देश की राजनीति में लंबे समय से मांग रही जातीय जनगणना को आखिरकार केंद्र सरकार ने हरी झंडी दे दी है। बुधवार को हुई मोदी कैबिनेट बैठक में इस ऐतिहासिक फैसले पर सहमति बनी। प्रेस ब्रीफिंग में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जानकारी दी कि अब जातीय जनगणना को देश की मूल जनगणना प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा। यह जनगणना सितंबर 2025 से शुरू हो सकती है, और इसे पूरा होने में दो साल तक का समय लग सकता है। यानी अंतिम आंकड़े संभवतः 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत में सामने आएंगे जो सीधे तौर पर 2029 के आम चुनावों से पहले सामाजिक-राजनीतिक विमर्श को गहराई से प्रभावित कर सकते हैं।
राजनीतिक रूप से यह फैसला इसलिए अहम माना जा रहा है क्योंकि जातीय आंकड़े न केवल सामाजिक न्याय के सवालों को पुनर्जीवित करेंगे, बल्कि क्षेत्रीय दलों को भी अपनी मांगों को राष्ट्रीय फलक पर और मजबूती से रखने का अवसर देंगे। बिहार, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु जैसे राज्यों में इसकी गूंज पहले से ही तेज़ है, और अब केंद्र का यह कदम देशभर में नई बहस और समीकरणों का जनक बन सकता है।
कैबिनेट बैठक में लिए गए ये अहम फैसले
मोदी कैबिनेट की बैठक में जहाँ जातीय जनगणना को लेकर ऐतिहासिक फैसला लिया गया, वहीं मोदी सरकार ने दो और बड़े निर्णयों को मंज़ूरी दी। पहला, शिलॉन्ग (मेघालय) से सिलचर (असम) तक हाई स्पीड कॉरिडोर बनाने का निर्णय है। यह कॉरिडोर लगभग 166 किलोमीटर लंबा होगा और इसे छह लेन में विकसित किया जाएगा। यह पूर्वोत्तर भारत के लिए एक रणनीतिक परियोजना मानी जा रही है, जिसकी कुल लागत करीब 864 करोड़ रुपये आंकी गई है। इससे न केवल कनेक्टिविटी बेहतर होगी बल्कि क्षेत्रीय विकास को भी गति मिलेगी।
दूसरा महत्वपूर्ण फैसला किसानों से जुड़ा है। सरकार ने 2025-26 के लिए गन्ने की फ़ेयर एंड रेमुनरेटिव प्राइस (FRP) यानी लाभकारी और न्यायसंगत मूल्य को 355 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। यह दर उस गन्ने के लिए लागू होगी, जिसमें 10.25% रिकवरी प्रतिशत होगा। सरकार ने साफ किया है कि यह न्यूनतम दर होगी यानी इससे कम कीमत पर किसानों से गन्ना नहीं खरीदा जा सकेगा। यह फैसला किसानों को सुनिश्चित आय और चीनी उद्योग को स्थायित्व देने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
कांग्रेस पर साधा निशान
मोदी कैबिनेट बैठक में जातीय जनगणना के ऐलान के साथ ही सरकार ने इस मुद्दे पर कांग्रेस सरकार के रवैये को भी कठघरे में खड़ा किया। प्रेस ब्रीफिंग में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सीधे कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा, “1947 के बाद से जाति जनगणना नहीं की गई। कांग्रेस की सरकारों ने हमेशा इसका विरोध किया। वर्ष 2010 में दिवंगत डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था कि जाति जनगणना के मामले पर कैबिनेट में विचार किया जाना चाहिए। इसके लिए मंत्रियों का एक समूह भी गठित किया गया था। अधिकांश राजनीतिक दलों ने जाति जनगणना की सिफारिश की थी। इसके बावजूद, कांग्रेस सरकार ने जाति का सर्वेक्षण या जाति जनगणना कराने का फैसला नहीं किया।”
उन्होंने आगे कहा, “यह अच्छी तरह समझा जा सकता है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने जाति जनगणना को केवल एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। कुछ राज्यों ने इस दिशा में अच्छा काम किया, लेकिन कुछ अन्य राज्यों ने इसे पूरी तरह राजनीतिक दृष्टिकोण से, गैर-पारदर्शी ढंग से किया। ऐसे सर्वेक्षणों ने समाज में संदेह और भ्रम पैदा किया। हमारे सामाजिक ताने-बाने को राजनीति से दूषित होने से बचाने के लिए आवश्यक है कि जातीय गणना को एक पारदर्शी प्रक्रिया के तहत राष्ट्रीय जनगणना में ही शामिल किया जाए।”