भारतीय संगीत के अमर नायक तानसेन के जीवन और कला के अनछुए पहलुओं को उजागर करने वाली पुस्तक ‘तानसेन का ताना-बाना’ का भव्य लोकार्पण दिल्ली के केशव कुंज स्थित विचार विनिमय न्यास सभागार में हुआ। वरिष्ठ पत्रकार राकेश शुक्ला द्वारा लिखित यह पुस्तक संगीत के पुरोधा तानसेन के जीवन और असाधारण योगदान के साथ भारतीय सांस्कृतिक विरासत में उनके महत्व को दर्शाती है। दीप प्रज्ज्वलन के साथ शुरू हुए इस कार्यक्रम में कई गणमान्य व्यक्तियों ने अपने विचार व्यक्त किए।
तानसेन को भारतीय शास्त्रीय संगीत का सूरज माना जाता है। उनकी साधना और विरासत को यह पुस्तक नई पीढ़ी तक पहुंचाने का एक प्रयास है। दीप प्रज्ज्वलन के साथ शुरू हुए इस समारोह को केंद्रीय मंत्रियों, सांस्कृतिक हस्तियों और साहित्य प्रेमियों की उपस्थिति ने गरिमामय बना दिया।
इतिहास को लिखते रहना चाहिए- नितिन गडकरी
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भारत के भविष्य और इतिहास के बीच के अटूट संबंध पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अगर भारत को विश्वगुरु बनाना है तो हमें अपने इतिहास, साहित्य और संस्कृति को समृद्ध करना होगा। हमारा इतिहास, हमारी संस्कृति, हमारी विरासत हमारे भविष्य के निर्माण के लिए आवश्यक हैं। अपनी कमियों को दूर करते हुए अपने इतिहास को लिखते रहना चाहिए ताकि नई पीढ़ी को हम वह बता सकें और दिखा सकें। गडकरी ने इस बात पर बल दिया कि ऐसी पुस्तकें नई पीढ़ी को उपहार में दी जानी चाहिए, ताकि वे अपनी जड़ों से जुड़ सकें।
निरंतर प्रयत्न की आवश्यकता- सुनील आंबेकर
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने संगीत के लिए तानसेन के योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि तानसेन ने ऐसे समय में भी संगीत परंपरा को आगे बढ़ाने जब शासन में बैठे लोग संगीत को ज्यादा महत्व या प्रोत्साहन नहीं देते थे। उन्होंने तानसेन की साधना को संगीत के हर स्वरूप में आध्यात्मिक परंपरा का प्रतीक बताया। आंबेकर ने कहा कि परंपराओं को जीवित रखने और समृद्ध बनाने की दिशा में निरंतर प्रयत्न करने की आवश्यकता है।
विरासत के बिना विकास अधूरी- गजेंद्र सिंह शेखावत
केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि तानसेन पर पांच सौ वर्षों बाद भी लेखन जारी है। यह इस बात का प्रमाण है कि उनका योगदान आज भी प्रासंगिक है। इतिहास के उन व्यक्तित्वों को पुनः स्थापित करने की आवश्यकता है जिन्हें जानबूझकर भुलाया गया। शेखावत ने कहा कि भारतीय सभ्यता पश्चिम की तरह नहीं है जहां पीछे देखने और गर्व करने को कुछ नहीं है। भारत हमेशा न सिर्फ अपने इतिहास से सीख लेता है बल्कि उसके महान मूल्यों को आत्मसात करने की प्रवृत्ति भी रखता है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वर्ष 2047 में विकसित भारत बनाने के संकल्प को दोहराया और कहा कि विकसित भारत की यह यात्रा हमारी महान विरासत के बिना अधूरी होगी।
रेफरेंस बनेगी ये किताब- प्रह्लाद सिंह पटेल
मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने पुस्तक की प्रशंसा की और कहा कि ये किताब तानसेन के जीवन को समझने और शोध में संदर्भ के रूप में कार्य करने वाली ऐतिहासिक दस्तावेज है। उन्होंने पूरी उम्मीद जताई कि भविष्य में यह पुस्तक रेफरेंस के रूप में प्रयोग की जाएगी। उन्होंने कहा कि समय के साथ बहुत सी चीजों को ढका गया। इस दृष्टि से यह पुस्तक अत्यंत महत्वपूर्ण है।
साहित्य सेवा में योगदान- राजीव तुली
कार्यक्रम के दौरान सुरुचि प्रकाशन के प्रतिनिधि राजीव तुली भी मौजूद रहे। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में साहित्य की अनंत महिमा बताई गई है। शास्त्र ही ऐसी शक्ति है जो अनेक संशयों को दूर करती है। उन्होंने बताया कि हमने पिछले 50 वर्षों में उन पुस्तकों को छापा जिन्हें कोई नहीं छापता था। अब तक 250 से अधिक पुस्तकें गूगल पर निशुल्क उपलब्ध हैं। इनको लाखों लोग प्रतिमाह डाउनलोड करते हैं। भविष्य में इन्हें ई-बुक के रूप में और अधिक लोगों तक पहुंचाया जाएगा। उन्होंने कहा कि सुरुचि प्रकाशन भी संघ के साथ कंधे से कंधा मिलाकर विचारधारा को लोगों तक पहुंचाने के कार्य में जुटा है और आगे भी जुटा रहेगा।
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तानसेन की अनकही यात्रा- राकेश शुक्ला
पुस्तक के लेखक राकेश शुक्ला ने बताया कि तानसेन की यात्रा सिर्फ अकबर के दरबार तक सीमित नहीं थी। उन्होंने बताया कि तानसेन की कहानी मध्य प्रदेश के सतना जिले में पड़ने वाले छोटे से गांव बांधा से शुरू हुई थी। राकेश शुक्ला ने बताया कि इस पुस्तक में बहुत कुछ है जो इतिहास से छुपा रह गया है। उनके ये टिप्पणी दर्शाती है कि पुस्तक तानसेन के जीवन के उन पहलुओं पर भी प्रकाश डालती है जो शायद आम तौर पर ज्ञात नहीं हैं।