दिल्ली (Delhi) में 27 साल बाद भाजपा की सत्ता में वापसी किसी साधारण राजनीतिक बदलाव से कहीं अधिक है—यह बदलते राजनीतिक परिदृश्य का संकेत है। इस ऐतिहासिक क्षण को भव्य बनाने के लिए भाजपा ने 20 फरवरी को रामलीला मैदान में भव्य शपथ ग्रहण समारोह आयोजित करने का फैसला किया है। लेकिन यह केवल एक रस्मी आयोजन नहीं, बल्कि एक सशक्त संदेश भी है।
रामलीला मैदान कोई आम स्थल नहीं है, बल्कि भारतीय राजनीति के सबसे बड़े आंदोलनों और बदलावों का साक्षी रहा है। 1977 में जब आपातकाल के बाद जनता पार्टी की विजय रैली यहां हुई थी, तब ‘सिंहासन खाली करो’ की गूंज ने सत्ता परिवर्तन की पटकथा लिखी थी। यही वह मैदान है जहां अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ जन आंदोलन ने सरकार को झुका दिया था। इसी मंच से अरविंद केजरीवाल ने सत्ता तक पहुंचने की अपनी यात्रा शुरू की थी। और अरविन्द केजरीवाल और आप यानी आम आदमी पार्टी अक उदय हुआ था। और अब, 27 साल के लंबे इंतजार के बाद, ‘आप – दा हटाओ’ जैसे नारों की बदौलत भाजपा इसी ऐतिहासिक भूमि पर अपनी सरकार का शपथ ग्रहण कर यह संकेत देने जा रही है कि दिल्ली की राजनीति अब एक नई दिशा की ओर बढ़ रही है।
इसी मैदान से आंदोलनकारी से नेता बने थे केजरीवाल
रामलीला मैदान भारतीय राजनीति के सबसे बड़े गवाहों में से एक रहा है, जहां कई ऐतिहासिक आंदोलन जन्मे और सत्ता परिवर्तन की नींव रखी गई। यही वह ऐतिहासिक स्थल है, जहां अन्ना आंदोलन ने देशभर में गूंज पैदा की थी और अरविंद केजरीवाल ने एक आंदोलनकारी से नेता बनने की अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी। इसी मंच से उन्होंने सरकार की नीतियों को ललकारा, अनशन किया, अपनी पार्टी बनाई और फिर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुए। अब 27 साल बाद दिल्ली में भाजपा की सत्ता वापसी के साथ एक और ऐतिहासिक अध्याय लिखा जा रहा है, जब 20 फरवरी को पार्टी इसी रामलीला मैदान में अपना शपथ ग्रहण समारोह आयोजित करने जा रही है।
इस कहानी को समझने के लिए करीब 14 साल पीछे जाना होगा, जब अगस्त 2011 में अन्ना हजारे ने जन लोकपाल बिल को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। यह विरोध प्रदर्शन धीरे-धीरे एक विशाल जनांदोलन में बदल गया, जिसने पूरी यूपीए सरकार को हिला कर रख दिया। देशभर से हजारों लोग रामलीला मैदान में जुटने लगे, हर ओर ‘मैं भी अन्ना’ लिखी टोपियां नजर आने लगीं। इस आंदोलन का चेहरा भले ही अन्ना हजारे थे, लेकिन धीरे-धीरे एक और नाम जनता की जुबान पर चढ़ने लगा—अरविंद केजरीवाल। प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देने से लेकर मैग्सेसे पुरस्कार जीतने तक की उनकी कहानियां इस मंच से बार-बार दोहराई गईं। लेकिन उनकी असली राजनीतिक पारी इसी मैदान से शुरू होने वाली थी।
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अन्ना आंदोलन ने सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया, लेकिन आंदोलन खत्म होते ही केजरीवाल ने खुद राजनीति में उतरने का फैसला कर लिया। उन्होंने ऐलान किया कि वे अब सिस्टम का हिस्सा बनकर इसे सुधारेंगे। इसके बाद उन्होंने एक नई राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा की और एक साल के भीतर ही दिल्ली की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया। 2013 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को अप्रत्याशित सफलता मिली, और कांग्रेस के समर्थन से केजरीवाल मुख्यमंत्री बने। दिलचस्प बात यह रही कि उन्होंने अपने शपथ ग्रहण के लिए उसी रामलीला मैदान को चुना, जहां से उनकी सियासी यात्रा शुरू हुई थी।
28 दिसंबर 2013 को जब केजरीवाल ने रामलीला मैदान से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तो वहां का नजारा पूरी तरह बदल चुका था। जहां पहले ‘मैं भी अन्ना’ की टोपियां नजर आती थीं, अब वहां ‘मैं हूं आम आदमी’ की गूंज थी। मंच से उनका भाषण भी अब एक आंदोलनकारी का नहीं, बल्कि सत्ता की जिम्मेदारी संभालने वाले नेता का था। आंदोलन का उग्र स्वरुप अब सरकार चलाने की व्यावहारिकता में बदल चुका था। और अब, इस ‘आप-दा’ को हटाने के बाद, 27 साल बाद भाजपा दिल्ली की सत्ता में लौट रही है, और 20 फरवरी को यही रामलीला मैदान इस ऐतिहासिक वापसी का गवाह बनेगा।
जनता पार्टी की विजय रैली
यही नहीं इस मैदान ने भारतीय राजनीति और संस्कृति में कई महत्वपूर्ण घटनाओं को जन्म दिया है। 1956 और 1957 में पंडित नेहरू ने यहां विशाल जनसभाओं को संबोधित किया था। 1963 में पंडित नेहरू की उपस्थिति में ही भारत की स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने “ऐ मेरे वतन के लोगों” गाकर हर दिल को छू लिया था।
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इसके बाद, रामलीला मैदान की गूंज इंदिरा गांधी के खिलाफ उठने वाले जनआंदोलन की भी गवाह रही है। 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी के तानाशाही शासन के खिलाफ जय प्रकाश नारायण ने इस मैदान पर ऐलान किया कि इस सरकार को उखाड़ फेंका जाएगा। यही वह ऐतिहासिक पल था जब जयप्रकाश नारायण ने रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध कविता ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ को एक नारे के रूप में पेश किया। इस उद्घोष के बाद ही इंदिरा गांधी ने रातोंरात देश में इमरजेंसी लागू कर दी थी, और इस प्रकार रामलीला मैदान एक और सियासी इतिहास का गवाह बन गया।