Self Reliant India In Defence: कहते हैं ना जिस देश की मिट्टी में तपिश हो, वहां फौलाद भी पिघल कर ढाल बन जाता है। कुछ बरसों में भारत ने रक्षा के मैदान में ‘अपने पैरों पर खड़े होने’ की जो राह पकड़ी है। यह आत्मनिर्भरता न केवल सैन्य ताकत बढ़ाने के बड़ी पहल है। बल्कि, इससे देश को वैश्विक राजनीति में भी बल मिलता है। पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह दुनिया के हालात बदले हैं ऐसे में अपनी लाठी का मजबूत होना और भी जरूरी हो जाता है। पहलगाम के दहशतगर्दाना हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच जो माहौल बना है, उसने इस जरूरत को और भी ‘दिन की तरह साफ’ कर दिया है।
पहलगाम हमले (Pahalgam Attack) में 26 बेगुनाहों की जान जाने के बाद भारत और पाकिस्तान के दरमियान तनाव (India Pakistan Tension) बढ़ गया है। इस हमले ने दुनियाभर के कान खड़े कर दिए हैं। इस बात की चर्चा है कि भारत किसी भी वक्त सैन्य कार्रवाई कर सकता है। ऐसे में आइए समझें भारत रक्षा के क्षेत्र (India Defence Sector) में कितना आत्मनिर्भर (Atmanirbhar Bharat) है और ये आत्मनिर्भरता कितनी और क्यों जरूरी है?
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मौके पर दोस्त की मदद
भारत के पास अमेरिका, इजरायल, रूस जैसे घनिष्ट मित्र हैं। लेकिन, अपनी नाव डुबोकर कोई दूसरे को पार लगाने के लिए नहीं आता है। हिंदी में एक कहावत है ‘दूर के ढोल सुहावने’ होते हैं। इसलिए मित्र देशों की मदद पर आंख मूंदकर भरोसा करना भी उतना उचित नहीं है। ऐसा नहीं की मित्र देश युद्ध काल में मदद नहीं करते हैं। लेकिन, जब तक मदद आएगी तब तक आपको एक कठिन मुकाबले में कूदना पड़ेगा। इसलिए जरूरी है कि अपनी खिचड़ी अलग पकाएं और रक्षा के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर बनें। हमारा भारत इसी क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ा है और लगातार आगे बढ़ रहा है।
दुनिया में बने हालात
दुनिया में इन दिनों 2 प्रत्यक्ष युद्ध चल रहे हैं। वहीं करीब 110 सैन्य विवाद और गृहयुद्ध दुनिया में इस समय सक्रिय हैं। इजरायल-फिलिस्तीन वॉर और रूस-यूक्रेन वॉर दो सबसे बड़े युद्ध हैं। इन दोनों युद्धों में भारत के दो मित्र रूस और इजरायल शामिल हैं। अप्रत्यक्ष रूप से इसमें यूरोप और अमेरिका भी बिजी है। पिछले युद्ध में रूस और इजरायल से भारत को मदद मिली है। हालांकि, अभी बने हालात के कारण अगर भारत-पाकिस्तान के बीच वॉर होती है तो मित्र देशों से मिलने वाली मदद में देरी हो सकती है।
हवा में उड़ान भर रहा है भारत
कहावत है ‘जितनी चादर हो उतना ही पांव पसारो’ हालांकि, भारत ने ये कहावत बदल दी है। अब न हम सिर्फ अपनी चादर खुद बनाकर पांव पसार रहे हैं बल्कि हवा मे उड़ान भी भर रहे हैं। कभी रक्षा जरूरतों के लिए दूसरों की ‘मुंह ताकने’ वाला भारत, आज ‘अपने हाथों अपनी किस्मत’ लिखने की राह पर चल पड़ा है। दुनिया के करीब 80 देशों को अपने रक्षा उत्पादों (Defence Production of India) के निर्यात भी कर रहा है। इसमें अमेरिका जैसे ताकतवर देश भी शामिल हैं। ‘मेक इन इंडिया’ की बुनियाद पर खड़ा नया रक्षा ढांचा न केवल शस्त्रों की आत्मनिर्भरता की कहानी कहता है, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की इज्जत और इरादों का आईना भी बन चुका है।
बजट ही नहीं, इरादा भी बढ़ा है
2014 से पहले का भारत हथियारों के लिए बाहर देखता था। अब वो खुद दूसरों की उम्मीद बन चुका है। दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में शामिल होते हुए भी हम पर था आयात का बोझ है। हालांकि, लगातार रक्षा बजट (Defence Budget of India) बढ़ाकर उसे कम करने की कोशिश हो रही है। इसी का नतीजा है कि मेड इन इंडिया फौज स्टेटमेंट बन गया है।
- 2013-14 में 2.53 लाख करोड़
- 2024-25 में 6.21 लाख करोड़
- 2014-15 में 46,429 करोड़ का रक्षा उत्पादन
- 2023-24 में 1.27 लाख करोड़ का रक्षा उत्पादन
मैदान से व्यापार की बिसात तक
भारत ने दिखाया कि सिर्फ सुरक्षा ही नहीं, अब व्यापार में भी हथियारों की ताकत मायने रखती है। मेक इन इंडिया (Make in India) के तौर पर बढ़ रहा भारत लगातार अपनी रक्षा निर्यात (Defence Production and Exports of India) भी बढ़ा रहा है। इसमें बुलेटप्रूफ जैकेट से लेकर चेतक हेलिकॉप्टर, डोर्नियर विमानों और टॉरपीडो भी शामिल हैं। इसी का नतीजा है कि ‘मेड इन इंडिया’ की गूंज अमेरिका, फ्रांस, आर्मेनिया तक पहुंच गई है।
- 2014-15: 1,941 करोड़
- 2016-17: 1521 करोड़
- 2017-18: 4682 करोड़
- 2018-19: 10,745 करोड़
- 2019-20: 9115 करोड़
- 2021-22: 8434 करोड़
- 2022-23: 16,000 करोड़
भारत की नजर अब 3 लाख करोड़ के उत्पादन और 50,000 करोड़ के निर्यात पर है। सरकार ने टारगेट रखा है कि साल 2029 तक इन आंकड़ों को पार करते हुए भारत को हथियारों का वैश्विक हब बनाना है।
कहां-कहां पहुंचे हैं भारत के रक्षा उत्पाद
भारत का रक्षा निर्यात वित्त वर्ष 2013-14 में 686 करोड़ रुपये का था। ये 2023-24 में बढ़कर 21,083 करोड़ रुपये का हो गया है। ये करीब 31 गुना की वृद्धि है। अमेरिका, फ्रांस, आर्मेनिया, फिलीपींस, मॉरीशस, बांग्लादेश, मालदीव, भूटान, नेपाल, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों तक भारत अपने हथियार और रक्षा उत्पाद निर्यात करता है।
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लगातार घट रहा है आयात का बोझ
भारत ने 2014 के बाद से रक्षा आयात पर अपनी निर्भरता में कमी आई है। इसके लिए ‘मेक इन इंडिया’, रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) 2020 और ‘पॉजिटिव इंडिजिनाइजेशन लिस्ट’ का कार्यान्वयन जिम्मेदार है। इसमें 411 प्रमुख हथियार प्रणालियों की आयात पर प्रतिबंध लगाया है। इसके अलावा, भारत ने स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए रक्षा औद्योगिक गलियारों की स्थापना की है और विदेशी निवेश की सीमा को 74% तक बढ़ाया है। हालांकि अभी भी भारत की रक्षा आवश्यकताओं का लगभग 35–45% हिस्सा आयात पर निर्भर है, लेकिन सरकार इसे लगातार कम कर रही है।
- भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक बना हुआ है।
- 2011 से 2020 के बीच रक्षा आयात में 33% की गिरावट दर्ज की गई।
- 2018-19 रक्षा खरीद का लगभग 46% हिस्सा आयात से आता था।
- 2022-23 तक रक्षा आयात घटकर 36.7% रह गया है।
भारत का भूगोल और पड़ोस के हाल
अनूठी भौगोलिक स्थिति इसे रक्षा के क्षेत्र में स्वावलंबी बनने के लिए प्रेरित करती है। क्योंकि, भारत के उत्तर में दुर्गम हिमालय, पूर्व में अस्थिर पड़ोसी खड़ा है। हिमालय का उस पार खड़ा पड़ा कभी हमारा सगा नहीं हुआ है। वहीं पश्चिम के पड़ोस में युद्ध के आसार बन रहे हैं। हालांकि, पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में सामरिक महत्व के समुद्री मार्ग है जो एक मजबूत पक्ष है। हालांकि, युद्ध की स्थिति में इनका निर्बाध जलना उतना सहज नहीं होगा। इसलिए भी जरूरी है कि भारत की सीमाओं के भीतर वो सारे साजो सामान रखें जो हमें युद्ध के हालात में मजबूत स्थिति में खड़ा करते हैं।
हम क्या बेचते हैं? List of Defence Products of India
- बुलेटप्रूफ जैकेट्स
- तेज रफ्तार इंटरसेप्टर नावें
- डोर्नियर विमान (Do-228)
- चेतक हेलीकॉप्टर
- एडवांस लाइट हेलीकॉप्टर ध्रुव
- पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट सिस्टम (MBRL)
- लाइट टॉरपीडोज
- AK-203 असॉल्ट राइफल का पार्ट मैन्युफैक्चरिंग
- मेड इन इंडिया आर्मी बूट्स
हम क्या खरीदते हैं?
- लड़ाकू विमान (Sukhoi, Rafale)
- पनडुब्बियाँ और नौसैनिक सिस्टम
- मिसाइल सिस्टम (S-400, Spike, MICA)
- रडार, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली
- उन्नत गोला-बारूद और स्नाइपर हथियार
कुल मिलाकर साफ है कि भारत ने तेजी से रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। यह न केवल एक रणनीतिक जरूरत बल्कि राष्ट्र की संप्रभुता के लिए अनिवार्य बन चुका है। पहलगाम जैसे आतंकी हमलों और पाकिस्तान के साथ बार-बार तनावपूर्ण होते संबंध इस आत्मनिर्भरता को और अधिक जरूरी कर देते हैं। भारत की ये मजबूती मित्र देशों से मिलने वाले समर्थन के साथ सेना को और भी अधिक बल देगी।