भारत की आध्यात्मिकता का दुनिया भर में विस्तार हो रहा है। यह विस्तार यूएई, ओमान से लेकर दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया तक में देखने को मिल रहा है। जकार्ता में स्थित मुरुगन मंदिर इंडोनेशिया का पहला ऐसा मंदिर बनने जा रहा है, जो आध्यात्मिकता, संस्कृति और एकता की मिसाल पेश करेगा। भगवान मुरुगन एवं अन्य देवताओं को समर्पित इस मंदिर को श्री सनातन धर्म आलयम के नाम से भी जाना जाता है। भगवान कार्तिकेय को दक्षिण भारत में मुरुगन के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का उद्घाटन 2 फरवरी 2025 को महाकुंभाभिषेक समारोह के साथ किया गया। इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शिरकत की और भारत एवं इंडोनेशिया के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक संबंधों की चर्चा की।
महाकुंभाभिषेक में वर्चुअली भाग लेते हुए पीएम मोदी ने कहा, “दोनों देशों के बीच भौगोलिक दूरी है। इसके बावजूद दोनों देशों के बीच संबंध मजबूत हैं, जो विरासत, इतिहास और विश्वास पर आधारित हैं। मैं जकार्ता से दूर हूँ, लेकिन मेरा मन इसके करीब है, जैसे भारत और इंडोनेशिया एक दूसरे के करीब हैं। भारत और इंडोनेशिया के लोगों के लिए, हमारे रिश्ते सिर्फ़ भू-राजनीतिक नहीं हैं, हम संस्कृति से जुड़े हैं। हम हज़ारों साल पुराने इतिहास से जुड़े हैं। हमारे रिश्ते विरासत, विज्ञान, आस्था और आध्यात्मिकता से जुड़े हैं। हम भगवान मुरुगन और भगवान श्रीराम से भी जुड़े हुए हैं और हम भगवान बुद्ध से भी जुड़े हुए हैं।”
उन्होंने कहा, “जब भारत से इंडोनेशिया जाने वाला व्यक्ति प्रमबानन मंदिर में हाथ जोड़ता है तो उसे काशी और केदार जैसा ही आध्यात्मिक अनुभव होता है। जब भारत के लोग काकाविन और सेरत रामायण के बारे में सुनते हैं, तो उन्हें वाल्मीकि रामायण, कम्ब रामायण और रामचरितमानस जैसी ही अनुभूति होती है। अब भारत में इंडोनेशिया की रामलीला का मंचन अयोध्या में भी होता है। इसी तरह, जब हम बाली में ‘ओम स्वस्ति-अस्तु’ सुनते हैं तो हमें भारत के वैदिक विद्वानों द्वारा स्वस्ति वाचन याद आता है।”
अभी बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए, जब इस मंदिर की नींव रखी गई थी। साल 2020 में 14 फरवरी को भारत और मलेशिया के पुजारियों ने इस मंदिर की भूमिपूजन किया था। इस मंदिर को बनाने के लिए इंडोनेशिया की प्रांतीय जकार्ता सरकार द्वारा उदारतापूर्वक 4,000 वर्ग मीटर की भूमि दान की गई थी। यह मंदिर जकार्ता के पश्चिमी भाग में स्थित है। श्री सनातन धर्म आलयम एक अनोखा मंदिर है, जिसका 40 मीटर ऊँचा राजगोपुरम यानी शिखर है। इसे विसरा गोपुरम नाम दिया गया है और इसके सामने 20 मीटर ऊँची भगवान मुरुगा की मूर्ति है।
इंडोनेशिया में बने पहले द्रविड़ मंदिर में भगवान मुरुगन, भगवान गणेश, देवी भुवनेश्वरी, भगवान शिव और देवी पार्वती, भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी, शिव लिंगम, भगवान हनुमान, ऋषि अगस्त्यर, नवकारगम, इदुंबन और अरापदाई विदु की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। इस मंदिर के परिसर में चारों तरफ हरे-भरे बगीचे और चिंतन एवं ध्यान लगाने के जरूरी साधन उपलब्ध कराए गए हैं।
यह मंदिर पंचशील के मूल्यों को अपनाते हुए भारतीय, बाली और जावा की परंपराओं के सामंजस्यपूर्ण सम्मिश्रण का प्रतीक है। यह आध्यात्मिक प्रथाओं, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और पर्यटन के लिए एक एकीकृत स्थान के रूप में कार्य करता है। मंदिर परिसर में सामुदायिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए सारी सुविधाओं से युक्त एक बहुउद्देशीय हॉल बनाया गया है, जिसमें 1200 लोगों की क्षमता है। यहाँ इंडोनेशियन-इंडियन विरासत का एक संग्रहालय भी स्थापित किया गया है, जो दोनों संस्कृतियों के बीच ऐतिहासिक संबंध को प्रदर्शित करता है।
मुरुगन मंदिर के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर में तिरुवल्लुअर मंडपम, भाषाओं और भगवदगीता के लिए कक्षा, हिंदू सांस्कृतिक और लोक-नृत्य केंद्र, भारतीय संस्कृति संग्रहालय, योग एवं ध्यान कक्ष, पारगमन स्थान, बड़े और छोटे बैठक कक्ष, निःशुल्क प्राकृतिक चिकित्सा क्लिनिक, किराने की दुकान, छोटे और बड़े गोदाम, लगभग 2000 हिंदू धर्म की पुस्तकों का पुस्तकालय और गुरुकुल शामिल हैं।
इंडोनेशिया के मेदान में भारत के महावाणिज्य दूतावास के अनुसार, भारत और इंडोनेशिया ने दो सहस्राब्दियों से घनिष्ठ सांस्कृतिक और वाणिज्यिक संपर्क साझा किए हैं। हिंदू, बौद्ध और बाद में मुस्लिम धर्म भारत के तटों से इंडोनेशिया पहुंचे। रामायण और महाभारत के महान महाकाव्यों की कहानियाँ इंडोनेशियाई लोक कला और नाटकों का स्रोत हैं।