कांग्रेस नेता पवन खेड़ा, जिन्हें झूठ फैलाने और बेतुकी बयानबाजी के लिए जाना जाता है, एक बार फिर सुर्खियों में आने की कोशिश कर रहे हैं। ये वही पवन खेड़ा हैं, जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिता पर घटिया टिप्पणी कर अपनी सोच का स्तर दिखाया था। लेकिन बड़बोलापन और फेक न्यूज़ तो कांग्रेस के नेताओं की पहचान बन चुका है। जिस पार्टी की सुप्रीमो सोनिया गांधी ही प्रधानमंत्री को “मौत का सौदागर” कहकर जहर उगलती रही हों, और उनके 54 वर्षीय कथित युवाओं के नेता प्रधानमंत्री मोदी को “जहर की खेती” करने वाला बताते आए हों, वहां पवन खेड़ा जैसे नेता के झूठे और निम्न स्तर के बयान गर्व की बात ही माने जाते होंगे। इस बार खेड़ा साहब ने आरएसएस (RSS) पर ट्वीट करते हुए दावा किया है “77 साल पहले आज (4 फ़रवरी 2025) ही के दिन लौह पुरुष सरदार पटेल ने RSS पर प्रतिबंध लगाया था।” लेकिन सच यह है कि पवन खेड़ा का इतिहास ज्ञान और तथ्यों से नाता उतना ही है जितना बतौर प्रधानमंत्री राहुल गांधी का अनुभव।
पवन खेड़ा पर पलटवार
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा एक बार फिर अपने विवादित और तथ्यहीन बयानों की वजह से चर्चा में हैं। 4 फरवरी 2024 को उन्होंने “द गजट ऑफ इंडिया” के एक पेज की तस्वीर ट्वीट करते हुए लिखा, “77 साल पहले आज ही के दिन लौह पुरुष सरदार पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था।” सरदार वल्लभभाई पटेल का नाम लेकर किया गया यह दावा कांग्रेस की इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने की पुरानी आदत का भी एक और उदाहरण बन गया है।
खेड़ा के इस ट्वीट पर ‘Friend of RSS’ नाम के ट्विटर अकाउंट ने पलटवार करते हुए उन्हें आईना दिखाया। उन्होंने सरदार पटेल द्वारा प्रधानमंत्री नेहरू को लिखी गई चिट्ठी का हवाला देते हुए साफ किया कि 12 जुलाई 1949 को आरएसएस से प्रतिबंध हटा लिया गया था। कारण यह था कि संघ के खिलाफ सरकार कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर सकी थी। जिसकी जानकारी देते हुए उन्होंने लिखा,”12 जुलाई 1949 को आरएसएस से प्रतिबंध हटा दिया गया क्योंकि सरकार के पास कोई भी ठोस सबूत नहीं था। सरदार पटेल ने खुद कांग्रेस को चेताया था कि देशभक्ति से प्रेरित आरएसएस को कुचलने की कोशिश न करें। उन्होंने संघ के कार्यकर्ताओं की सराहना करते हुए कहा था कि वे न केवल हिंदू समाज की सेवा कर रहे हैं, बल्कि महिलाओं और बच्चों की रक्षा में भी अहम योगदान दे रहे हैं।”
On July 12, 1949, the government lifted the ban on RSS, unable to present any compelling evidence against it. Sardar Patel had warned Congress against crushing the patriotic RSS. He praised RSS workers for serving Hindu society & protecting women and children.
Seems like Mr.… https://t.co/m3KsWhJHrx pic.twitter.com/tg3tM4ky23
— Friends of RSS (@friendsofrss) February 5, 2025
यही नहीं इस ट्वीट में आगे कांग्रेस नेता की चुटकी लेते हुए उन्होंने लिखा,”ऐसा लगता है कि श्री पवन खेड़ा तथ्यों से कोसों दूर जिंदगी जीते हैं, जबकि सरदार पटेल ने समझ लिया था कि वे फेक न्यूज़ के शिकार हो गए थे।”
आरएसएस बैन पर सरदार पटेल का असली नजरिया
सरदार वल्लभभाई पटेल भारतीय राजनीति के एक विशाल व्यक्तित्व थे, जिनकी सोच हमेशा राष्ट्रहित और हिंदू परंपराओं से जुड़ी हुई थी। भले ही वह कांग्रेस के सदस्य रहे, लेकिन उनका दृष्टिकोण हमेशा राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के पक्ष में था। सरदार पटेल को लेकर एक आम धारणा यह है कि वह आरएसएस के खिलाफ थे, लेकिन सच्चाई इससे कहीं अलग है।
गांधी जी की हत्या से पहले, जनवरी 1948 में पटेल ने कहा था, “आप किसी संगठन को डंडे के बल पर नहीं कुचल सकते। डंडा तो केवल अपराधियों के लिए होता है, संघ तो एक देशभक्त संगठन है। उन्हें अपने देश से प्यार है, बस उनकी सोच की दिशा में थोड़ी भटकाव है।” यह बयान न केवल संघ के प्रति उनके विचारों को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि पटेल संघ के सदस्यों को लेकर सकारात्मक सोच भी रखते थे।
लेकिन 30 जनवरी 1948 को गांधीजी की हत्या के बाद, हालात बदल गए। गांधी और पटेल का रिश्ता केवल एक राजनीतिक रिश्ते से कहीं ज्यादा था ऐसे में गांधी की हत्या ने पटेल को भीतर से हिला दिया। वह गृह मंत्री थे, और गांधीजी की हत्या की जांच में उनका सीधा संबंध था। गांधीजी की हत्या के बाद, आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया, लेकिन जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, पटेल को यह महसूस हुआ कि संघ का इसमें कोई सीधा संबंध नहीं था।
इस बीच पटेल ने नेहरू को 27 फरवरी 1948 को लिखी एक चिट्ठी में स्पष्ट किया, “गांधीजी की हत्या में आरएसएस का कोई हाथ नहीं था। यह हिंदू महासभा के एक कट्टरपंथी गुट द्वारा की गई साजिश थी।” हालांकि, उन्होंने यह भी माना कि संघ और हिंदू महासभा के कुछ सदस्य गांधीजी की विचारधारा के खिलाफ थे और उनकी हत्या का स्वागत किया। राजनीति में संघ की भूमिका नहीं होने की शर्त पर लगभग डेढ़ साल बाद, 12 जुलाई 1949 को यह प्रतिबंध हटा लिया गया।
आज जब पवन खेड़ा जैसे कांग्रेस नेता आरएसएस पर आरोप लगाते हैं और तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं, तो यह कहना बिल्कुल सही होगा कि उन्होंने इतिहास को सही से नहीं समझा। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस सरदार पटेल को वे “आयरन मैन” कहते हैं, उन्हीं पटेल ने संघ की देशभक्ति को भी स्वीकार किया था।
महात्मा गांधी की हत्या के बाद नेहरू जी को गुरु जी की चिठ्ठी
आइए इतिहास के उन पन्नों को पलटते हैं, जिन्हें कांग्रेस ने बरसों तक छिपाए रखा। महात्मा गांधी की हत्या के बाद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को बार-बार कटघरे में खड़ा किया गया। ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का दृष्टिकोण’ नामक पुस्तक में लेखक नरेंद्र ठाकुर ने महात्मा गांधी की हत्या के बाद की घटनाओं का जिक्र किया है। इसमें बताया गया है कि गांधी जी की हत्या का दुखद समाचार पाकर तत्कालीन सरसंघचालक गुरुजी (एमएस गोलवलकर) ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को चिट्ठी लिखकर इस घटना पर गहरी संवेदनाएं व्यक्त की थीं।
गुरुजी ने अपनी चिट्ठी में लिखा, “महात्मा गांधी की हत्या एक निंदनीय कृत्य है, जो एक अविचारी और भ्रष्ट हृदय वाले व्यक्ति का काम है।” अब सवाल उठता है कि जिस संगठन के शीर्ष नेता ने गांधी की हत्या को लेकर इतना कड़ा विरोध दर्ज किया, क्या वह संगठन हत्या की साजिश का हिस्सा हो सकता है?
इतना ही नहीं, ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का दृष्टिकोण’ पुस्तक के अनुसार, महात्मा गांधी ने खुद 1934 में आरएसएस के एक शिविर का दौरा किया था। विभाजन के बाद, जब दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे, गांधी जी हरिजन कॉलोनी में रह रहे थे। जिस मैदान में संघ की शाखाएं लगती थीं, वहीं गांधी जी की प्रार्थना सभा भी होती थी।
16 सितंबर 1947 को गांधी जी ने आरएसएस के स्वयंसेवकों से मिलने की इच्छा व्यक्त की। कर्फ्यू के दौरान, आरएसएस के मंडल स्तर से ऊपर के कार्यकर्ताओं को बुलाया गया। गांधी जी ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए संघ को “एक सुसंगठित और अनुशासित संस्था” बताया।
यही नहीं इस सम्बोधन में उन्होंने कहा था कि “बरसों पहले मैं वर्धा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(RSS) के एक शिविर में गया था। उस समय इसके संस्थापक श्री हेडगेवार जीवित थे। स्व. श्री जमनालाल बजाज मुझे शिविर में ले गये थे और वहाँ मैं उन लोगों का कड़ा अनुशासन, सादगी और छुआछूत की पूर्ण समाप्ति देखकर अत्यन्त प्रभावित हुआ था। तब से संघ काफी बढ़ गया है। मैं तो हमेशा से यह मानता आया हूँ कि जो भी संस्था सेवा और आत्म-त्याग के आदर्श से प्रेरित है, उसकी ताकत बढ़ती ही है।” ऐसे में यह कहना कि आरएसएस गांधी जी की हत्या का हिस्सा था, तथ्यों को पूरी तरह नजरअंदाज करना है।
आरएसएस और आंबेडकर
भारत के संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर ने भी आरएसएस(RSS) के प्रति अपने विचार खुले मन से साझा किए थे। विश्व संवाद केंद्र के अनुसार, 2 जनवरी 1940 को डॉ. आंबेडकर ने महाराष्ट्र के कराड में आरएसएस की एक शाखा का दौरा किया। यह वह समय था जब संघ का नाम अपनी अनुशासित कार्यशैली के लिए जाना जाने लगा था। शाखा के इस दौरे पर डॉ. आंबेडकर ने स्वयंसेवकों से मुलाकात की और उन्हें संबोधित करते हुए कहा, “हालांकि हमारे विचार कुछ मुद्दों पर अलग हो सकते हैं, लेकिन संघ को मैं अपनेपन की भावना से देखता हूं।” यह बयान एक बड़े सामाजिक नेता के संघ के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को दर्शाता है।