कहते हैं पीठ पर पड़ी लात से पेट पर पड़ी लात कहीं अधिक मारक होती हैI इसे समझने के लिए कोई रॉकेट साइंस आना भी जरूरी नहीं हैI जाहिर सी ही बात है कि पीठ जैसे मजबूत अंग के बदले पेट जैसे नाजुक अंग पर चोट ज्यादा लगेगी लेकिन असल में इस लोकोक्ति के मायने आर्थिक संसाधन, यानी पेट भरने के संसाधन बंद कर देने से होता हैI डोनाल्ड ट्रंप ने जैसे ही अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ ली, उसके एक दिन के अंदर ही जो फैसले कर डाले हैं, उनसे सदा संदिग्धों, यानी ‘यूजुअल सस्पेक्ट’ जमात सदमे में आ गयी हैI असल में उनकी फंडिंग के जो तौर-तरीके थे, उनपर ट्रंप के कुछ फैसलों से जोरदार चोट पड़ गयी हैI यही वजह है कि 42 के लगभग फैसलों में से कुछ फैसले सुनाई देने लगे हैंI
भारत में एनजीओ जमातों को जो फंडिंग आती रही है, उसके जरिये देश विरोधी गतिविधियों को भी शह मिलती रही है, ये बात लम्बे समय से ज्ञात हैI मोदी सरकार के आने के बाद से यानी 2014 से ही संदिग्ध एनजीओ बंद होने शुरू हो चुके थेI वर्ष 2022 में आई अखबारों की रिपोर्ट बताती हैं कि पांच वर्षों में ही संदिग्ध विदेशी फंडिंग वाले 6677 एनजीओ पर गाज गिरी थीI गृह मंत्रालय द्वारा एफसीआरए नियमों के उल्लंघन पर लगातार कार्रवाई होती रही हैI गृह मंत्रालय के साथ सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भी प्रतिबन्ध लगाता रहा हैI अब सवाल है कि ट्रंप के फैसलों ने अमेरिका से दुनिया तक ऐसा क्या-क्या कर दिया है जिससे इनके धंधों पर और चोट पड़ेगी?
WHO से खींचा हाथ
अपने शुरूआती फैसलों में ही ट्रंप ने WHO से हाथ खींच लेने की घोषणा कर दी हैI इसपर विश्व स्वास्थ्य संगठन का वक्तव्य भी आ चुका हैI अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन की 1948 में स्थापना के दौरान, संस्थापक देशों में से एक थाI फिलहाल विश्व के 193 देश डब्ल्यूएचओ के सदस्य हैंI अपने वक्तव्य में डब्ल्यूएचओ ने कहा कि साथ मिलकर हमने स्मालपॉक्स को समाप्त किया, पोलियो को करीब-करीब खत्म कर दिया है और अमेरिकी संस्थाओं ने इसमें बहुत योगदान दियाI वो उम्मीद जता रहे हैं कि अमेरिका अपने फैसले पर पुनः विचार करेगाI इसकी तुलना में ट्रंप के फैसले को देखेंगे तो उनका ये फैसला अप्रत्याशित तो बिलकुल नहीं थाI
कोविड-19 के दौर में जब पूरी दुनिया एक महामारी से जूझ रही थी तो तब के डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने चीन को कोविड-19 वायरस के मामले में क्लीन चिट देने की कोशिश की थीI ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में ही डब्ल्यूएचओ की इस बेशर्मी पर कड़ी आपत्ति जाता दी थीI उन्होंने सीधे ही डब्ल्यूएचओ को चीन के हाथों बिकी हुई कठपुतली कहने में भी कोई परहेज नहीं किया थाI ट्रंप का ये फैसला अपना पूरा असर दिखाने में करीब एक वर्ष का समय तो लेगा, लेकिन इसका असर व्यापक होने वाला हैI अकेले अमेरिका डब्ल्यूएचओ के कुल फण्ड का लगभग 18 प्रतिशत दे रहा होता हैI एक तो इतने पैसे की चोट का असर होगा, दूसरे विश्वसनीयता और साख पर दूरगामी प्रभाव होगा और तीसरा जो परोक्ष असर है, वो है अमेरिकी स्वास्थ्य सेवाओं पर इसका प्रभावI जो फण्ड डब्ल्यूएचओ से निकलेंगे वो अमेरिका की अपनी स्वास्थ्य सेवा में जायेंगे और इसका परिणाम भी आने वाले वर्षो में दिखेगाI
डाइवर्सिटी और एलजीबीटीक्यू+ के जुमलों का क्या होगा?
आम तौर पर भारतीय केवल एलजीबीटी बोलकर/लिखकर रुक जाते हैं, जिससे इसका व्यापक असर दिखता ही नहींI असल में ये एलजीबीटीक्यू+ होता है और इसमें जो अंतिम ‘प्लस’ वाला हिस्सा है, वो कई गंभीर प्रश्न खड़े करता हैI शुरुआती एलजीबीटी की समलैंगिकता के पीछे छुपे इस ‘प्लस’ वाले हिस्से में पशुओं और बच्चों के साथ यौन सम्बन्ध बनाने का रुझान रखने वाले भी आ जायेंगेI अमेरिका में कई कानूनी मसले ऐसे ही शब्दों के जाल में फंसाकर अटकाए जा रहे थेI इसी का एक उदाहरण ‘सेक्स’ को ‘बायोलॉजिकल’ और ‘जेंडर’ को ‘सोशल कंस्ट्रक्ट’ बताना भी थाI नए आदेशों में स्पष्ट कर दिया गया है कि ये शब्दों का जाल नहीं चलेगा और अब अमेरिकी सरकार के कामकाज में सीधे ‘सेक्स’ शब्द इस्तेमाल होगा, ‘जेंडर’ के आधार पर फैसले नहीं होंगेI जो 125 से अधिक ‘जेंडर’ घोषित करने की कवायद होती थी, उसपर इस एक स्त्री-पुरुष के जीव-विज्ञान आधारित भेद को मानने के फैसले से रोक लग जाती हैI
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो एनजीओ लेंगिक परिवर्तन के लिए सरकारी फण्ड ले रहे हैं, अपने आयोजनों के लिए सरकारों पर दबाव बनाते हैं, उनपर इस फैसले से करारी चोट हो गयी हैI रंग और नस्ल के आधार पर वरीयता दिए जाने, यानी किसी को जन्म के आधार पर ही अयोग्य घोषित करके नौकरी इत्यादि न देने के डीईआई के जो बाईडेन के फैसले थे, उन्हें भी पहले ही दिन पलट दिया गया हैI इससे हुई केवल आर्थिक क्षति ही देखने लायक नहीं हैI अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इससे जो स्वीकार्यता थी, अमेरिका जैसा बड़ा देश जिसे स्वीकार रहा है, उसकी हानि हो गयी हैI हिन्दुओं (यानी भारत) के लिए समलैंगिकता की स्वीकार्यता कठिन नहीं थीI जिन इसाई और मुस्लिम राष्ट्रों में पहले से ही इस किस्म की यौनिकता स्वीकार्य नहीं है, वहाँ अब इससे दिक्कतें होंगीI इन दिक्कतों को सुलझाने में जो आर्थिक स्रोत लगेंगे, उनकी आपूर्ति नयी समस्या अवश्य हैI
USAID बंद होने से भारत में क्या होगा असर
यूएसएड की स्थापना 1961 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ़ कैनेडी ने की थी। दुनिया भर में इसके क़रीब 10,000 कर्मचारी हैं और इसका सालाना बजट क़रीब 40 अरब डॉलर है, जबकि अमेरिकी सरकार की विदेशों में सहायता पर कुल बजट 68 अरब डॉलर का हैI यूएसएड की वेबसाइट पर भारत को दी गई मदद के बारे में जो जानकारी दी गई है उसके अनुसार, इसने पोषण, टीकाकरण, स्वच्छता, पर्यावरण, क्लीन एनर्जी, स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में अहम भूमिका निभाई हैI कुछ अफवाहबाज कहते हैं कि देश का पहला भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आईआईटी खड़गपुर भी यूएसएड की मदद से स्थापित किया गया थाI इसका सच्चाई से अधिक लेना-देना नहीं हो सकता क्योंकि आईआईटी खड़गपुर, 1950 में स्थापित हुआ था और यूएसएड 1961 में बना थाI
जब 2004 में सुनामी के दौरान भारत की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने सशर्त विदेशी मदद लेने की नीति में बदलाव किया, उसके बाद यूएसएड से भारत को मिलने वाली मदद में अपेक्षाकृत कमी आईI अमेरिकी सरकार के फॉरेन असिस्टेंस पोर्टल के मुताबिक़, पिछले चार सालों में भारत को 65 करोड़ डॉलर की मदद मिली, जबकि 2001 से लेकर अबतक भारत को 2.86 अरब डॉलर की मदद मिल चुकी हैI पोर्टल के अनुसार, यूएसएड की ओर से भारत को 2022 में सबसे अधिक 22.82 करोड़ डॉलर की मदद मिली, 2023 में 17.57 करोड़ डॉलर और 2024 में 15.19 करोड़ डॉलर की मदद मिलीI यूएसएड से मदद पाने के मामले में भारत तीसरे स्थान पर रहा हैI
यूएसएड ने भारत में क्लीन एनर्जी, स्वच्छ जल और स्वच्छता और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार के साथ मिलकर कई कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया हैI जून 2023 में भारत सरकार और यूएसएड के बीच भारतीय रेलवे को 2030 तक नेट ज़ीरो कॉर्बन लक्ष्य हासिल करने के लिए एक मेमोरेंडम पर हस्ताक्षर किए गए थेI व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने आरोप लगाया कि इस एजेंसी को ‘कट्टर वामपंथी सनकी’ चला रहे हैं। वे “बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार कर रहे हैं और नाम और अन्य जानकारियां साझा नहीं कर रहे हैंI” ट्रंप प्रशासन में सरकारी खर्च कटौती के लिए बने विभाग के अनौपचारिक प्रमुख एलन मस्क ने भी यूएसएड को बंद करने की बात कही थीI बीते एक सप्ताह में यूएसएड के दो शीर्ष अधिकारियों को छुट्टी पर भेज दिया गया और एजेंसी की वेबसाइट डाउन हो गईI
क्या मीडिया पर भी इसका असर होगा?
कोलंबिया जर्नलिज्म रिव्यु के मुताबिक यूएसएड 30 अलग अलग देशों में 6200 पत्रकारों और 707 न्यूज़ आउटलेट को सहयोग दे रहा थाI इसके अलावा वो 279 मीडिया क्षेत्र की सिविल सोसाइटी समूहों को भी आर्थिक सहयोग दे रहा थाI भारत में अगर देखें तो ऐसी संस्थाओं और पत्रकारों की कोई कमी नहीं जो सरकार के खिलाफ एक एजेंडा के तहत काम करते दिखते हैंI स्वयं यूएसएड द्वारा 2021 में प्रकाशित ‘डिसइनफार्मेशन प्राइमर’ नाम के एक प्रकाशन में तो राना अयूब जैसों को उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत किया गया हैI जाहिर है कि एलजीबीटी, जलवायु परिवर्तन, जेंडर जैसे मुद्दों के बहाने भारत को नीचा दिखाने का प्रयास करने वाले कई तथाकथित पत्रकारों और संस्थाओं की फंडिंग भी यूएसएड की फंडिंग के साथ ही रुक जाएगीI
ये माना जा सकता है कि ‘सदा संदिग्ध’ एक जगह से पैसा रुकते ही किसी दूसरे बहाने से फंडिंग जुटा कर फिर से टूट पड़ेंगेI फिलहाल के लिए थोड़ी राहत मिल गयी है, लंबे समय के लिए हमें अपने खुद के विकल्प बनाने पर विचार करना होगाI