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नक्सलवाद पार्ट-3: 1967 से 2011 तक कैसे बना कांग्रेस की नाकामी का रेड कॉरिडोर?

नक्सलवाद की बात होती है तो अक्सर रेड कॉरिडोर जिक्र होता है। ये वही इलाका है जहां नक्सलियों ने पनाह ले रखी है। आइये जाने आखिर ये कैसे और क्यों बना?

Shyamdatt Chaturvedi द्वारा Shyamdatt Chaturvedi
29 May 2025
in भारत
Naxalism Part 3 Red Corridor

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नक्सलवाद पार्ट-3: साल 1967 के आंदोलन और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में फूट से साफ हो गया था कि उनके इरादे क्या हैं। मार्क्सवादियों के एक धड़े ने कानू सान्याल के नेतृत्व में अपने नाम के साथ लेनिन बाद भी जोड़ लिया। इसके एक विंग हिंसात्मक आंदोलन की राह पर बढ़ती गई। सरकार की नीतियों और विदेशी समर्थन के कारण उन्होंने रेड कॉरिडोर बना लिया। इस कॉरिडोर ने कई साल तक आदिवासियों और देश के विकास को रोका। हालांकि, वर्तमान में सरकार की नीतियों और प्रयासों के कारण अब काफी हद तक ये कॉरीडोर सिकुड़ चुका है।

नक्सलवाद के पार्ट-2 में हमने आपको बताया था कि कैसे 1967 में नक्सलबाड़ी से कम्यूनिज्म का नक्सलवादी रूप सामने आया और उसके बाद वो रेड कॉरिडोर बनाने के रास्ते पर आगे बढ़ गया। अब हम आपको बताएंगे कि रेड कॉरिडोर का विस्तार कितने चरणों में कैसे, कहां, कब हुआ?

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नक्सलबाड़ी आंदोलन के बाद रेड कॉरिडोर क्यों और कैसे बनता है?

साल 1969 में मार्क्सवादी पार्टी से अलग होकर कट्टरपंथी नेता चारू मजूमदार ने अलग पार्टी बनाने का फैसला लिया। मजूमदार ने हिंसक रुख वाले सुनील घोष, रनबीर समद्दार और असीम चट्टोपाध्याय जैसे लोगों के साथ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) यानी CPI(ML) बनाई। उसकी एक विंग का मकसद हिंसात्मक विरोध था। यहीं से नक्सलबाड़ी आंदोलन का क्रूर चेहरा और अधिक वीभत्स हो गया।

समय के साथ नक्सलवाद की विचारधारा बदल गई है। CPI(ML) का सैनिक संगठन पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी काफी मजबूत बन गयी। इस नेटवर्क ने भारतीय लोकतंत्र पर अविश्वास फैलाना और चुनावों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया। पश्चिम बंगाल से निकलकर नक्सलवाद तत्कालीन बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश में फैल गया। आखिरकार कुछ साल में ड कॉरिडोर का निर्माण हो गया जो आजतक आदिवासी विकास की राह में रोड़ा बना हुआ है।

आखिर क्या है रेड कॉरिडोर?

मध्य, पूर्वी और दक्षिणी भारत में फैला एक ऐसा इलाका है जो नक्सलवाद, माओवाद, लेनिनवाद विद्रोह से बुरी तरह प्रभावित है। यह वास्तव में कोई तयशुदा भौगोलिक सीमा नहीं है बल्कि उन जिलों का समूह है जहां नक्सली गतिविधियां ज्यादा हैं। रेड कॉरिडोर ने सालों से नक्सलवाद को पनाह दिया है। वही नक्सलवाद जो जटिल सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रक्रिया का परिणाम है। जिसने आदिवासियों को कम्युनिस्टों के करीब जाने को मजबूर किया। बाद में इन कम्युनिस्टों ने किसानों, आदिवासियों, गरीबों को भारत के खिलाफ ही हथियार देकर अपनी सियासी आग में झोंक दिया।

3 फेज में 9 राज्यों तक फैला रेड कॉरिडोर

  • फेज-1: 1967 से 1973
  • फेज-2: 1980 से 2004
  • फेज-3: 2005 से 2011

मध्य प्रदेश में एंट्री के साथ शुरू हुआ रेड कॉरिडोर का सफर

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) ने हक की लड़ाई के लिए हथियार उठा लिए थे। 70 का दशक आते-आते आंदोलन तेज हो गया। इसी बीच साल 1971 इनके खिलाफ खतरनाक अभियान चला जिसमें 2000 मजदूरों को हिरासत में लिया गाया। 1972 में चारू मजूमदार की पुलिस हिरासत में मौत हो गई। यहां से नक्सली आंदोलन में बिखराव हो गया। उसने आंध्र प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ में मजबूती से पैर जमा लिया और यहां के 90 जिलों को बुरी तरह अपनी चपेट में ले लिया। इसी का नाम रेड कॉरिडोर पड़ा।

मध्य प्रदेश में 1967 के नक्सलबाड़ी आंदोलन से कुछ साल पहले उसकी जमीन तैयार हो गई थी। बस्तर में साल 1952 का चुनाव हारने के बाद कांग्रेस सरकार की राजा प्रवीर चंद्र भंजदेव तनातनी रहने लगी। इसके बाद भी प्रवीर चंद्र जल, जंगल, जमीन और आदिवासियों के अधिकार की आवाज उठाते रहे। सरकार ने पैसों के दुरुपयोग का आरोप लगाकर राजा का प्रिवी पर्स छीन लिया।

माइनिंग प्रोजेक्ट से भड़की आग

एक तरफ राजा को कमजोर करने के लिए कई चाल चली जा रही थी। दूसरी ओर जापानी कंपनी ने बेल्डी माइनिंग प्रोजेक्ट शुरू कर दिया। राजा ने  जल जंगल जमीन बचाने का नारा बुलंद कर दिया। उन दिनों मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कैलाश नाथ काटजू ने उन्हें दबाने के लिए पूरा दम लगा दिया। राजा को लंदन भेज दिया गया। जब वो लौटकर आए तो कैलाश नाथ काटजू ने उन्हें बस्तर छोड़ने का सलाह दी। लेकिन जब वो नहीं माने तो उनके भाई को राजा नियुक्त कर दिया गया और उन्हें हाउस अरेस्ट कर लिया गया।

बस्तर की जनता प्रवीर चंद्र को ही अपना राजा मानती थी। इसी बीच 1962 के चुनाव आ गए। जनता पहले से ही कांग्रेस से आक्रोशित थी। नतीजा ये हुआ कि प्रवीर चंद्र समर्थित प्रत्याशियों ने बस्तर की 9 सीटों को जीत लिया। कांग्रेस प्रवीर चंद्र के कारण परेशान हो चुकी थी। उसके कई प्रोजेक्ट बस्तर में चल नहीं पा रहे थे। इस कारण उन्हें विद्रोही घोषित कर दिया गया। 25 मार्च 1966 को अचानक पुलिस ने राजमहल पर हमला बोल दिया। ताबड़तोड़ फायरिंग में राजा लहूलुहान हो गए। उन्हें बचाने के चक्कर में 11 आदिवासियों की जान चली गई।

बात बाहर निकली देश में हंगामा मच गया। सरकार ने पुलिस एनकाउंटर को सेल्फ डिफेंस का नाम देकर पल्ला झाड़ लिया। सरकार को लगा की उसने मामला रफा दफा कर लिया है। उसकी ओर से लाई कंपनियां इलाके में खनिज दोहन करने लगीं। इसके बदले में जनता को कुछ दिया नहीं गया। हालांकि, 25 मार्च 1966 की घटना बस्तर की आदिवासी जनता के मन में घर कर गई थी। वो कांग्रेस की सरकार को अंग्रेजों की तरह ही दमनकारी मानने लगी थी।

नक्सलियों की एंट्री आसान हुई

इस हत्याकांड ने नफरत का बीज बो दिया था। इसी नफरत के कारण छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की एंट्री आसान हो गई। बंगाल में नक्सलियों को कंट्रोल करने के लिए मिलिट्री ऑपरेशन चलने लगे। कम्युनिस्टों को पता चला कि बस्तर की जनता सरकार से खफा है तो उन्होंने नक्सलियों का मुंह मध्य प्रदेश की ओर मोड़ दिया। सभी ऑपरेशन से बचने के लिए नक्सली दंडकारण्य को अपना ठिकाना बनाने लगे। बस्तर के घने जंगलों में वो आराम से छिप सकते थे। दूसरी तरफ सरकार से खफा लोगों को नक्सलियों ने आसानी से बरगलाकर लिया। अब इनके पास बस्तर में छिपने की जगह और लोगों का साथ भी मिल गया।

एंटी इंडिया कम्युनिस्टों को मिला मौका

70 के दशक में सरकार ने उद्योगों पर काम किया लेकिन आदिवासी अधिकारों को दरकिनार कर दिया गया। यहीं से एंटी इंडिया कम्युनिस्टों को आदिवासी को बहलाने का बहाना मिलता रहा। लगातार उग्र तरीके से लोकतंत्र का विरोध शुरू किया गया। देखते ही देखते नक्सली भारत की सिक्योरिटी के लिए सबसे बड़ी समस्या बन गए। इनके खिलाफ ऑपरेशन चले तो इन्होंने घने जंगलों का अपना ठिकाना बना लिया। धीरे-धीरे ये महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा में अपना विस्तार कर लिया। यही नक्सलवाद का रेड कॉरिडोर बनकर तैयार हो गया।

  • फेज-1: 1967 से 1973 तक नक्सली आंदोलन पश्चिम बंगाल, बिहार और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में फैलता रहा। 1972 में चारू मजूमदार की मौत हो गई। नक्सलियों के पावर सेंटर खत्म कर दिए गए।
  • फेज-2: 1980 से 2004 तक नक्सलवादी पश्चिम बंगाल से बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा तक फैल गए। इस दौरान वो गुरिल्ला युद्ध अपनाने लगे और हथियार जमा करने लगे। सुरक्षाबलों की कार्रवाई पर वो हिंसा करने लगे और अपने बचाव के लिए रेड कॉरिडोर बनाने लगे।
  • फेज-3: 2005 से 2011 तक झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और मध्य प्रदेश के अलावा आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश में नक्सलवाद का प्रभाव देखने को मिला। साल 2005 तक करीब 209 जिले नक्सलवाद से ग्रस्त थे। हालांकि, 2007 में इनकी संख्या 200 के आसपास आ गई।
  • अंत की शुरुआत: 2014 के बाद से नक्सलियों के खात्मे की शुरुआत हो गई है। पिछले कुछ साल में सरेंडर और एनकाउंटर के मामले बढ़ हैं। हालांकि, हमले काफी कम देखने को मिले हैं। खासकर 2019 के बाद बड़ी संख्या में नक्सली मारे गए हैं।

नक्सलवाद पार्ट-1: जर्मनी से नक्सलबाड़ी तक लाल आतंक का सफर

भारत के कई नक्सल प्रभावित इलाकों नक्सलियों का राज चलता है। सरकारी योजनाएं दशकों से यहां साकार नहीं हो पाई है। नक्सलवाद से भारत के सबसे ज्यादा अब छत्तीसगढ़ प्रभावित है। यहीं से नक्सलवाद का सबसे विकृत चेहरा सामने आता है। इनकी जड़ें इंटी एंडिया सेंटीमेट रखने वाले लोगों के जुड़ी हैं। यहीं से इनको हथियारों की आपूर्ति होती है। इस पूरे सिडीकेट अब गहरी चोट पहुंच रही है। इसके लिए सरकार समावेशी विकास का रास्ता अपना रही है। दूसरी तरह इसके इसके हिंसात्मक नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है। इसी कारण उसके नेता तिलमिलाए हुए हैं।

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