World Health Day: रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा है कि शरीर के लिए स्वास्थ्य का महत्व वैसा ही है जैसे दीपक के लिए तेल। यह विचार हमें अपने शरीर को प्राथमिकता देने की प्रेरणा देता है। मतलब जिस तरह दीपक को जलाने के लिए तेल की जरूरत होती है, उसी प्रकार हमारे शरीर को स्वस्थ रहने के लिए सही देखभाल की आवश्यकता होती है। अब हम सेहत और शरीर की बात आज इस लिए कर रहे हैं कि आज विश्व स्वास्थ्य दिवस है। WHO कहता है शरीर में केवल बीमारियों का न होना स्वस्थ होना नहीं है। बल्कि, शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से तंदुरुस्त रहने की स्थिति ही स्वास्थ्य है। तो आइये आज हम जानते हैं हमारा भारत कितना स्वस्थ्य है और इसके स्वास्थ्य में पिछले सालों के मुकाबले कितना सुधार आया है।
क्यों मनाया जाता है विश्व स्वास्थ्य दिवस?
अब सवाल आता है कि आखिर अपने शरीर और सेहत का ख्याल रखना तो सब जानते हैं और ये उनकी प्राथमिकी भी है तो आखिर विश्व स्वास्थ्य दिवस क्यों मनाया जाता है? इसका जवाब ऐसे समझिए कि हर कोई अपना ख्याल रखना चाहता है लेकिन हर को डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक तो नहीं है और न ही हर किसी को रोग और उसके इलाज के बारे में पता होता है। इसी कारण जन जागरूकता और अपने, अपने देश के साथ परिवार और समाज के स्वास्थ्य के प्रति सजग करने के लिए विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है।
अब बात विश्व स्वास्थ्य दिवस (World Health Day 2025) करते हैं। ये दिन WHO यानी वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन जिसे हम हिंदी में विश्व स्वास्थ्य संगठन करते हैं इसी के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। वैसे तो WHO और सभी सरकारे साल भर जागरूकता और स्वास्थ्य के लिए कार्यक्रम चलाते रहते हैं। हालांकि, ये दिन यूनीफाइड तरीके से जागरूकता के लिए मनाया जाता है। इसी कारण इसे WHO की स्थापना के दिन मनाने का फैसला हुआ जिससे दुनिया में स्वास्थ्य जागरूकता की बात बेहतर तरीके से पहुंचाई जा सके।
वैश्विक स्वास्थ्य समस्याओं को रेखांकित कर संगठित कार्रवाई करने के लिए WHO ने 1950 से इस दिन (world health day) को मनाने की शुरुआत की थी। इसके जरिए स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति सरकार, संस्थानों और समुदायों को एकजुट करने का प्रयास किया जाता है। इसके साथ ही हर साल एक थीम तय की जाती है और उस पूरे वर्ष में दुनिया उन समस्याओं से लड़ने के लिए कोशिश करती है। 2025 में “स्वस्थ शुरुआत, आशापूर्णा भविष्य” थीम रखी गई है। इसके अंतर्गत मातृ और नवजात शिशु के स्वास्थ्य पर केंद्रित अभियान चलाने का टारगेट रखा गया है।
जानें भारत की हेल्थ का हाल?
विश्व स्वास्थ्य दिवस (world health day) के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा ‘हम उन सभी का आभार व्यक्त करते हैं जो हमारे ग्रह को स्वस्थ बनाने के कार्य में संलग्न हैं। हमारी सरकार स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे को संवर्धित करने और लोगों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य करना जारी रखेगी।’ इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने देश में बढ़ रही मोटापे की समस्या पर चिंता जताई है। उन्होंने लोगों से स्वस्थ जीवनशैली अपनाने और मोटापे बचने की अपील की है। पीएम ने कहा कि व्यक्तिगत फिटनेस को प्राथमिकता देकर विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य में अहम योगदान दिया जा सकता है।
भारत सरकार देश को स्वस्थ रखने के लिए तेजी से काम कर रही है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के जरिए न्यायसंगत, सुलभ और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं को लोगों तक पहुंचाना सुनिश्चित किया जा रहा है। करीब 10 साल में आयुष्मान भारत और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के जरिए देश ही हालत में काफी सुधार आया है। इसकी बदौलत ही मातृ और बाल स्वास्थ्य में सुधार हुआ है। आइये जानें भारत के स्वास्थ्य में कितना सुधार आया है…
तेजी से घटा जच्चा-बच्चा मृत्यु दर
मां और बच्चे से स्वास्थ्य को लेकर बात की जाए तो इनकी मृत्यु दर में तेजी से कमी आई है। साल 2014-16 में बच्चों के जन्म के समय मताओं के मृत्यू के आंकड़े 1,00,000 जीवित बच्चों के जन्म पर 130 थी। साल 2018-20 में ये संख्या घटकर 97 हो गई है। वहीं साल 1990 से लेकर 2020 तक इसमें 83 फीसदी की कमी आई है। वैश्विक तुलना में ये तुलना में डबल है।
शिशु मृत्यु दर की बात की जाए तो 2014 में प्रति 1,000 जन्म पर बच्चों की मृत्यु का आंकड़ा 39 था जो साल 2020 में घटक 28 हो गया। वही नवजात की मृत्यु दर 26 से घटकर 20 हो गई। 5 साल के छोटे बच्चों के आंकड़ों की बात करें तो साल 2014 में ये आंकड़ा 45 था जो 2020 में घटकर 32 हो गया।
दुनिया की तुलना में कहा है भारत?
साल 1990 से लेकर 2020 के आंकड़ों को देखा जाए तो भारत की स्थिति दुनिया के औसत आंकड़े से काफी बेहतर है। हालांकि, हमरे सरकार लगातार इसमें और सुधार करने की कोशिश कर रही है। मोदी सरकार की प्राथमिकता आंकड़ों को शून्य करना है।
– मातृ मृत्यु दर दुनिया में 42 प्रतिशत कम हुई। वहीं भारत में ये आंकड़ा 83 फीसदी रहा।
– नवजात शिशु मृत्यु दर दुनिया में 51 फीसदी कम हुआ जबकि भारत के आंकड़े 65 फीसदी है।
– शिशु मृत्यु दर में दुनिया के औसत आंकड़े 55 फीसदी है। जबकि, भारत में यह संख्या 69 फीसदी की है।
– 5 वर्ष से बच्चों की बात करें तो दुनिया में इनकी मृत्यु दर 58 फीसदी कम हुई जबकि, भारत में ये आंकड़ा 75 पर है।
कैसे हुआ संभव?
भारत सरकार अन्य राज्य सरकारों के साथ मिलकर कई कार्यक्रम चलाती है। इसके साथ ही उनके स्वास्थ्य निगरानी को सुनिश्चित किया जाता है। इसमें मातृ-शिशु सुरक्षा कार्ड और मातृत्व पुस्तिका जिसमें महिलाओं और बच्चों के पोषण, सरकारी योजनाओं और संस्थागत प्रसव के बारे में जानकारी दी जाती है। इसके साथ ही एनीमिया मुक्त भारत अभियान, जन्म प्रतीक्षा गृह, स्वच्छता एवं पोषण दिवस के साथ आउटरीच प्रोग्राम किए जाते हैं।
5 अप्रैल 2025 तक, भारत में 1.76 लाख से अधिक सक्रिय आयुष्मान आरोग्य मंदिर (स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र) बनाए गए हैं। यहां समग्र प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की जाती है। जननी सुरक्षा, जननी एक्सप्रेस जैसी कई योजनाएं देश में संचालित हैं। भारत सरकार की मातृ एवं शिशु के समावेशी स्वास्थ्य सेवा के प्रति मजबूत प्रतिबद्धता के कारण ही इसमें तेजी से सुधार हुआ है। आयुष्मान भारत, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसे पहल से हालात तेजी से बदले हैं। इतना ही नहीं टेली-मानस के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य सहायता भी इसमें एक बड़ा बदलाव लेकर आई है।
स्वास्थ्य दिवस पर लें संकल्प?
परिवार, समाय या देश की सेहत केवल सरकार के काम और योजनाओं से नहीं सुधरने वाली है। इसके लिए हर व्यक्ति को अपने अपने परिवार और समाज के हेल्थ के लिए वफादार होना होगा। इसके लिए आज यानी World Health Day के रोज हमें संकल्प लेने की जरूरत है कि हम अपने सेहत और शरीर का ख्याल रखेंगे। यही अपील आज पीएम मोदी ने भी की है। क्योंकि, जब हम अपना ख्याल रख लेंगे सही दिनचर्या और खानपान को अपनाएंगे तो हम परिवार और साज का ख्याल रख पाएंगे।