Saraswati River Revival: पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान का पानी रोक दिया। कड़ा फैसला लेते हुए सिंधु जल समझौते को स्थगित कर दिया गया। एक ओर भारत ने सिंधु का पानी रोक लिया तो दूसरी तरफ पंजाब ने हरियाणा का पानी कम कर दिया है। इसका परिणाम ये हुआ कि सरस्वती नदी के पुनर्जन्म के लिए हो रही कोशिशों को पंख लग गए। हरियाणा सरकार सिंधु के पानी को हिमाचल प्रदेश के रास्ते यमुनानगर के आदिबद्री तक लाने की योजना बनाई है। यहां से यह पानी सरस्वती नदी में बहेगा। इस परियोजना के लिए राजस्थान भी बराबर से साथ चलने को तैयार है। क्योंकि, सरस्वती का बहाव मरुस्थल से भी होकर जाता है।
सरस्वती नदी में फिर से बहाव पैदा करने की महत्वाकांक्षी योजना ने जोर पकड़ लिया। वैदिक काल की पौराणिक सरस्वती को फिर से जीवंत होती है तो ये न केवल खेतों को हरा-भरा करेगी बल्कि लाखों लोगों की प्यास भी बुझाएगी। आइये जानें क्या है पूरी योजना और इसपर क्या काम हो रहा है?
सरस्वती की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- सरस्वती नदी का उल्लेख वेदों में मिलता है
- हिमालय के ग्लेशियर से निकलकर हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, गुजरात के रास्ते कच्छ पहुंचती है।
- इस नदी की कुल लंबाई करीब 4000 किमी मानी जाती है।
- करीब 5000 साल पहले जलवायु परिवर्तन और टेक्टोनिक गतिविधियों के कारण विलुप्त हो गई।
- लंबे समय तक ये केवल मौसमी नदी बनकर बहती रही।
- वर्तमान में इसका सफर आदिबद्री (यमुनानगर, हरियाणा) से ओटू झील (राजस्थान) माना जाता है।
- हरियाणा सरकार ने इसके 400 किलोमीटर को चिह्नित कर जीवित करने की योजना पर काम किया है।
- अभी यह बिलासपुर, कुरुक्षेत्र, कैथल, फतेहाबाद, सिरसा से होकर बहती है।
पंजाब से पानी न मिलने से परेशान है हरियाणा
हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष धूमल सिंह किरमिच ने कहा कि पंजाब हमें हमारा हक का पानी नहीं दे रहा। अब जब केंद्र ने सिंधु जल समझौता रद्द किया है तो यह पानी हरियाणा, पंजाब और राजस्थान की नदियों में बांटा जाएगा। यह पानी सरस्वती को नया जीवन देगा।
क्या है प्लानिंग?
- विभिन्न नदियों की सहायता से सतलुज का पानी सरस्वती तक लाया जाएगा।
- अलग-अलग हिस्सों के लिए हरियाणा और राजस्थान साथ काम करेंगे।
- शुरुआती चरण में 50-100 क्यूसिक पानी लाने की योजना।
- इसरो, वाडिया इंस्टीट्यूट, हरियाणा स्पेस सेंटर, केंद्रीय जल आयोग, CAZRI, IIT-BHU साथ काम करेंगे।
- सरस्वती के पेलियोचैनल्स पुनर्जनन के लिए डेनमार्क की सहायता ली जाएगी।
हरियाणा सरकार कर रही काम
सतलुज, रावी और ब्यास का पानी मिलेगा सरस्वती नदी साल भर बहेगी। इससे किसानों की फसलें लहलहाएंगी और उसका धार्मिक महत्व फिर से स्थापित होगा। हरियाणा सरकार ने इस परियोजना को गति देने के लिए वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के साथ कदम मिलाए हैं। हाल ही में जयपुर के बिरला रिमोट सेंसिंग टेक्नोलॉजी सेंटर में इसरो, हरियाणा स्पेस सेंटर (हरसेक), और केंद्रीय जल आयोग के अधिकारियों के साथ एक अहम बैठक हुई। इसमें हिमाचल के सोलन, बिलासपुर, और नाहन के रास्ते पानी को टौंस नदी के जरिए सरस्वती तक लाने की योजना पर चर्चा हुई।
क्या है मकसद?
- पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व को पुनर्जीवित करना।
- हरियाणा और राजस्थान में जल संसाधनों की उपलब्धता को बढ़ाना।
- कृषि और सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराना।
- भूजल स्तर में सुधार करना।
- क्षेत्रीय जैव विविधता और पारिस्थितिकी को बढ़ावा देना।
- पर्यटन और सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देना।
कदम ताल मिलने को तैयार राजस्थान
राजस्थान सरकार ने भी इसमें हाथ मिलाया है। राजस्थान के जल संसाधन मंत्री सुरेश रावत ने कहा है कि सरस्वती नदी युगों से हमारी भूमि में भूमिगत बह रही है। अब इसे धरातल पर लाने का समय है। परियोजना राजस्थान की मरुभूमि को हरियाली देगी और किसानों के लिए वरदान साबित होगी। इसके लिए राजस्थान ने डेनमार्क के साथ भी एक समझौता किया है, जिसके तहत सरस्वती के पेलियोचैनल्स को पुनर्जनन करने में तकनीकी सहायता मिलेगी।
इन प्रोजेक्ट पर हो रहा काम
- यमुनानगर के आदिबद्री में 33.4 मीटर ऊँचा और 160 मीटर लंबा डैम बनाया जा रहा है।
- सरस्वती जलाशय भी बनाया जा रहा है। इनकी लागत 215.33 करोड़ के आसपास है।
- सोम नदी के पानी को सरस्वती में प्रवाहित करने के लिए सोम सरस्वती बैराज का निर्माण।
- बिलासपुर (हरियाणा) के छलोर गांव में 350 एकड़ में एक बड़ी झील का निर्माण।
- कैंथला सप्लाई चैनल के जरिए मार्कंडा और सरस्वती को जोड़ने की प्लानिंग।
पहले से चली आ रही है योजना
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल ने भी अपने कार्यकाल में सतलुज यमुना लिंक नहर के जरिए पानी लाने की बात कही थी। हालांकि, पंजाब के असहयोग के कारण यह योजना अधूरी रही। अब सिंधु जल समझौते के रद्द होने से नया अवसर सामने आया है। अब इस परियोजना हरियाणा सरकार तेजी से काम कर रही है। क्योंकि, सिंधु का पानी हरियाणा को सतलुज यमुना लिंक (SYL) के जरिए पंजाब पर निर्भरता को कम करेगा।
सरस्वती के प्रमाण
- इसरो और ONGC की सेटेलाइट इमेजरी ने पेलियोचैनल्स की पुष्टि की।
- 2017 में केंद्र सरकार की समिति ने सरस्वती के अस्तित्व की पुष्टि की।
- भूजल में ट्रिटियम और रेडियो कार्बन डेटिंग से 20,000-40,000 साल पुराने पानी के नमूने मिले।
- हड़प्पा स्थल (लगभग 2000) सरस्वती के पेलियोचैनल्स के पास पाए गए।
इस परियोजना की अंतिम रिपोर्ट जल्द ही हरियाणा और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों को सौंपी जाएगी, जिसके बाद केंद्र सरकार से इसकी मंजूरी ली जाएगी। अगर सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ, तो जल्द ही सरस्वती की धारा फिर से बहती नजर आएगी। सिंधु, रावी, व्यास, सतलुज, झेलम और चिनाब जैसी उत्तरी नदियों का पानी हरियाणा की प्यासी धरती और राजस्थान के तपते रेगिस्तान को ठंडा करने के काम आएगा। यह परियोजना न केवल जल संकट से जूझ रहे इन राज्यों के लिए संजीवनी साबित हो सकती है, बल्कि सदियों पहले लुप्त हो चुकी पौराणिक सरस्वती नदी को भी एक नया जीवनदान दे सकती है।