शुक्रवार का दिन भारत के लिए केवल धार्मिक नहीं, बल्कि रणनीतिक और आर्थिक दृष्टि से भी ऐतिहासिक बन गया। जहां उत्तर में बाबा केदारनाथ के कपाट खुलने से देशभर में आस्था की लहर दौड़ी, वहीं दक्षिण में केरल ने भारत को एक जबरदस्त समुद्री ताकत का तोहफा दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8900 करोड़ रुपये की लागत से बने Vizhinjam Port का उद्घाटन किया, और यह केवल एक परियोजना का उद्घाटन नहीं था, बल्कि यह भारत की समुद्री शक्ति का नया आधार था।
इस उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री ने जो बातें कहीं, वो सिर्फ एक सामान्य उद्घाटन भाषण नहीं, बल्कि उन आलोचकों के लिए एक जवाब था जो सालों से मोदी और अडानी के बीच गठजोड़ पर हंसी उड़ाते रहे थे। मोदी ने कहा, “हमारे मुख्यमंत्री जी से भी मैं कहना चाहूंगा, आप तो इंडी एलायंस के बहुत बड़े मजबूत पिलर हैं, यहां शशि थरूर भी बैठे हैं, और आज का ये इवेंट कई लोगों की नींद हराम कर देगा। वहाँ मैसेज चला गया जहां जाना था।” उनका यह बयान सीधे तौर पर कांग्रेस और INDI गठबंधन के उन नेताओं के लिए एक करारा जवाब माना जा रहा है, जो वर्षों से मोदी सरकार को ‘कॉर्पोरेट परस्त’ कहकर निशाना बनाते रहे हैं और ‘मोदी + अडानी’ के गठजोड़ का मज़ाक उड़ाकर परियोजनाओं की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते थे।
जब बात इस पोर्ट के विरोधियों की हो रही है तो बताते चलें इस पोर्ट का विरोध केवल राजनीतिक आरोपों तक सीमित नहीं रहा। साल 2024 में, विदेशी हितों से प्रेरित एक गहरी साज़िश ने इस पोर्ट को लेकर ऐसा उन्माद फैलाया कि देश की आंतरिक सुरक्षा तक को खुली चुनौती मिल गई। 27 नवम्बर को, लैटिन कैथोलिक चर्च के संरक्षण में चल रहे मछुआरा समुदाय के आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया। लगभग 2,500 प्रदर्शनकारियों ने पोर्ट निर्माण सामग्री ले जा रहे ट्रकों को क्षतिग्रस्त करने के आरोप में चार लोगों की गिरफ्तारी के बाद स्थानीय पुलिस थाने पर हमला बोल दिया। इस हमले में 27 पुलिसकर्मी घायल हुए, जिनमें तीन की हालत गंभीर थी। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि इस हिंसक भीड़ की अगुवाई करने वाले कोई आम उपद्रवी नहीं, बल्कि चर्च के शीर्ष पदाधिकारी आर्चबिशप थॉमस जे. नेट्टो और 50 पादरी थे, जिन पर दंगा भड़काने और कानून-व्यवस्था को ध्वस्त करने के गंभीर आरोप दर्ज हुए।
और अब उसी परियोजना का उद्घाटन प्रधानमंत्री द्वारा किया जाना इस बात का प्रतीक है कि चाहे कितनी भी विदेशी ताकतें या अंदरूनी राजनीतिक गठजोड़ प्रयास करें, भारत अपनी सामरिक महत्वाकांक्षाओं से पीछे हटने वाला नहीं। अब आइए, इस लेख में आगे जानते हैं कि कैसे Vizhinjam Port सिर्फ एक बंदरगाह नहीं, बल्कि भारत के समुद्री भविष्य का वह रणनीतिक रत्न है जिसकी बदौलत देश हर साल लगभग ₹1,860 करोड़ की बचत कर सकता है और अपने समुद्री व्यापार में आत्मनिर्भर बन सकता है।
क्यों है ख़ास
केरल का Vizhinjam इंटरनेशनल सीपोर्ट, जो अब भारत का पहला मेगा ट्रांसशिपमेंट कंटेनर टर्मिनल बन चुका है, सिर्फ एक बंदरगाह नहीं बल्कि वो जवाब है एक ऐसी समुद्री चुनौती का जो हर साल भारत को करीब 220 मिलियन डॉलर यानि ₹18606822608 का नुकसान दे रही थी। करीब 8,900 करोड़ रुपये की लागत से बना यह पोर्ट भारत की व्यापारिक शक्ति को एक नई ऊंचाई पर ले जाने वाला है। यह बंदरगाह न केवल आर्थिक तौर पर ही नहीं बल्कि भारत की लॉजिस्टिक्स व्यवस्था को अधिक कुशल बनाएगा और भारत की विदेशी बंदरगाहों पर निर्भरता को काफी हद तक खत्म कर देगा।
Vizhinjam एक डीप-वॉटर ट्रांसशिपमेंट पोर्ट है, जिसका अर्थ है कि यहाँ समुद्र के भीतर एक किलोमीटर तक पानी की गहराई 18 से 20 मीटर तक है, जो कि बेहद बड़े मालवाहक जहाजों यानी ‘मदर वेसेल्स’ को किनारे तक आने और सीधे माल उतारने की पूरी सुविधा देता है। यही नहीं, इस पोर्ट पर अगले स्तर की मालवाहक जहाजों को संभालने की ताकत है जिनकी क्षमता 24,000 से अधिक TEU (ट्वेंटी-फुट इक्विवेलेंट यूनिट) तक होती है। TEU वह मानक है जिससे कंटेनर शिप की भार वहन क्षमता को मापा जाता है एक TEU मतलब 20 फीट लंबा, 8 फीट चौड़ा और 9 फीट ऊंचा कंटेनर।
इस बात की पुष्टि इसी महीने हुई जब विश्व का सबसे बड़ा इको-फ्रेंडली कंटेनर जहाज ‘टर्किए’, जो Mediterranean Shipping Company द्वारा संचालित है, Vizhinjam Port पर सफलतापूर्वक लंगर डाला। टर्किए 400 मीटर लंबा, 61 मीटर चौड़ा और 34 मीटर गहराई वाला जहाज है और यह 24,300 से अधिक TEU ढोने की क्षमता रखता है। यह न केवल तकनीकी रूप से शानदार उपलब्धि है, बल्कि भारत के लिए यह संदेश भी है कि हम अब वैश्विक समुद्री खेल के हाशिए पर नहीं बल्कि केंद्र में खड़े हैं।
अभी तक भारत आने वाला लगभग 75 प्रतिशत समुद्री कार्गो, जिसे बड़े जहाज लेकर आते थे, सिंगापुर, कोलंबो या दुबई जैसे विदेशी पोर्ट्स पर ट्रांसशिपमेंट के लिए रोका जाता था, जहां से उसे छोटे जहाजों में भारत लाया जाता था। इसका मतलब था समय की बर्बादी, अतिरिक्त खर्च और विदेशी निर्भरता। लेकिन अब विजिंजम के साथ यह इतिहास बनने जा रहा है। अब भारत के पास अपना ऐसा ट्रांसशिपमेंट हब है जो पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र बन सकता है।
भारत के लिए स्ट्रैटेजीकल जेम
इस परियोजना का संचालन अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन लिमिटेड (Adani Ports and SEZ Ltd) द्वारा किया जा रहा है, जिसकी हिस्सेदारी 28.9% है। केरल सरकार इस पोर्ट में सबसे बड़ी हिस्सेदार है, जिसके पास 61.5% हिस्सेदारी है, जबकि केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 9.6% है। इसकी भौगोलिक स्थिति इसे और भी खास बना देती है। यह ईस्ट-वेस्ट शिपिंग चैनल से सिर्फ 10 नॉटिकल मील यानी करीब 19 किलोमीटर दूर है, जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक जहाजों को कोई विशेष चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा। इसके कारण भारतीय निर्यातकों और आयातकों को हर कंटेनर पर लगने वाला 80 से 100 डॉलर का अतिरिक्त खर्च अब बच जाएगा। यह बदलाव न केवल आर्थिक रूप से फायदेमंद है, बल्कि इससे भारत की लॉजिस्टिक्स क्षमता बेहतर होगी, व्यापारिक लागत घटेगी और हम लंबे समय तक वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिके रहेंगे।
सबसे बड़ी बात यह है कि अब जब 75 प्रतिशत ट्रांसशिपमेंट कार्गो विदेशी पोर्ट्स पर जाकर निर्भरता बनाता था, विजिंजम उसे सीधा भारत में संभाल सकेगा। इसका मतलब है कि भारत अब किसी दूसरे देश के लॉजिस्टिक संकट या राजनीतिक उठापटक से प्रभावित नहीं होगा। अब भारत के पास वह शक्ति है जिससे वह न सिर्फ अपना माल बल्कि अपनी रणनीति भी खुद तय कर सकता है। और यही वजह है कि Vizhinjam Port भारत और पूरे दक्षिण एशियाई उपमहाद्वीप के लिए एक वर्ल्ड-क्लास ट्रांसशिपमेंट हब बनने की पूरी क्षमता रखता है।