क्या मुस्लिम समुदाय के नागरिक, बिना अपने धर्म से विमुख हुए, संपत्ति विवादों में शरीयत कानून के बजाय भारत के धर्मनिरपेक्ष उत्तराधिकार कानून के तहत न्याय पा सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने इस संवेदनशील और अहम सवाल पर विचार की सहमति दे दी है।
गुरुवार को चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने केरल के त्रिशूर निवासी नौशाद के.के. द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई के लिए हामी भरी। याचिकाकर्ता का तर्क है कि वह इस्लाम धर्म का पालन करते हुए भी शरीयत की बजाय समान नागरिक उत्तराधिकार कानून के तहत संपत्ति का अधिकार चाहते हैं। कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए केंद्र सरकार और केरल सरकार को नोटिस जारी कर उनका पक्ष मांगा है। यह मामला न सिर्फ क़ानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह धर्म और व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के बीच संतुलन की दिशा में भी एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
याचिका में उठाए गए मुद्दे
दाखिल याचिका में यह सवाल उठाया गया है कि शरीयत कानून के तहत किसी मुस्लिम व्यक्ति को अपनी संपत्ति का केवल एक-तिहाई हिस्सा ही वसीयत के ज़रिए देने की इजाज़त है और वो भी सिर्फ ऐसे लोगों को जो इस्लामी उत्तराधिकारी नियमों में शामिल नहीं हैं। वहीं, शेष दो-तिहाई संपत्ति अनिवार्य रूप से तयशुदा धार्मिक नियमों के आधार पर कानूनी उत्तराधिकारियों में बांटी जाती है। याचिकाकर्ता ने इसे वसीयत की स्वतंत्रता पर गंभीर प्रतिबंध बताया है और कहा है कि अगर कोई व्यक्ति शरीयत से इतर अपनी संपत्ति का विभाजन करना भी चाहे, तो वह तब तक वैध नहीं माना जाएगा जब तक सभी कानूनी उत्तराधिकारी सहमत न हों। यह स्थिति व्यक्ति की संवैधानिक आज़ादी पर सीधा आघात करती है।
याचिका में यह भी दलील दी गई है कि इस तरह धार्मिक उत्तराधिकार नियमों का बाध्यकारी रूप से पालन कराना संविधान के अनुच्छेद 14 यानी समानता के अधिकार का उल्लंघन है। इसमें कहा गया कि मुस्लिम नागरिकों को संपत्ति पर वसीयत की वही आज़ादी नहीं मिलती जो भारत के अन्य समुदायों को प्राप्त है। यहां तक कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी करने वाले मुसलमानों को भी यह स्वतंत्रता नहीं दी जाती, जिससे मनमाना और भेदभावपूर्ण वर्गीकरण पैदा होता है।
इन तीन मामलों पर एक साथ सुनवाई
यह कोई पहला मामला नहीं है जब शरीयत कानून के तहत संपत्ति के बंटवारे को लेकर सवाल खड़े किए गए हों। इससे पहले, अप्रैल 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य याचिका पर सुनवाई के लिए हामी भरी थी। वह याचिका अलप्पुझा निवासी सफिया पी.एम. ने दाखिल की थी, जो ‘एक्स-मुस्लिम्स ऑफ केरल’ की महासचिव हैं। सफिया ने खुद को एक नास्तिक मुस्लिम महिला बताते हुए अदालत से गुहार लगाई थी कि उन्हें अपनी पैतृक संपत्ति का वितरण शरीयत कानून के बजाय धर्मनिरपेक्ष उत्तराधिकार कानून के अनुसार करने की अनुमति दी जाए।
इससे पहले 2016 में ‘कुरान सुन्नत सोसाइटी’ ने भी इसी मुद्दे पर एक याचिका दायर की थी, जो अभी तक सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अब इन तीनों याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई होगी, जिससे इस संवेदनशील और संविधानिक मसले पर एक व्यापक न्यायिक दृष्टिकोण सामने आ सकता है।