फरवरी में हुई MPC मीटिंग में रिज़र्व बैंक ने एक अहम फैसला लिया था। पांच साल बाद पहली बार रेपो रेट में कटौती की गई थी। उसके बाद ये लगातार दूसरी बार है जब RBI ने ग्लोबल टेंशन के बीच करोड़ों भारतीयों को राहत दी। RBI की 54वीं MPC बैठक, जो नए फाइनेंशियल ईयर FY26 की पहली मीटिंग भी थी, उसमें लिए गए फैसलों का ऐलान करते हुए गवर्नर संजय मल्होत्रा ने ग्लोबल इकोनॉमिक प्रेशर और ट्रेड वॉर को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि ऐसे चुनौती भरे हालात में भी सेंट्रल बैंक ने रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती(RBI Repo Rate Cut) की है। इसके बाद अब रेपो रेट घटकर 6% पर आ गया है। ये मीटिंग 7 अप्रैल को शुरू हुई थी। बता दें कि रेपो रेट का सीधा असर आम लोगों पर पड़ता है खासतौर पर उन पर जो बैंक से लोन लेते हैं। जब रेपो रेट घटता है, तो लोन की EMI कम हो जाती है, और जब बढ़ता है तो EMI में बढ़ोतरी हो जाती है।
GDP के अनुमान क्या कहते हैं
रेपो रेट में कटौती(RBI Repo Rate Cut) के फैसले की जानकारी देते हुए आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2026 की शुरुआत वैश्विक और घरेलू चुनौतियों के बीच हुई है। हालांकि, बीते कारोबारी साल की पहली छमाही में आई सुस्ती के बाद भारत की अर्थव्यवस्था ने स्थिर गति से विकास करना शुरू कर दिया है।
उन्होंने रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती के साथ यह भी बताया कि मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF) रेट 6.5% से घटाकर 6.25% कर दिया गया है, जबकि स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी (SDF) रेट को 6% से घटाकर 5.75% पर लाया गया है। इसके साथ ही मौद्रिक नीति के रुख को ‘Neutral’ से बदलकर ‘Accommodative’ कर दिया गया है जो यह संकेत देता है कि आगे भी दरों में नरमी की संभावना बनी रह सकती है।
साथ ही GDP ग्रोथ को लेकर आरबीआई ने FY26 के लिए सकारात्मक रुख दिखाया है। गवर्नर मल्होत्रा के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की पहली और दूसरी तिमाही में GDP ग्रोथ 6.5% रहने का अनुमान है। तीसरी तिमाही में यह दर बढ़कर 6.6% हो सकती है, जबकि चौथी तिमाही में इसके 6.3% रहने की उम्मीद जताई गई है। महंगाई दर (Inflation Rate) पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह पूरे साल औसतन 4% के आस-पास बनी रह सकती है। इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट को एक प्रमुख वजह बताया गया है। साथ ही, उन्होंने यह भी बताया है कि भारत में निवेश गतिविधियों में तेजी आई है और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी स्पष्ट सुधार के संकेत मिल रहे हैं।
रेपो रेट क्यों घटता या बढ़ता है
रेपो रेट वह दर होती है जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक, वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक कर्ज प्रदान करता है। जब रेपो रेट में कटौती की जाती है, तो बैंकों को सस्ती दर पर फंड्स मिलते हैं। इसका असर आमतौर पर उपभोक्ताओं तक भी पहुंचता है बैंक अपने लोन की ब्याज दरें घटा देते हैं, जिससे होम लोन, ऑटो लोन और अन्य कर्ज सस्ते हो जाते हैं, और EMI का बोझ कम होता है।
रेपो रेट, या व्यापक रूप से कहें तो नीति दर (Policy Rate), किसी भी सेंट्रल बैंक के पास महंगाई को नियंत्रित करने का एक सशक्त उपकरण होता है। जब महंगाई अपने लक्षित दायरे से ऊपर निकलने लगती है, तो RBI जैसे सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट में वृद्धि करते हैं। इससे बैंकों के लिए रिज़र्व बैंक से कर्ज लेना महंगा हो जाता है, और वे भी ग्राहकों के लिए लोन की दरें बढ़ा देते हैं। इसका प्रत्यक्ष असर यह होता है कि इकोनॉमी में नकदी का प्रवाह घटता है, जिससे मांग में कमी आती है और महंगाई पर नियंत्रण संभव होता है।
वहीं, जब अर्थव्यवस्था सुस्ती या मंदी के दौर से गुजरती है, तो ग्रोथ को प्रोत्साहित करने के लिए नकदी प्रवाह (liquidity) बढ़ाने की ज़रूरत होती है। ऐसे में सेंट्रल बैंक नीति दरों में कटौती करता है ताकि बैंक सस्ते में फंड्स हासिल कर सकें और वे यह लाभ उपभोक्ताओं को कम ब्याज दरों के रूप में दे सकें। इससे क्रेडिट ग्रोथ बढ़ती है, निवेश को बल मिलता है और आर्थिक गतिविधियां तेज़ होती हैं।