कभी युद्ध हाथी और घोड़ों से लड़े जाते थे, फिर आया तोप, टैंकों और मिसाइलों का दौर, जहां युद्ध और भी विनाशकारी होता गया। आज हम ड्रोन्स और सैटेलाइट्स की दुनिया में हैं, जहां तकनीक एक बड़ा हथियार बन चुकी है। लेकिन आने वाले चरण और भी खतरनाक है और वो है बायो वॉर यानी जैविक युद्ध। यहां एक अदृश्य जीवाणु लाखों लोगों की जान ले सकता है, वो भी बिना किसी गोली या हथियार के। अब ऐसे संकेत मिले हैं जिससे लग रहा है कि चीन बायो वॉर की तैयारी कर रहा है। हालांकि, पहले ही इससे जुड़ी कई रिपोर्ट्स सामने आई हैं लेकिन अब यह अमेरिका से एक ऐसा मामला सामने आया है जिससे इन अटकलों को और भी बल मिला है। अमेरिका में एक संभावित Agroterrorism का मामला सामने आया है।
Agroterrorism हथियार के गिरफ्तार चीनी रिसर्चर
एक चीनी कपल ज़ुनयोंग लियू और युनकिंग जियान पर खतरनाक फफूंद फ्यूज़ेरियम ग्रामिनियारम (Fusarium graminearum) को गैर-कानूनी रूप से अमेरिका में लाने का आरोप लगा है। अमेरिका की Federal Bureau of Investigation (FBI) ने जियान को गिरफ्तार कर लिया है। अमेरिका के डिपार्मेंट ऑफ जस्टिस ने बताया है कि जिस फफूंद को स्मगल करने का आरोप लगा है वो Scientific Literature में संभावित agroterrorism हथियार माना गया है। यह जहरीला फंगस गेहूं, जौ, मक्का और चावल में “हेड ब्लाइट” नाम की बीमारी फैलाता है, जिससे हर साल दुनियाभर में अरबों डॉलर का आर्थिक नुकसान होता है। फ्यूज़ेरियम ग्रामिनियारम से निकलने वाले ज़हरीले तत्वों से इंसानों और जानवरों में उल्टी, लीवर को नुकसान और प्रजनन से जुड़ी गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
क्या बोले FBI के डायरेक्टर?
चीन पर कोविड-19 को लेकर बायो वॉर के आरोप लगते रहे हैं और अब अमेरिकी ने इस मामले में चीन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। FBI के डायरेक्टर काश पटेल का कहना है कि सबूतों से यह भी पता चला है कि जियान ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा जताई थी और उसे चीन में इसी पैथोजन पर काम करने के लिए चीनी सरकार से फंडिंग भी मिली थी। काश पटेल ने बताया कि जियान का बॉयफ्रेंड ज़ुनयोंग लियू चीन की एक यूनिवर्सिटी में काम करता है, और वहां वह इसी खतरनाक पैथोजन पर रिसर्च कर रहा है।
मिशिगन यूनिवर्सिटी ने दी सफाई
इस मामले पर मिशिगन यूनिवर्सिटी ने भी सफाई दी है और एजेंसियों को मदद का पूरा भरोसा दिया है। यूनिवर्सिटी ने एक बयान में कहा, “यह स्पष्ट करना जरूरी है कि जिन लोगों पर आरोप लगाए गए हैं, उनके शोध कार्य के लिए विश्वविद्यालय को चीनी सरकार से कोई फंडिंग नहीं मिली है। हम इस मामले में संघीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ पहले भी सहयोग कर चुके हैं और आगे भी पूरी तरह से सहयोग करते रहेंगे।
बायो वॉर को लेकर चीन की तैयारी
चीन 1972 के Biological Weapons Convention (BWC) का हस्ताक्षरकर्ता है। इसे आधिकारिक रूप से Convention on the Prohibition of the Development, Production and Stockpiling of Bacteriological (Biological) and Toxin Weapons and on their Destruction कहा जाता है। आसान शब्दों में इसे समझें तो यह एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय समझौता है जिसका मकसद है कि कोई भी देश खतरनाक जैविक और ज़हरीले हथियार न बनाए, न जमा करे और जो पहले से हैं, उन्हें पूरी तरह नष्ट कर दे। लेकिन फिर पर चीन पर जैविक हथियार के निर्माण को लेकर लगातार दुनिया भर की नज़रें रहती हैं।
अमेरिका के रक्षा विभाग की MILITARY AND SECURITY DEVELOPMENTS INVOLVING THE PEOPLE’S REPUBLIC OF CHINA 2024 की वार्षिक रिपोर्ट में दावा किया है कि चीन (PRC) आज भी ऐसे जैविक शोध और गतिविधियों में शामिल है जिनका dual-use किया जा सकता है, इसी वजह से यह चिंता उठती है कि क्या चीन वास्तव में Biological Weapons Convention का पालन कर रहा है या नहीं। dual-use ऐसे जैविक शोध हैं जो किए तो स्वास्थ्य या विज्ञान के नाम पर जाते हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल जैविक हथियारों के रूप में भी किया जा सकता है। इसी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बायोटेक्नोलॉजी चीन के आधुनिकीकरण के लक्ष्यों का एक अहम हिस्सा है, चीन की सेना (PLA) से जुड़े मेडिकल संस्थान अब जीन एडिटिंग और बायोटेक्नोलॉजी के अन्य उभरते क्षेत्रों में रिसर्च के प्रमुख केंद्र बन गए हैं।

2016 में चीन ने चाइना ब्रेन प्रोजेक्ट की शुरुआत की जो 2030 तक चलेगा, इसका उद्देश्य दिमाग के काम करने के तरीके और तंत्रिका तंत्र (neural pathways) को बेहतर समझना है। इसमें कई टेक्नोलॉजी पर काम किया जा रहा है, रिपोर्ट में बताया गया है कि PLA अब ऐसे न्यूरोकॉग्निटिव वॉरफेयर विकल्पों पर काम कर रही है, जिनका मकसद दुश्मन के दिमाग को न्यूरोसाइंस और मनोविज्ञान के जरिए प्रभावित करना है, यानी चीन दुश्मन के दिमाग को ही युद्ध का मैदान बनाने पर तुला हुआ है।

CHINA AEROSPACE STUDIES INSTITUTE की CHINA’S MILITARY-CIVIL FUSION STRATEGY रिपोर्ट में बताया गया है कि 2016 में चीन ने 13वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान बायोटेक को एयरोस्पेस, समुद्री, सूचना और परमाणु प्रौद्योगिकी के साथ-साथ एक प्रमुख फोकस क्षेत्र के रूप में राष्ट्रीय रणनीतिक उभरते राष्ट्रीय उद्योगों के लिए विकास योजना में सूचीबद्ध किया गया था। इसके प्रमुख घटकों में synthetic biology, biological breeding, ecological protection, and energy production शामिल है।

चीन-पाकिस्तान का दोहरा खतरा
बेशक के जैविक हथियार कार्यक्रम की लेकर ठोस जानकारी नहीं है लेकिन इतना तय है कि चीन जैविक तकनीकों को एक नई ताकत के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है। अब अगर चीन बायो वॉर की और आगे बढ़ता है तो इसका सबसे बड़ा खतरा भारत को ही हो सकता है, और भारत के लिए खतरा दो तरफा है, भारत के लिए चीन के साथ-साथ पाकिस्तान भी एक संभावित खतरा है और हम ऐसे इसलिए कह रहे हैं कि इस क्षेत्र में चीन-पाकिस्तान के साथ मिलकर काम करने की खबरें आई हैं।
2020 में खोजी पत्रकार एंथनी क्लान ने अपनी ऑस्ट्रेलियाई समाचार वेबसाइट The Klaxon में एक खबर छापी थी, इसमें दावा किया गया कि चीन और पाकिस्तान ने तीन साल का एक गुप्त समझौता किया है, जिसका उद्देश्य bio-warfare capabilities यानी जैव-युद्ध क्षमताओं को बढ़ाना है। इस समझौते के तहत, चीन के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी और पाकिस्तान की डिफेंस साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑर्गनाइजेशन (DESTO) के बीच “उभरती संक्रामक बीमारियों” पर अनुसंधान में सहयोग किया जा सके, हालांकि, पाकिस्तान और चीन दोनों ने इन आरोपों को खारिज किया लेकिन जिस तरह मिसाइल और परमाणु तकनीक में दोनों देशों ने रक्षा सहयोग किया है ऐसे में किसी भी क्षेत्र में साझेदारी की संभावना को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता है।
कितना तैयार है भारत?
कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया को हिला दिया और भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। लेकिन इस संकट ने एक और अहम बात सिखाई है कि जैविक खतरे यानी बायोलॉजिकल थ्रेट्स अब कल्पना नहीं, हकीकत बन चुके हैं। भारत ने इस सबक को सीरियसली लिया है। DRDO, ICMR और NCDC जैसी संस्थाओं ने बायोथ्रेट्स की पहचान और उससे निपटने की अपनी क्षमताओं को बेहतर किया है। तकनीक, टेस्टिंग और रिस्पॉन्स टाइम में भी सुधार हुआ है।
लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू भी है और कई ज़रूरी मोर्चों पर हम अभी भी काफी पीछे हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा फूड प्रोड्यूसर देशों में से एक है लेकिन कृषि से जुड़ी जैविक सुरक्षा अब भी हमारी प्राथमिकता नहीं बन पाई है। सोचिए, अगर कोई जैविक हमला हमारी फसलों पर हो जाए तो इसका असर सिर्फ खेतों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे देश की खाद्य सुरक्षा डगमगा जाएगी। इसके अलावा, देश की सीमाओं पर जैविक निगरानी (बायो-सर्विलांस) अभी भी बिखरी हुई है। संवेदनशील इलाकों में ना तो निगरानी के पुख्ता इंतज़ाम हैं और ना ही कानून का कठोर पालन होता है।
एक और बड़ी कमी है, हमारे स्वास्थ्य और रक्षा विभागों के बीच सहयोग की। एक ही देश के दो अहम हिस्से, लेकिन आपस में खुलकर बात नहीं करते। और निजी बायोटेक्नोलॉजी लैब्स तो इस सिस्टम से पूरी तरह बाहर ही हैं। इसका मतलब ये हुआ कि अगर जैविक खतरा कहीं से उभरे, तो हम सब एक-दूसरे से कटे हुए हैं और इससे खतरे का असर और गंभीर हो सकता है। सबसे बड़ी बात, हमारे पास अब भी कोई स्पष्ट और ठोस नेशनल बायो-सिक्योरिटी फ्रेमवर्क नहीं है। यानी अगर कल कोई जैविक हमला हो, खासकर ऐसा जो फूड सप्लाई या स्वास्थ्य सिस्टम को प्रभावित करे तो हमें जवाब देने में काफी वक्त लग सकता है। और उस वक्त में नुकसान बहुत बड़ा हो सकता है।
अमेरिका के मिशिगन में जैविक एजेंट से जुड़ा एक मामला सामने आया है। हो सकता है वो एक अकेला मामला हो, लेकिन ये दुनिया भर की सरकारों को सतर्क करने के लिए काफी है। भारत के लिए ये एक सीधा संदेश है कि अब जैविक सुरक्षा को अब नीतियों की फाइलों में नहीं, ज़मीनी प्राथमिकताओं में शामिल करना ही होगा। हमें चाहिए कि:
जल्द से जल्द एक राष्ट्रीय जैव सुरक्षा नीति बने और लागू हो
हेल्थ और एग्रीकल्चर दोनों क्षेत्रों के लिए एडवांस जैव खतरा डिटेक्शन सिस्टम तैयार हों
सिविल और मिलिट्री एजेंसियों के बीच सहयोग मजबूत हो
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इंटेलिजेंस शेयरिंग और शुरुआती चेतावनी सिस्टम में भारत की भागीदारी बढ़े
भारतीय बायोटेक उद्योग को सुरक्षा और नैतिकता के सख्त मानकों के साथ बढ़ावा मिले
जैविक खतरे अब सिर्फ किसी साइंस फिक्शन फिल्म का हिस्सा नहीं रहे हैं। ये हमारे दरवाज़े तक आ चुके हैं और ये किसी लैब में बैठे वैज्ञानिक, किसी सरकार या फिर सीमा पार के आतंकी-सरकार के छिपे गठजोड़ से भी आ सकते हैं। भारत इस खतरे को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। हमें अब इंतज़ार नहीं करना चाहिए कि कोई नया संकट हमारे दरवाज़े पर दस्तक दे। जैव युद्ध का खतरा सच्चाई बन चुका है और इसकी तैयारी आज ही हमारी सबसे बड़ी सुरक्षा है।