भारतीय राजनीति में चंद नाम ऐसे हैं, जो सिर्फ व्यक्तित्व के नहीं, बल्कि विचारधाराओं के भी प्रतीक होते हैं। जनसंघ संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी उनमें अग्रणी व्यक्ति्व हैं। उन्होने भारत की एकता को न केवल एक राजनीतिक लक्ष्य माना बल्कि इसे आत्मिक संकल्प के रूप में देखा था। जब 1950 के दशक में संविधान का निर्माण हो रहा था और जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 के माध्यम से विशेष दर्जा प्रदान किया गया था, तब डॉ. मुखर्जी ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया – “एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान कैसे चल सकते हैं?” यह प्रश्न न केवल तात्कालिक राजनीति से जुड़ा था बल्कि यह भारत की एकता और अखंडता के प्रति एक गहरी चिंता को भी दिखा रहा था।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्वतंत्र भारत के पहले उद्योग मंत्री तो बने ही, उससे कहीं अलग उनकी पहचान एक प्रसिद्ध शिक्षाविद् और निर्भीक राष्ट्रवादी की थी। वर्ष 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी, जो आज भारतीय जनता पार्टी के रूप में दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक संगठन बन चुका है। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के उनके जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष जम्मू-कश्मीर में अलग संविधान और नियमों के खिलाफ था और वो निरंतर भारत भूमि की अखंडता के लिए संघर्ष करते रहे। उस समय देश के अन्य नागरिक बिना परमिट जम्मू-कश्मीर की यात्रा नहीं कर सकते थे, मानो वो कोई अलग देश हो।
कश्मीर के भारत से पृथक्करण के विरोध में वर्ष 1953 में उन्होने बिना परमिट जम्मू कश्मीर में प्रवेश किया। फलस्वरूप वहां उन्होने गिरफ़्तार कर लिया गया और वहीं रहस्यमयी परिस्थितियों में आज के ही दिन उनका निधन हो गया। लेकिन भारत माता की अखंडता के लिए उनका ये बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनके बलिदान ने एक आंदोलन को प्रेरित किया जो अंतत: 5 अगस्त 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को हटाने के रूप में साकार हुआ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के अधूरे सपनों को पूरा करने’ की प्रतिबद्धता को दोहराते हैं। यह केवल एक राजनीतिक बयान नहीं है, बल्कि ये प्रतिबद्धता उनकी सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
एक राष्ट्र, एक विधान और अनुच्छेद 370 का अंत
5 अगस्त 2019 को संसद में एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित कर जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जे से मुक्त किया गया और उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर भारतीय संविधान की पूर्ण व्यवस्था लागू की गई। यह केवल एक कानूनी परिवर्तन नहीं था बल्कि उस ऐतिहासिक अन्याय का अंत था जिसे डॉ. मुखर्जी ने 70 वर्ष पहले न सिर्फ चुनौती दी थी, बल्कि जिसके लिए अपने प्राण भी न्योछावर किए थे।
एक राष्ट्र, एक कर: जीएसटी के माध्यम से आर्थिक एकता
2017 में लागू हुआ वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) भारत में पहली बार एक समान कर प्रणाली लेकर आया। जीएसटी ने पूरे देश में एक कर व्यवस्था लागू कर आर्थिक एकता की नींव रखी। यह केवल एक व्यापारिक सुधार नहीं था बल्कि इसका लक्ष्य संघीय भारत को एक आर्थिक पहचान देना भी था। जीएसटी संशोधन श्यामाप्रसाद मुखर्जी के एक देश-एक विधान की नीति के अनुरूप ही है।
एक देश, एक राशन कार्ड: जरूरतमंद से सीमाई-भाषाई भेदभाव का अंत
यह योजना लाखों प्रवासी मजदूरों के लिए वरदान साबित हुई है। अब कोई भी भारतीय नागरिक देश के किसी भी राज्य में अपने राशन कार्ड से सब्सिडी वाला अनाज प्राप्त कर सकता है। इस योजना का लाभार्थी होने के लिए सिर्फ भारत का नागरिक होना आवश्यक है, फिर चाहे वो किसी भी राज्य का वासी क्यों न हो, उसके राज्य में किसी भी पार्टी की सरकार क्यों न हो। ये योजना कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पूरे भारत को एक बेहतरीन खाद्य सुरक्षा योजना के ज़रिए एकता के सूत्र में पिरोती है।
एक राष्ट्र, एक चुनाव: राजनीतिक समरसता की दिशा में प्रयास
भारत में लगातार चुनावों के कारण नीति निर्माण रुकता है, प्रशासनिक तंत्र थमता है और खर्च बेतहाशा बढ़ता है। नरेंद्र मोदी सरकार’एक देश, एक चुनाव’ की दिशा में कदम बढ़ा चुकी है। ज़ाहिर है अगर ये चुनावी सुधार लागू होता है तो इससे न सिर्फ धन की भारी बचत होगी, बल्कि पूरे देश में राजनैतिक एकता का संचार भी होगा।
डिजिटल इंडिया और एक डिजिटल पहचान
मोदी सरकार में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के विचारों का सबसे बेहतर समावेश डिजिटल इंडिया के रूप में दिखाई देता है। आज आधार कार्ड, यूपीआई, डिजिटल पेमेंट, डिजिलॉकर जैसी सुविधाओं के जरिए भारत का कोई भी नागरिक देश में कहीं से भी बैंकिंग, स्वास्थ्य, शिक्षा, और पहचान सेवाओं का लाभ उठा सकता है। फिर चाहे वो कश्मीर में कन्याकुमारी का भारतीय हो या फिर कन्याकुमारी में कश्मीर का। सही मायनों में डिजिटल इंडिया ने पूरे भारत को एकता की अनोखी डिजिटल डोर में बांधा है।
आज जब भारत नई शिक्षा नीति ला रहा है, जब राम मंदिर का निर्माण हो रहा है, जब कश्मीर से कनेक्टिविटी बढ़ रही है। तब हर मोर्चे पर वही भाव झलक रहा है जो डॉ. मुखर्जी ने बोया था। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की उस कल्पना को साकार कर रहा है, जिसके न सिर्फ उन्होने सपने देखे थे, बल्कि अपना जीवन भी बलिदान कर दिया था। आज कश्मीर के लाल चौक पर शान से लहराता तिरंगा ही उन्हें इस राष्ट्र की, उनके अनुयायियों की सच्ची श्रद्धांजलि है।