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‘पूरी दुनिया में फैली महाकुंभ की महिमा’: हार्वर्ड के प्रोफेसर भी हुए महाआयोजन के मुरीद, बोले- ये है परंपरा, आध्यात्म और तकनीक का संगम

TFI Desk द्वारा TFI Desk
27 February 2025
in धर्म, विश्व, संस्कृति
महाकुंभ हार्वर्ड प्रोफेसर

हार्वर्ड के प्रोफेसर हुए महाकुंभ के मुरीद

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प्रयागराज में 45 दिनों तक चले महाकुंभ की महिमा पूरी दुनिया में फैल चुकी है। सनातन के इस सबसे बड़े महोत्सव को दुनिया भर में अलग-अलग नजरिए से देखा जा रहा है। अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर भी महाकुंभ के मुरीद हो गए हैं। हार्वर्ड के प्रोफेसर्स ने महाकुंभ को परंपरा और तकनीक के अनूठे मिश्रण के साथ-साथ वाणिज्य (व्यापार) और आध्यात्मिकता के संगम का केंद्र बताया है।

दरअसल, भारत के महावाणिज्य दूत विनय प्रधान ने अमेरिका के न्यूयॉर्क में स्थित दूतावास में  ‘इनसाइट्स फ्रॉम द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट स्प्रिचुअल गैदरिंग-महाकुंभ’ यानी ‘विश्व के सबसे बड़े आध्यात्मिक समागम-महाकुंभ’ विषय पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम में में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में जॉर्ज पाउलो लेमैन के प्रोफेसर तरुण खन्ना, हार्वर्ड डिवाइनिटी स्कूल में तुलनात्मक धर्म एवं भारतीय अध्ययन की प्रोफेसर डायना ईक और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की सहायक प्रोफेसर टियोना जुजुल शामिल हुईं।

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इस कार्यक्रम में प्रोफेसरों ने साल 2013 में आयोजित हुए कुंभ मेले में बिताए समय के दौरान किए गए शोध से अपने अनुभव शेयर किए। साथ ही इस महाकुंभ के आयोजन के विभिन्न आयामों जैसे आध्यात्मिकता, टेक्नोलॉजी, प्रशासन और परंपरा और अर्थव्यवस्था के संगम पर चर्चा की। इस दौरान प्रोफेसर तरुण खन्ना ने कहा, ”मैं व्यक्तिगत रूप से एक शोधार्थी के रूप में परंपरा एवं तकनीक के इस मेल को लेकर आकर्षित हो रहा हूं कि समाज कैसे विकसित हो रहा है। हम कुछ चीजों को अपने मूल में रखते हैं, इससे जो परंपरा है वह बनी रहती है। लेकिन इसके साथ तकनीक की परतें जुड़ती चली जाती हैं।

प्रोफेसर खन्ना ने आगे कहा कि महाकुंभ इस बात का एक उल्लेखनीय उदाहरण है कि धार्मिक कार्यक्रमों में तकनीक को कैसे शामिल किया जा सकता है। तकनीक और धर्म का संगम बताते हुए उन्होंने कहा कि यह देखना बेहद आकर्षण और रोचक था कि ‘खोया-पाया’ विभाग (वस्तुओं या श्रद्धालुओं के गुमने या पाए जाने का केंद्र) को भी डिजिटल रूप से तैयार किया गया था। उन्होंने महाकुंभ के दौरान साफ-सफाई को लेकर कहा कि 2025 के कुंभ को ‘स्वच्छ कुंभ’ कहा जाना चाहिए क्योंकि इतने अधिक श्रद्धालु होने के बाद भी जिस तरह से सफाई थी, वह वास्तव में अद्भुत थी।
प्रोफेसर डायना ईक ने महाकुंभ को लेकर की गई तैयारियों और व्यवस्थाओं को ओर ध्यान केंद्रित करते हुए कहा, “हमें सबसे ज्यादा हैरानी इस बात से हुई कि यह शहर (महकुंभ सिटी) इतने कम समय में बनाया गया है।” इसके अलावा उन्होंने बिजली सबस्टेशन, इंजीनियरिंग टीमें, स्वास्थ्य सेवाएं और महाकुंभ के आयोजन को अच्छे तरह से सम्पन्न कराने वाले लोगों को लेकर भी बात की। 
डायना ईक ने महाकुंभ में काम करने वाले कुशल कारीगरों की भी तारीफ की। उन्होंने कहा कि कारीगर सिर्फ 4-5 चीजों का उपयोग करते हैं और बेहतरीन तंबू तैयार कर देते हैं। महाकुंभ कम सामग्री में जल्दी और अच्छे तरीके से काम करने की क्षमता का बेहतरीन उदाहरण है। इससे दुनिया को सीख लेनी चाहिए।
इस कार्यक्रम में मौजूद प्रोफेसर टियोना जुजुल साल 2013 में आयोजित हुए कुंभ को लेकर शोध करने पहली बार भारत आई थीं। तब से ही वह कुंभ से प्रभावित हैं। प्रोफेसर जुजुल ने कहा, “मैं यह समझना चाहती हूं कि व्यवसाय और आध्यात्मिकता का यह संगम कैसे विकसित हुआ होगा। न केवल सरकार बल्कि बड़े और स्थानीय व्यापारियों के लिए यह सोचना महत्वपूर्ण है कि वे किस तरह का कुंभ बनाना चाहते हैं। इस साल जिस चीज ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया, वह एक सफल और व्यवस्थित कुंभ के लिए बुनियादी ढांचा बनाने में दी गई सोच, चाहे वह शौचालयों की संख्या हो या फिर AI से लैस कैमरे जो किसी भी स्थान पर मौजूद लोगों की संख्या तक गिन सकते थे।”
प्रोफेसर जुजुल ने यह भी कहा कहा कि महाकुंभ में व्यापार और अर्थव्यवस्था का आध्यात्मिकता से जुड़ाव दिखाई देता है। साथ ही महाकुंभ के आयोजन में रसद आपूर्ति की चुनौती से जिस तरह से निपटा जाता है, वह भी काबिले तारीफ है। प्रोफेसर जुजुल ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि साल 2037 में होने वाले महाकुंभ में वे फिर से भारत जा सकेंगी। बता दें कि कि 13 जनवरी 2025 से शुरू हुए महाकुंभ में 66 करोड़ से अधिक लोगों ने संगम में स्नान किया है। 26 फरवरी, 2025 यानी महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर इस महा-आयोजन का समापन कर दिया गया है।
Tags: AmericaHarvard UniversityMahakumbhPrayagrajUttar Pradeshअमेरिकाउत्तर प्रदेशधर्मप्रयागराजमहाकुंभसनातनसंस्कृतिहार्वर्ड यूनिवर्सिटी
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