कांग्रेस सांसद शशि थरूर, जो अपनी पार्टी लाइन से हटकर कभी-कभी मोदी सरकार की नीतियों की प्रशंसा करने के लिए जाने जाते हैं, इस बार ‘वैक्सीन मैत्री’ पहल के मुरीद नजर आए। उन्होंने भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी को देश की सॉफ्ट पावर को मजबूत करने वाला कदम बताते हुए स्वीकार किया कि मोदी सरकार की यह रणनीति भारत को एक उत्तरदायी वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करने में सफल रही है।
अपने लेख में थरूर ने लिखा कि जहां कई अमीर देशों ने वैक्सीन स्टॉक करने में रुचि दिखाई, वहीं भारत ने जरूरतमंद देशों को प्राथमिकता देकर वैश्विक मंच पर अपनी जिम्मेदारी निभाई। उन्होंने माना कि भारत ने अपनी वैक्सीन उत्पादन क्षमता का प्रभावी ढंग से उपयोग किया, जिससे न केवल उसकी वैश्विक साख बढ़ी बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक भरोसेमंद सहयोगी के रूप में उसकी छवि और मजबूत हुई।
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब थरूर ने मोदी सरकार की विदेश नीति की सराहना की हो। इससे पहले भी वे समय-समय पर भारत की कूटनीतिक रणनीतियों और वैश्विक नेतृत्व क्षमता की तारीफ करते रहे हैं, भले ही उनकी पार्टी लगातार मोदी सरकार पर हमलावर रहती हो।
भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी ने वैश्विक मंच पर बनाई मजबूत पकड़
शशि थरूर ने भारत की स्वास्थ्य कूटनीति की अन्य पहलों को भी उजागर किया। उन्होंने बताया कि भारत ने मालदीव, नेपाल और कुवैत जैसे देशों में सैन्य डॉक्टरों की तैनाती कर वैश्विक स्वास्थ्य सहयोग में अहम योगदान दिया। साथ ही, दक्षिण एशिया के स्वास्थ्यकर्मियों के लिए ऑनलाइन प्रशिक्षण सत्रों का आयोजन कर क्षेत्रीय सहयोग को और मजबूत किया। भारत ने GAVI, क्वाड और पैन अफ्रीका ई-नेटवर्क जैसी अंतरराष्ट्रीय पहलों के जरिए दीर्घकालिक स्वास्थ्य साझेदारी को भी आगे बढ़ाया।
थरूर ने माना कि वैक्सीन मैत्री पहल ने न सिर्फ जरूरतमंद देशों को सहायता पहुंचाई, बल्कि दक्षिण एशिया और अफ्रीका में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने में भी मदद की। उन्होंने स्वीकार किया कि भारत की वैक्सीन कूटनीति ने उसकी सॉफ्ट पावर को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, हालांकि कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान वैक्सीन निर्यात अस्थायी रूप से रोकना पड़ा।
उन्होंने यह भी कहा कि जब महामारी की दूसरी लहर के दौरान भारत पर घरेलू जरूरतों को प्राथमिकता देने का दबाव था, तब भी उसकी वैक्सीन कूटनीति ने वैश्विक मंच पर मानवीय और रणनीतिक संतुलन का उदाहरण पेश किया।