ते हुए सवाल खड़े किए। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इस घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया दी और कहा कि “अमेरिका को निर्वासन का अधिकार है, लेकिन उन्हें जिस तरह मिलिट्री प्लेन में वापस भारत भेजा गया वो अमानवीय है. वे अपराधी नहीं हैं. भारत को कहना चाहिए कि यह उचित नहीं है।”

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अमृतसर एयरपोर्ट से निर्वासित प्रवासी पुलिस वाहन में रवाना हुआ
अमृतसर एयरपोर्ट से निर्वासित प्रवासी पुलिस वाहन में रवाना हुआ(Image Source: Reuters)

 

हालांकि, विपक्ष को यह समझना होगा कि इस मुद्दे को केवल भावनात्मक दृष्टिकोण से देखने के बजाय एक व्यापक दृष्टि से समझने की जरूरत है। हर देश को अपनी सीमाओं और संसाधनों की सुरक्षा के लिए अवैध प्रवास पर कार्रवाई करनी पड़ती है। अवैध प्रवासियों की उपस्थिति केवल कानून का उल्लंघन नहीं है, बल्कि यह देश के सीमित संसाधनों पर भी दबाव डालती है।

यहां तक की भारत, जो पहले से ही रोजगार, स्वास्थ्य, और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में चुनौतियों का सामना कर रहा है, इस बढ़ते बोझ को नजरअंदाज नहीं कर सकता। यह मुद्दा केवल राजनीतिक दलों के बीच बहस का विषय नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे भारतीय नागरिकों के अधिकारों और देश के संसाधनों की रक्षा के दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए। ऐसे में क्या प्रधानमंत्री मोदी इस चुनौती का सामना करने के लिए अमेरिकी मॉडल से प्रेरणा लेते हुए अवैध प्रवासियों को उनके देश वापस भेजने के लिए सख्त कदम उठाएंगे?

भारत के लिए भी खतरा है अवैध प्रवासन

अवैध प्रवासन: भारत के लिए बढ़ती चुनौती

भारत में अवैध प्रवासन एक गंभीर समस्या बन चुका है, जो देश की सीमाओं, सामाजिक संतुलन और आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित कर रहा है। हाल ही में, अमेरिका से 104 भारतीय नागरिकों को डिपोर्ट कर भारत भेजा गया। इस घटना ने संसद में तीखी बहस छेड़ दी। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस विषय पर 2022 की प्यू रिसर्च रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि अमेरिका में बिना दस्तावेजों के रह रहे भारतीयों की संख्या 6.75 लाख तक है। यही नहीं
Bolts की रिपोर्ट के अनुसार, U.S. Immigration & Customs Enforcement (ICE) हर रात औसतन 37,000 प्रवासियों को हिरासत में रखता है। इस प्रक्रिया में वे स्थानीय शेरिफ कार्यालयों के साथ साझेदारी करते हैं, जो अपने स्थानीय जेलों में प्रवासियों को रखने के बदले मुनाफा कमाते हैं। यह नेटवर्क पिछले सौ वर्षों से अमेरिका में ऑपरेट कर रहा है और इसके संचालन में काफी कम निगरानी होती है। इसके अलावा, निजी कंपनियों द्वारा चलाए जा रहे अन्य डिटेंशन सेंटर्स की संख्या भी बढ़ी है। ट्रंप प्रशासन ने इस नेटवर्क को और मजबूत करने की योजना बनाई थी।

ऐसे में आप समझ सकते हैं जब अमेरिका जैसे विकसित देश के लिए अवैध प्रवासन एक बड़ी और गंभीर चुनौती बन चुका है, तो यह सोचना लाजिमी है कि भारत जैसे विकासशील देश पर इसका कितना गंभीर असर हो सकता है।

भारत-बांग्लादेश सीमा: समस्याओं का केंद्र

भारत और बांग्लादेश की 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा से हर साल बड़ी संख्या में अवैध प्रवासी भारत में प्रवेश करते हैं। यह सीमा घने जंगलों, पहाड़ों और नदियों से होकर गुजरती है, जिससे इसकी निगरानी बेहद कठिन हो जाती है।

इन प्रवासियों की पहुंच अब केवल सीमावर्ती क्षेत्रों तक सीमित नहीं रही; ये दिल्ली, मुंबई, और बेंगलुरु जैसे शहरों के अलावा उत्तर-पूर्वी राज्यों तक फैल चुके हैं। सिलीगुड़ी कॉरिडोर में इनकी बढ़ती उपस्थिति भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकती है, खासकर जब पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ बांग्लादेश के संबंधों में बदलाव हो रहे हैं।

राष्ट्रीय सुरक्षा और राजनीति पर प्रभाव 

अवैध प्रवासन केवल सामाजिक और आर्थिक दबाव तक सीमित नहीं है; यह राष्ट्रीय सुरक्षा और राजनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित करता है। 2003-04 में आयी एक रिपोर्ट में बताया गया कि बांग्लादेशी घुसपैठियों का प्रभाव 25 लोकसभा सीटों और 120 विधानसभा सीटों तक फैला है।

इसके अलावा, इन प्रवासियों द्वारा भारतीय पहचान पत्र हासिल करने से चुनावी प्रक्रिया में गड़बड़ी की संभावना बढ़ जाती है। रिपोर्ट के अनुसार, 2003 तक दिल्ली में लगभग 6 लाख बांग्लादेशी अवैध प्रवासी भारतीय पहचान पत्र प्राप्त कर चुके थे।

आईएसआई का षड्यंत्र और अवैध घुसपैठ का बढ़ता खतरा

11 सितंबर 2001 के हमलों के बाद, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने बांग्लादेश में अपनी गतिविधियां और तेज कर दीं, खासकर भारत विरोधी षड्यंत्रों को बढ़ावा देने के लिए। 2002 में कोलकाता में कई आईएसआई एजेंट पकड़े गए, जो बांग्लादेश सीमा पार कर भारत में दाखिल हुए थे। यह गिरफ्तारी आईएसआई की गहरी साजिशों का पर्दाफाश करने के लिए काफी थी।

तत्कालीन विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने उस समय संसद में स्पष्ट रूप से कहा था, “ढाका में पाकिस्तानी हाई कमीशन आईएसआई का नर्व सेंटर है, जो भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों में लिप्त है।” उन्होंने यह भी बताया था कि कई उग्रवादी संगठनों ने बांग्लादेश में ट्रेनिंग कैंप स्थापित कर लिए हैं और भारत-बांग्लादेश सीमा के नजदीक बड़ी संख्या में मदरसे भी बनाए जा चुके हैं। इन गतिविधियों ने आतंकवादी नेटवर्क को मजबूत करने और अवैध घुसपैठ को बढ़ावा देने का काम किया।

अवैध घुसपैठ लंबे समय से एक गंभीर राष्ट्रीय संकट 

बांग्लादेश से भारत में अवैध घुसपैठ लंबे समय से एक गंभीर राष्ट्रीय संकट बना हुआ है। यह न केवल भारत की सुरक्षा और जनसांख्यिकीय संतुलन के लिए खतरा है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना को भी प्रभावित कर रहा है।

2000 में, तत्कालीन गृह सचिव माधव गोडबोले ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसमें खुलासा किया गया था कि उस समय लगभग 1.5 करोड़ बांग्लादेशी अवैध रूप से भारत में रह रहे थे। इसके साथ ही, हर साल 3 लाख से अधिक बांग्लादेशी घुसपैठिए अवैध तरीकों से भारत में प्रवेश कर रहे थे। यह आंकड़े केवल समस्या की गंभीरता को दर्शाते हैं, लेकिन बीते वर्षों में यह संकट और विकराल हो गया है।

इसके साथ ही, 4 अगस्त 2024 को बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई, जिसमें 13 पुलिसकर्मियों समेत कम से कम 94 लोगों की मौत हो गई। इसके बाद पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया गया और इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं। लेकिन यह कदम विरोध प्रदर्शन को रोकने में विफल रहा।

6 अगस्त 2024 को, प्रधानमंत्री शेख हसीना को भारी विरोध के चलते इस्तीफा देना पड़ा, और वह बांग्लादेश छोड़कर चली गईं। इस राजनीतिक अस्थिरता का फायदा कट्टरपंथी ताकतों ने उठाया, जिसके चलते बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और अधिक बढ़ गए। इसने एक नई लहर पैदा की, जिसमें बांग्लादेशी बड़ी संख्या में भारत में अवैध रूप से प्रवेश करने लगे।

राजधानी दिल्ली पर मंडराता खतरा

बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों की बढ़ती संख्या दिल्ली सहित भारत के अन्य हिस्सों की जनसांख्यिकी और संसाधनों पर गहरा प्रभाव डाल रही है। हाल ही में जेएनयू और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस द्वारा तैयार की गई 114 पन्नों की रिपोर्ट, ‘दिल्ली में अवैध प्रवासी: सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिणामों का विश्लेषण,’ इस गंभीर समस्या को विस्तार से उजागर करती है।

इस रिपोर्ट के अनुसार, अवैध प्रवासियों ने दिल्ली की जनसांख्यिकी को बदलने के साथ-साथ स्थानीय अर्थव्यवस्था पर दबाव डाला है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अवैध प्रवासन से मुस्लिम आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, आपराधिक नेटवर्क मजबूत हुए हैं, और सुरक्षा संबंधी चिंताएं बढ़ी हैं।

बॉर्डर सुरक्षा और पहचान पत्र का दुरुपयोग 

सीमा पर फर्जी आधार कार्ड और अन्य पहचान पत्र बनाने वाले नेटवर्क्स भारत की सुरक्षा को और कमजोर कर रहे हैं। बांग्लादेश से आने वाले कई प्रवासी फर्जी दस्तावेजों के सहारे न केवल सीमावर्ती इलाकों में, बल्कि दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों तक पहुंच रहे हैं। यह सामाजिक-आर्थिक संसाधनों पर भारी दबाव डालने के साथ-साथ अपराध और राजनीतिक अस्थिरता को भी बढ़ावा दे रहा है।

 

भारत को चाहिए ठोस कदम 

आज, जब अमेरिका जैसे विकसित देश अवैध प्रवासन के खिलाफ सख्त कदम उठा रहे हैं, तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि अपने दोस्त डोनाल्ड ट्रम्प के फैसले से मोदी जी क्या सीख लेंगे? क्या समय आ गया हैए कि लम्बे समय से अवैध प्रवासन जैसी गंभीर सुविधाओं से जूझते भारत को भी संधान मिलेगा यह अभी भारत को और इन्तजार करना होगा?

 

 

स्रोत: अमेरिका, अमरीका, अवैध प्रवासन, अप्रवासी, भारत, लोकसभा, दिल्ली, डोनाल्ड ट्रम्प, राष्ट्रीय सुरक्षा, डोनाल्ड ट्रम्प और मोदी, America, Illegal Immigration, Immigrants, India, Lok Sabha, Delhi, Donald Trump, National Security, Donald Trump and Modi
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