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‘संभाजी महाराज: शिवाजी महाराज के सुपुत्र की शौर्यगाथा’; मराठा योद्धा को लेकर फैलाए गए झूठ का पर्दाफाश

संभाजी महाराज ने औरंगजेब की पकड़ में आने के बाद मृत्यु का वरण किया था। उनके समक्ष भी मुगलों के सामने घुटने टेकने का प्रस्ताव था लेकिन, उन्होंने ऐसा नही किया

drmahender द्वारा drmahender
27 February 2025
in समीक्षा
यह पुस्तक केवल संभाजी महाराज की शौर्यगाथा का ही वर्णन नहीं करती है प्रत्युत, उनके विशाल व्यक्तित्व पर व्यापक प्रकाश डालने का प्रयास भी करती है

यह पुस्तक केवल संभाजी महाराज की शौर्यगाथा का ही वर्णन नहीं करती है प्रत्युत, उनके विशाल व्यक्तित्व पर व्यापक प्रकाश डालने का प्रयास भी करती है

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शिवाजी सावंत के मराठी उपन्यास ‘छावा’ पर आधारित ‘छावा’ मूवी कई दिनों से धमाल मचाये हुए है। छत्रपति शिवाजी महाराज के शूरवीर पुत्र संभाजी महाराज के जीवन पर बनी यह एक अद्भुत फिल्म है। लोगों की प्रतिक्रिया देखते ही बनती है। वहीं, एक गैंग विशेष के पेट में मरोड़ भी उठ रही हैं। ऐसा होना भी स्वाभाविक है क्योंकि लोगों को इतिहास बोध होने लगा है और वामी–इस्लामिक तथाकथित इतिहासकारों की पोल खुलने लगी है। इसीलिए उनके छर्रे कटोरियों का इस तरह बिलबिलाना देखकर आनंद भी आ रहा है। 2 साल पहले मैंने एक पुस्तक की समीक्षा लिखी थी, उस पुस्तक का नाम है ‘संभाजी महाराज:शिवाजी महाराज के सुपुत्र की शौर्यगाथा’। जब यह समीक्षा लिखी थी तब मुझे ये आभास नहीं था कि ऐसी कोई फिल्म भी आने वाली है। इस आलेख में उसी समीक्षा का अद्यतित संस्करण प्रस्तुत किया जा रहा है।

जो लोग और समाज अपना इतिहास विस्मृत कर देते हैं उनका भूगोल बदल जाता है। जब भी भारत के इतिहास की बात आती है तो उसमें छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। लेकिन ये भी उतना ही सच है कि वामपंथियों ने शिवाजी महाराज के साथ भी कुत्सित खेल खेला है। खैर! अब शिवाजी महाराज को लेकर वामपंथी इतिहासकारों की पोल खुल चुकी है। मैंने शिवाजी महाराज के बारे में सबसे पहले जो पुस्तक पढ़ी थी उसका नाम है ‘हिन्दू विजय युगप्रवर्तक‘, यह पुस्तक बहुत ही उत्कृष्ट रचना है। उनके सुपुत्र संभाजी जी महाराज का साक्षात्कार भी मुझे उसी पुस्तक में हुआ था। 

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छत्रपति शिवाजी महाराज की शौर्यगाथा के बारे में बहुत कुछ लिखा–पढ़ा गया है, लेकिन ये भी उतना ही सच है कि उनके सुपुत्र संभाजी महाराज पर जानकारी का आभाव रहा है और इसके लिए इतिहासकार ही उत्तरदायी हैं। लेकिन देर आये दुरुस्त आये और अब कुछ वर्षों से भारत के वास्तविक इतिहास को लेकर काम होना शुरू हुआ है। अब इतिहासकार और स्वतंत्र लेखक भारत के इतिहास पुरुषों अथवा नायकों का इतिहास लोगों के सामने लाने का काम करने लगे हैं।  ऐसा ही एक प्रयास किया है लेखिका मेधा देशमुख भास्करन ने जो न तो इतिहासकार हैं और न ही अकादमिक जगत से जुड़ी हैं। बल्कि व्यवसायिक रूप से विज्ञान की दुनिया से जुड़ी हैं और एक माइक्रोबायोलाजिस्ट हैं। लेखिका मेधा देशमुख भास्करन ने शिवाजी महाराज के सुपुत्र संभाजी महाराज के जीवन पर उपन्यास शैली में एक गहन शोधपरक पुस्तक लिखी है जिसका शीर्षक है ‘संभाजी महाराज:शिवाजी महाराज के सुपुत्र की शौर्यगाथा’, इस पुस्तक का प्रकाशन भारत के सुप्रसिद्ध प्रकाशक प्रभात प्रकाशन ने किया है।

448 पृष्ठों की इस पुस्तक में कुल 36 अध्याय हैं जिसे चार खंडों में बांटा गया है। गहन शोध और उपयुक्त संदर्भों पर आधारित इस पुस्तक की एक विशेषता यह भी है कि इसे उपन्यास शैली में लिखा गया है। यहाँ एक बात साझा करना आवश्यक है कि शिवाजी महाराज पर लिखी पुस्तक ‘हिन्दू विजय युग प्रवर्तक’ पढ़ने के बाद एक प्रश्न मेरे दिमाग में घूमता रहता था कि संभाजी महाराज कुछ समय के लिए आक्रांता मुगलों के साथ क्यों मिल गए थे? इस प्रश्न का संतुष्टिजनक उत्तर मुझे न मिला था। लेकिन मेधा जी की इस पुस्तक में ये उत्तर मुझे मिल गया। शिवाजी का पुत्र उनके ही विरुद्ध जाकर मुगलों में शामिल हो गया था यह बात पचाना थोड़ा मुश्किल था।

यह पुस्तक केवल संभाजी महाराज की शौर्यगाथा का ही वर्णन नहीं करती है प्रत्युत, उनके विशाल व्यक्तित्व पर व्यापक प्रकाश डालने का प्रयास भी करती है और अनेक प्रश्नों का उत्तर देने का भी प्रयास करती है। ऐसे कुछ प्रश्न इस पुस्तक के ‘मेरी बात’ भाग में हैं, उदाहरण स्वरुप ‘संभाजी व्यभिचारी थे या योद्धा? क्या वे देशद्रोही थे, जो मुगलों के खेमे में शामिल हो गए थे या मराठा राष्ट्र–स्वराज के रक्षक? क्या वे अपने पिता के मंत्रियों के हत्यारे थे या वे न्याय के पक्षधर थे? क्या वे छत्रपति शिवाजी के गँवार पुत्र थे या वे कई भाषाओं के विद्वान और कवि थे? क्या वे तांत्रिक कर्मकांड (काला जादू) में विश्वास करते थे या एक सैन्य रणनीतिकार थे?’ आदि।

एक बात यहाँ लिखना आवश्यक है कि पाठक जैसे ही चार कालखंडों (1674-78, 1678-80, 1680-82 और 1682-89) में विभाजित यह पुस्तक पढ़ने लगेगा उसके मस्तिष्क में एक चलचित्र चलने लगेगा, एक–एक घटना उसको दिखने लगेगी, मेरे साथ तो ऐसा ही हुआ है। यह पुस्तक मुगलों की क्रूरता और स्वधर्म, स्व–संस्कृति, और अपने हिन्दू समाज के रक्षण और पोषण में कार्यरत शिवाजी महाराज की ही तरह उनके पुत्र संभाजी महाराज की शौर्यगाथा का उत्कृष्ट वर्णन करती है। वास्तव में इतिहास को उपन्यास शैली में एक कहानी की तरह प्रस्तुत करने अथवा स्टोरीटेलिंग का यह एक उत्कृष्ट प्रयास है। पुस्तक में कई जगह बहुत ही भावुक चित्रण भी हैं जो भावुक पाठक को अश्रु भी दे सकते हैं। इस पुस्तक में शिवाजी महाराज और संभाजी को लेकर या यूँ कहें मराठा इतिहास को लेकर फैलाये गए मिथकों का निदान करने का उद्यम भी किया गया है।

इस पुस्तक का प्रत्येक अध्याय अपने आप में कुछ न कुछ रोचक और ऐतिहासिक रूप से ज्ञानवर्धक समाए हुए है। इस पुस्तक में संभाजी के साथ अनेक ऐसे पात्र हैं जिनके बारे में शायद ही कोई जानता होगा। मुगलों के विरुद्ध उनके अप्रतिम पराक्रम को दुनिया के सामने लाने का शोधपरक प्रयास होना अपरिहार्य है। आखिर कब तक भारत के लोग मुगलों या मुस्लिम या ब्रिटिश आक्रांताओं का महिमामंडन पढ़ते लिखते रहेंगे। इस पुस्तक में कम से कम एक गिलहरी प्रयास तो किया गया है।

भारत विरोधी वामपंथियों की नायिका ऑड्रे ट्रुश्के जिस मुस्लिम नरपिशाच औरंगजेब का महिमामंडन करती है उस दुष्ट औरंगजेब ने संभाजी महाराज के साथ घोर निर्दयतापूर्ण व्यवहार किया था। संभाजी महाराज ने औरंगजेब की पकड़ में आने के बाद मृत्यु का वरण किया था। उनके समक्ष भी मुगलों के सामने घुटने टेकने का प्रस्ताव था लेकिन, उन्होंने ऐसा नही किया। पुस्तक का अंतिम अध्याय संभाजी महाराज के मृत्यु वरण को लेकर बहुत ही भावुक और मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करता है। इस अध्याय में औरंगजेब के मन में संभाजी महाराज को लेकर जो भाव थे उनका चित्रण लेखिका ने कुछ इस तरह किया है:-

 औरंगजेब कहता है, “संभा को पकड़ना सिकंदर या अबुल हसन पकड़ने जितना आसान नहीं होगा, जो उन राजधानियों में रहते थे, जहाँ उन्होंने अपनी सारी संपत्ति कर रखी थी। संभा एक पहाड़ी किले से दूसरे किले में जा सकता है। वह रुस्तम और मुकर्रब को देखता है और आशा करता है कि वे समझ गए होंगे। वह हर शब्द की ध्यान से व्याख्या करता है, अगर सिकंदर एक पाल बछड़ा था और अबुल हसन एक सजावटी हाथी, तो संभा एक जंगली तेंदुआ है, जो न केवल खतरनाक होता है, बल्कि पहाड़ों और उन पर उगनेवाले पेड़ों पर भी चढ़ सकता है।”

जब संभाजी महाराज पकड़े गए और आक्रांता औरंगजेब के सामने प्रस्तुत किए गए उस समय का उन दोनों के बीच हुए संवाद का एक अंश पाठकों के लिए लिखा रहा हूँ जो उन्हें मृत्यु समक्ष खड़ी होने पर भी संभाजी के शौर्य के बारे बतायेगा।

“तुम्हारा अंत इतनी जल्दी नहीं होगा।” औरंगजेब के शब्दों में खतरनाक धमकी है।
संभाजी धीरे से कहते ” आपकी सीमित बुद्धि आपको एक धीमी और दर्दनाक मौत की बात सोचने तक ही ले जाएगी।”
“खामोश!” औरंगजेब का एक मातहत संभाजी पर चिल्लाता है। संभाजी इसे नजरअंदाज करते हैं और अपनी बात जारी रखते हैं, “अरे बादशाह, तूने फकीर सरमद, गुरु तेग बहादुर और अन्य अनेक लोगों के साथ ऐसा ही किया है। तूने उनकी जिंदा चमड़ी उतार दी, उनकी आँखें निकाल लीं और बाद में उनके अंगों को काट डाला। तूने कुछ को उबलते तेल में डाल दिया। तेरी हद बस उतनी ही है तू बस इतना ही कर सकता है।”
औरंगजेब सुनता है। वह जानना चाहता है कि संभा कितनी दूर तक सोच सकता है ?
“मेरी मौत बहुत धीमी होगी। यह वर्षों तक खिंच सकती है।” संभाजी ने कहा।

शिवाजी महाराज के बाद छत्रपति बने संभाजी महाराज की नृशंस हत्या (मृत्यु) के बाद भी मराठे औरंगजेब से लड़ते रहे। संक्षेप में लिखूं तो यह पुस्तक हिंदवी साम्राज्य की नींव रखने वाले महाप्रतापी छत्रपति शिवाजी महाराज के वीर और उतने ही प्रतापी सुपुत्र संभाजी महाराज के शौर्य और पराक्रम की यशोगाथा का एक अनुपम प्रस्तुतीकरण है। साथ ही शिवाजी महाराज के बाद हिन्दू धर्म विरोधी और आक्रांताओं के दाँत खट्टे कर मराठा स्वाभिमान को जागृत करने में संभाजी महाराज के अतुलनीय योगदान और कर्तृत्व को रेखांकित करने वाली एक उत्कृष्ट कृति है। इसे पढ़ने पर प्रत्येक भारतीय विशेषकर हिन्दू के मन में राष्ट्रभाव और धर्म के प्रति आस्था जागृत होगी ऐसा मेरा मत। यह पुस्तक हर भारतीय तक पहुंचे इसके लिए जनजागरण और प्रचार की आवश्यकता है, उस निमित मेरा यह गिलहरी प्रयास।

(यह लेख डॉ. महेंद्र ठाकुर द्वारा लिखा गया है। डॉ. महेंद्र, हिमाचल प्रदेश आधारित स्तंभकार हैं साथ ही कई बेस्टसेलर और सुप्रसिद्ध पुस्तकों के हिंदी अनुवादक भी हैं। इनका ट्विटर हैंडल @Mahender_Chem है।)

स्रोत: छत्रपति शिवाजी, संभाजी महाराज, मराठा साम्राज्य, मुगल, औरंगज़ेब, मेधा देशमुख भास्करन, Chhatrapati Shivaji, Sambhaji Maharaj, Maratha Empire, Mughals, Aurangzeb, Medha Deshmukh Bhaskaran
Tags: AurangzebChhatrapati ShivajiMaratha EmpireMedha Deshmukh BhaskaranMughalsSambhaji Maharajऔरंगजेबछत्रपति शिवाजीमराठा साम्राज्यमुग़लमेधा देशमुख भास्करनसंभाजी महाराज
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21 May 2025

नई दिल्ली। ऑपरेशन सिंदूर के बारे में दुनिया के कई देशों के दौरे पर जाने के लिए प्रस्तावित सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में नामों को लेकर कांग्रेस...

The Thoughtful Indian
समीक्षा

अजेय और अडिग भारत का उदय, पश्चिम की मान्यताओं को चुनौती

19 May 2025

Rise of India: भारत का उदय केवल अप्रत्याशित नहीं है, यह पुराने वैश्विक व्यवस्था को विचलित करने वाला है। यह इसलिए नहीं कि हमारा देश...

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