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पीएम मोदी और मोहन भागवत की मुलाकात के क्या हैं मायने?

अतीत में युद्ध और आपात स्थितियों में कैसी रही है संघ की भूमिका, पढ़ें

Shiv Chaudhary द्वारा Shiv Chaudhary
30 April 2025
in समीक्षा
पीएम मोदी और मोहन भागवत की मुलाकात के क्या हैं मायने?
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार (29 अप्रैल) को देर शाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत के साथ लंबी बैठक की है। पीएम मोदी के आवास पर हुई यह बैठक करीब डेढ़ घंटे तक चली है। संघ प्रमुख मोहन भागवत के पीएम मोदी के आवास पर अचानक पहुंचने के बाद चर्चाओं का बाज़ार गरम है और इस बैठक के कई निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। जब देश में पहलगाम आतंकी हमले के बाद आक्रोश है और पीएम मोदी कई हाई लेवल मीटिंग कर रहे हैं ऐसे में पीएम और भागवत की इस मुलाकात के मायने भी बढ़ जाते हैं। भागवत के साथ मीटिंग से ठीक पहले भी पीएम मोदी ने NSA, CDS और तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ बातचीत की थी।

मोदी-भागवत मुलाकात क्यों है अहम?

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए नृशंस आतंकी हमले में कम-से-कम 26 लोगों की मौत हो गई, इस हमले से कुछ ही दिनों पहले पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने ‘टू नेशन थ्योरी’ की बात दोहराई थी। मुनीर ने कहा, “हम हर आयाम में हिंदुओं से अलग हैं। हमारा मज़हब, रिवाज, परंपरा, सोच और मकसद सब अलग हैं। इसी सोच की बुनियाद पर ‘दो राष्ट्र’ के सिद्धांत का जन्म हुआ था। हम (हिंदू-मुस्लिम) एक राष्ट्र नहीं है बल्कि हम दो राष्ट्र हैं।” मुनीर के इस सिद्धांत के कुछ ही दिनों बाद पहलगाम में धर्म पूछ-पूछकर आतंकियों ने हिंदुओं की हत्या कर दी। इस बात के स्पष्ट संकेत मिले हैं कि इस हमले के पीछे पाकिस्तान और वहां की सेना का हाथ था।

असीम मुनीर के इस बयान के पीछे की मंशा भारत के भीतर अस्थिरता पैदा करने की थी और आतंकियों ने जिस तरह धर्म पूछकर लोगों को मारा उसने भी उसी काम को आगे बढ़ाया। भारत-पाकिस्तान के साथ अगर शस्त्र संघर्ष की स्थिति में जाता है तो देश के भीतर स्थिरता बनाए रखना भी बड़ी चुनौती हो सकती है। पिछले दिनों जिस तरह पाकिस्तान परस्त लोग सामने आए हैं उन्होंने इस चिंता को बढ़ा दिया है। कहीं पर पाकिस्तान के झंडों की हिफाज़त करने की कोशिश की गई तो कहीं पर पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे तक लगाए हैं। संघ दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है और देशभर में अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग संगठन काम कर रहे हैं ऐसे में देश के भीतर माहौल को स्थिर रखने में संघ के स्वयंसेवक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

इसके अलावा किसी बड़े संघर्ष की स्थिति में सरकार को देश के भीतर भी सभी लोगों को साथ लेकर चलना होगा और सरकार की बातें अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे इसमें भी संघ महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। संघ की शाखाओं के ज़रिए देश के बड़े हिस्से में उपस्थिति है और ऐसे में ज़्यादा लोगों तक जल्दी और सही संदेश पहुंचाने में संघ की मदद ली जा सकती है। जिस तरह वक्फ को लेकर देश भर में प्रदर्शन हुए हैं उससे भी देश में एक बड़ा धड़ा।

संगठन-सरकार के बीच टकराव पर संदेश

इस बैठक का एक संदेश संघ और सरकार के बीच टकराव को लेकर हो रही चर्चाओं पर विराम लगाना भी हो सकता है। अक्सर यह चर्चाएं चलती हैं कि संघ और बीजेपी के बीच मतभेदों के चलते ही बीजेपी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव नहीं हो पा रहा था। हालांकि, अब जब संघ प्रमुख भागवत खुद पीएम मोदी से मिलने गए हैं तो इसमें संदेश स्पष्ट है कि संघ किसी भी स्थिति में पूरी तरह से सरकार के साथ खड़ा है। खासतौर पर जब देश के एक बड़े संघर्ष की और जाने की आशंका है ऐसे में संघ का स्पष्ट संदेश है कि देश पर विपत्ति के समय राष्ट्रहित सबसे ऊपर है।

पहले युद्ध में कैसी रही है संघ की भूमिका?

इससे पहले के युद्धों में भी संघ की स्पष्ट भूमिका रही है। अक्टूबर 1947 से ही RSS ने कश्मीर सीमा पर पाकिस्तान की सेना की गतिविधियों पर नज़र रखने शुरू कर दी थी और पाकिस्तानी सैनिकों से लड़ते हुए कई स्वयंसेवकों ने अपने प्राण न्यौछावर तक कर दिए थे। साथ ही, कश्मीर के भारत में विलय को लेकर भी संघ के तत्कालीन प्रमुख एम एस गोलवलकर उपाख्य गुरुजी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। गुरुजी खुद श्रीनगर जाकर महाराजा से मिले थे और उन्हें भारत में विलय के लिए तैयार किया था। संघ ने बंटवारे के दौरान हज़ारों राहत शिविर भी लगाए थे और आज भी आपदा के समय संघ के स्वयंसेवक लोगों की मदद करने में सबसे आगे नज़र आते हैं। चाहे वह कोविड-19 जैसी महामारी हो या कोई भी प्राकृतिक आपदा।

1962 के भारत-चीन युद्ध में संघ के स्वयंसेवकों ने सैनिक आवाजाही मार्गों की चौकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद की थी। स्वयंसेवक पूरे उत्साह के साथ सीमा पर पहुंचे और जवानों की मदद में जी-जान से जुटे रहे। संघ के स्वयंसेवकों ने सीमा पर सेना के लिए राशन पहुंचाने के साथ-साथ जिस रास्ते से सेना की गाड़ी जाती थी, उसकी सुरक्षा का जिम्मा संभाला था। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1963 में  संघ को गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने का निमंत्रण दिया था जिसमें सैकड़ों स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित हुए थे।

1965 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध से पहले हुई सभी दलों की बैठक में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने गोलवलकर को भी बुलाया था। इस युद्ध के दौरान संघ के स्वयंसेवकों को दिल्ली में ट्रैफिक के नियंत्रण की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। माना जाता है कि शास्त्री के अनुरोध पर स्वयंसेवकों ने युद्ध के मोर्चे पर तैनात सैनिकों को भोजन और अन्य आवश्यक आपूर्ति भी प्रदान की थी। इस युद्ध के दौरान घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान करने वाले में संघ के स्वयंसेवक शामिल थे और उन्होंने कश्मीर की हवाई पट्टियों से बर्फ हटाने का काम भी किया था।

इसके अलावा दादरा, नगर हवेली और गोवा के भारत विलय में संघ की निर्णायक भूमिका रही थी। बीबीसी की खबर के मुताबिक, संघ के स्वयंसेवकों ने 2 अगस्त 1954 की सुबह पुर्तगाल का झंडा उतारकर भारत का तिरंगा फहराया, पूरा दादरा नगर हवेली पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त करा कर भारत सरकार को सौंप दिया। 1955 से गोवा मुक्ति संग्राम में भी संघ ने बढ़कर भाग लिया था और जब नेहरू ने इसके लिए लड़ाई से इनकार कर दिया तो संघ के स्वयंसेवक खुद ही इसके लिए आंदोलन करने लगे थे और संघ के कार्यकर्ताओं के आंदोलनों के बाद सेना को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा और 1961 में गोवा आज़ाद हुआ। 1999 का कारगिल युद्ध हो या फिर 1984 के सिख दंगे संघ हमेशा भारत और भारत के लोगों के साथ खड़ा नज़र आता है।

2018 में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो देश के लिए RSS के पास तीन दिन के भीतर ‘सेना’ तैयार करने की क्षमता है। भावगत ने तब कहा था, “यह हमारी क्षमता है पर हम सैन्य संगठन नहीं, पारिवारिक संगठन हैं लेकिन संघ में सेना जैसा अनुशासन है। अगर कभी देश को जरूरत हो और संविधान इजाजत दे तो स्वयं सेवक मोर्चा संभाल लेंगे।” संघ प्रमुख के इस बयान को करीब 7 वर्ष बीत गए हैं और देश के सामने आज जब मुश्किल घड़ी आती दिख रही है तो संघ किसी भी स्थिति के लिए पूरी तरह तैयार नज़र आ रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत की यह मुलाकात राष्ट्रीय सुरक्षा, राजनीतिक समन्वय और सामाजिक एकजुटता के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। साथ ही, यह पहलगाम आतंकी हमले के बाद सरकार और संघ के बीच मजबूत समन्वय और साझा उद्देश्यों को दर्शाती है। यह मुलाकात न केवल तात्कालिक संकट के जवाब में एक रणनीतिक कदम है बल्कि दीर्घकालिक रूप से भारत के सामाजिक ताने-बाने को सकारात्मक रुप से प्रभावित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार (29 अप्रैल) को देर शाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत के साथ लंबी बैठक की है। पीएम मोदी के आवास पर हुई यह बैठक करीब डेढ़ घंटे तक चली है। संघ प्रमुख मोहन भागवत के पीएम मोदी के आवास पर अचानक पहुंचने के बाद चर्चाओं का बाज़ार गरम है और इस बैठक के कई निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। जब देश में पहलगाम आतंकी हमले के बाद आक्रोश है और पीएम मोदी कई हाई लेवल मीटिंग कर रहे हैं ऐसे में पीएम और भागवत की इस मुलाकात के मायने भी बढ़ जाते हैं। भागवत के साथ मीटिंग से ठीक पहले भी पीएम मोदी ने NSA, CDS और तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ बातचीत की थी।

मोदी-भागवत मुलाकात क्यों है अहम?

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए नृशंस आतंकी हमले में कम-से-कम 26 लोगों की मौत हो गई, इस हमले से कुछ ही दिनों पहले पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने ‘टू नेशन थ्योरी’ की बात दोहराई थी। मुनीर ने कहा, “हम हर आयाम में हिंदुओं से अलग हैं। हमारा मज़हब, रिवाज, परंपरा, सोच और मकसद सब अलग हैं। इसी सोच की बुनियाद पर ‘दो राष्ट्र’ के सिद्धांत का जन्म हुआ था। हम (हिंदू-मुस्लिम) एक राष्ट्र नहीं है बल्कि हम दो राष्ट्र हैं।” मुनीर के इस सिद्धांत के कुछ ही दिनों बाद पहलगाम में धर्म पूछ-पूछकर आतंकियों ने हिंदुओं की हत्या कर दी। इस बात के स्पष्ट संकेत मिले हैं कि इस हमले के पीछे पाकिस्तान और वहां की सेना का हाथ था।

असीम मुनीर के इस बयान के पीछे की मंशा भारत के भीतर अस्थिरता पैदा करने की थी और आतंकियों ने जिस तरह धर्म पूछकर लोगों को मारा उसने भी उसी काम को आगे बढ़ाया। भारत-पाकिस्तान के साथ अगर शस्त्र संघर्ष की स्थिति में जाता है तो देश के भीतर स्थिरता बनाए रखना भी बड़ी चुनौती हो सकती है। पिछले दिनों जिस तरह पाकिस्तान परस्त लोग सामने आए हैं उन्होंने इस चिंता को बढ़ा दिया है। कहीं पर पाकिस्तान के झंडों की हिफाज़त करने की कोशिश की गई तो कहीं पर पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे तक लगाए हैं। संघ दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है और देशभर में अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग संगठन काम कर रहे हैं ऐसे में देश के भीतर माहौल को स्थिर रखने में संघ के स्वयंसेवक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

इसके अलावा किसी बड़े संघर्ष की स्थिति में सरकार को देश के भीतर भी सभी लोगों को साथ लेकर चलना होगा और सरकार की बातें अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे इसमें भी संघ महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। संघ की शाखाओं के ज़रिए देश के बड़े हिस्से में उपस्थिति है और ऐसे में ज़्यादा लोगों तक जल्दी और सही संदेश पहुंचाने में संघ की मदद ली जा सकती है। जिस तरह वक्फ को लेकर देश भर में प्रदर्शन हुए हैं उससे भी देश में एक बड़ा धड़ा।

संगठन-सरकार के बीच टकराव पर संदेश

इस बैठक का एक संदेश संघ और सरकार के बीच टकराव को लेकर हो रही चर्चाओं पर विराम लगाना भी हो सकता है। अक्सर यह चर्चाएं चलती हैं कि संघ और बीजेपी के बीच मतभेदों के चलते ही बीजेपी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव नहीं हो पा रहा था। हालांकि, अब जब संघ प्रमुख भागवत खुद पीएम मोदी से मिलने गए हैं तो इसमें संदेश स्पष्ट है कि संघ किसी भी स्थिति में पूरी तरह से सरकार के साथ खड़ा है। खासतौर पर जब देश के एक बड़े संघर्ष की और जाने की आशंका है ऐसे में संघ का स्पष्ट संदेश है कि देश पर विपत्ति के समय राष्ट्रहित सबसे ऊपर है।

पहले युद्ध में कैसी रही है संघ की भूमिका?

इससे पहले के युद्धों में भी संघ की स्पष्ट भूमिका रही है। अक्टूबर 1947 से ही RSS ने कश्मीर सीमा पर पाकिस्तान की सेना की गतिविधियों पर नज़र रखने शुरू कर दी थी और पाकिस्तानी सैनिकों से लड़ते हुए कई स्वयंसेवकों ने अपने प्राण न्यौछावर तक कर दिए थे। साथ ही, कश्मीर के भारत में विलय को लेकर भी संघ के तत्कालीन प्रमुख एम एस गोलवलकर उपाख्य गुरुजी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। गुरुजी खुद श्रीनगर जाकर महाराजा से मिले थे और उन्हें भारत में विलय के लिए तैयार किया था। संघ ने बंटवारे के दौरान हज़ारों राहत शिविर भी लगाए थे और आज भी आपदा के समय संघ के स्वयंसेवक लोगों की मदद करने में सबसे आगे नज़र आते हैं। चाहे वह कोविड-19 जैसी महामारी हो या कोई भी प्राकृतिक आपदा।

1962 के भारत-चीन युद्ध में संघ के स्वयंसेवकों ने सैनिक आवाजाही मार्गों की चौकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद की थी। स्वयंसेवक पूरे उत्साह के साथ सीमा पर पहुंचे और जवानों की मदद में जी-जान से जुटे रहे। संघ के स्वयंसेवकों ने सीमा पर सेना के लिए राशन पहुंचाने के साथ-साथ जिस रास्ते से सेना की गाड़ी जाती थी, उसकी सुरक्षा का जिम्मा संभाला था। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1963 में  संघ को गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने का निमंत्रण दिया था जिसमें सैकड़ों स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित हुए थे।

1965 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध से पहले हुई सभी दलों की बैठक में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने गोलवलकर को भी बुलाया था। इस युद्ध के दौरान संघ के स्वयंसेवकों को दिल्ली में ट्रैफिक के नियंत्रण की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। माना जाता है कि शास्त्री के अनुरोध पर स्वयंसेवकों ने युद्ध के मोर्चे पर तैनात सैनिकों को भोजन और अन्य आवश्यक आपूर्ति भी प्रदान की थी। इस युद्ध के दौरान घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान करने वाले में संघ के स्वयंसेवक शामिल थे और उन्होंने कश्मीर की हवाई पट्टियों से बर्फ हटाने का काम भी किया था।

इसके अलावा दादरा, नगर हवेली और गोवा के भारत विलय में संघ की निर्णायक भूमिका रही थी। बीबीसी की खबर के मुताबिक, संघ के स्वयंसेवकों ने 2 अगस्त 1954 की सुबह पुर्तगाल का झंडा उतारकर भारत का तिरंगा फहराया, पूरा दादरा नगर हवेली पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त करा कर भारत सरकार को सौंप दिया। 1955 से गोवा मुक्ति संग्राम में भी संघ ने बढ़कर भाग लिया था और जब नेहरू ने इसके लिए लड़ाई से इनकार कर दिया तो संघ के स्वयंसेवक खुद ही इसके लिए आंदोलन करने लगे थे और संघ के कार्यकर्ताओं के आंदोलनों के बाद सेना को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा और 1961 में गोवा आज़ाद हुआ। 1999 का कारगिल युद्ध हो या फिर 1984 के सिख दंगे संघ हमेशा भारत और भारत के लोगों के साथ खड़ा नज़र आता है।

2018 में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो देश के लिए RSS के पास तीन दिन के भीतर ‘सेना’ तैयार करने की क्षमता है। भावगत ने तब कहा था, “यह हमारी क्षमता है पर हम सैन्य संगठन नहीं, पारिवारिक संगठन हैं लेकिन संघ में सेना जैसा अनुशासन है। अगर कभी देश को जरूरत हो और संविधान इजाजत दे तो स्वयं सेवक मोर्चा संभाल लेंगे।” संघ प्रमुख के इस बयान को करीब 7 वर्ष बीत गए हैं और देश के सामने आज जब मुश्किल घड़ी आती दिख रही है तो संघ किसी भी स्थिति के लिए पूरी तरह तैयार नज़र आ रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत की यह मुलाकात राष्ट्रीय सुरक्षा, राजनीतिक समन्वय और सामाजिक एकजुटता के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। साथ ही, यह पहलगाम आतंकी हमले के बाद सरकार और संघ के बीच मजबूत समन्वय और साझा उद्देश्यों को दर्शाती है। यह मुलाकात न केवल तात्कालिक संकट के जवाब में एक रणनीतिक कदम है बल्कि दीर्घकालिक रूप से भारत के सामाजिक ताने-बाने को सकारात्मक रुप से प्रभावित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।

स्रोत: जम्मू-कश्मीर, पहलगाम, नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत, बीजेपी, आरएसएस, पाकिस्तान, जवाहरलाल नेहरू, Jammu and Kashmir, Pahalgam, Narendra Modi, Mohan Bhagwat, BJP, RSS, Pakistan, Jawaharlal Nehru
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