अहमदाबाद में हुए प्लेन क्रैश ने देश को झकझोर कर रख दिया। इस भयावह दुर्घटना में ढाई सौ से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवा दी। यह एक ऐसी घटना थी जिसने सबको हिला कर रख दिया और एक बार फिर जीवन की नश्वरता और अनिश्चितता की याद दिला दी। जब कोई घटना अचानक और बिना किसी पूर्व सूचना के होती है, तो उसे अकाल मृत्यु कहा जाता है। इस प्रकार की मृत्यु का भय हर व्यक्ति के मन में कभी न कभी घर कर जाता है, और वह सोचने लगता है कि क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे अकाल मृत्यु या दुर्घटनाओं से बचा जा सके?
इन्हीं प्रश्नों को लेकर जब वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज से पूछा गया कि क्या कोई ऐसा आध्यात्मिक उपाय है जिससे हम अकाल मृत्यु या अचानक होने वाली दुर्घटनाओं से बच सकते हैं, तो उन्होंने कुछ अत्यंत सरल, परंतु प्रभावशाली उपाय बताए। ये उपाय न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि मन को भी शांति और स्थिरता प्रदान करते हैं।
प्रेमानंद महाराज ने बताया कि यदि व्यक्ति इन पाँच नियमों का पालन नियमित रूप से करता है, तो वह अकाल मृत्यु से बच सकता है। यदि कभी किसी प्रकार की दुर्घटना होती भी है, तो भी व्यक्ति भगवान की कृपा से सुरक्षित बाहर निकल आता है। आइए जानते हैं वह पाँच विशेष उपाय जो महाराज ने बताए:
1. रोज चरणामृत का सेवन करें
प्रेमानंद महाराज का पहला और अत्यंत महत्वपूर्ण सुझाव यह है कि व्यक्ति को प्रतिदिन अपने ठाकुर जी (इष्टदेव) के चरणामृत का सेवन अवश्य करना चाहिए। चरणामृत का अर्थ होता है – भगवान के चरणों का स्पर्श किया हुआ जल। मंदिरों में ठाकुर जी का अभिषेक किया जाता है, और उस जल को चरणामृत कहा जाता है। महाराज के अनुसार, रोजाना चरणामृत का सेवन करने से न केवल शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि का भी माध्यम है। इससे व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और अकाल मृत्यु टल जाती है।
2. घर से निकलते समय 11 बार इस मंत्र का जाप करें
जब भी आप अपने घर से बाहर किसी भी काम के लिए निकलें, तो प्रेमानंद महाराज द्वारा बताए गए इस विशेष मंत्र का कम से कम 11 बार जाप अवश्य करें:
“ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने प्रणतः क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः।”
महाराज कहते हैं कि इस मंत्र का उच्चारण एक दिव्य कवच की तरह कार्य करता है। यह मंत्र न केवल बाहरी दुर्घटनाओं से सुरक्षा करता है, बल्कि आंतरिक भय को भी समाप्त करता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति भगवान की कृपा का पात्र बनता है और किसी भी दुर्घटना से सुरक्षित बच सकता है।
3. रोजाना करें नाम संकीर्तन
तीसरा उपाय जो प्रेमानंद महाराज ने बताया वह है – नाम संकीर्तन। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को दिन में कम से कम 20 से 30 मिनट निकालकर अपने इष्टदेव के सामने बैठकर भक्ति करनी चाहिए। यह समय मोबाइल, टीवी या किसी भी अन्य कार्य से अलग होना चाहिए। इसमें केवल भगवान का नाम लेना, उनका भजन गाना या ध्यान करना चाहिए। महाराज ने विशेष रूप से “राधा नाम संकीर्तन” का उल्लेख किया, लेकिन यदि किसी को किसी और नाम में श्रद्धा हो, तो वह भी स्वीकार्य है। नाम संकीर्तन से मन की चंचलता समाप्त होती है और जीवन में स्थिरता आती है, जिससे व्यक्ति भय और दुर्घटनाओं से सहज रूप से उबर सकता है।
4. ठाकुर जी के सामने रोज 11 दंडवत प्रणाम करें
प्रेमानंद महाराज ने बताया कि यदि व्यक्ति प्रतिदिन सुबह ठाकुर जी के सामने 11 बार दंडवत प्रणाम करता है, तो यह अभ्यास उसके जीवन में चमत्कारी रूप से परिवर्तन लाता है। दंडवत प्रणाम का अर्थ है – शरीर को पूरी तरह ज़मीन पर टिकाकर पूर्ण समर्पण भाव से भगवान को नमस्कार करना। ऐसा करने से अहंकार का नाश होता है और भक्ति में गहराई आती है। महाराज कहते हैं कि जो भी भक्त कृष्ण को दंडवत प्रणाम करता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह अभ्यास व्यक्ति को आकस्मिक दुर्घटनाओं और अकाल मृत्यु से भी बचाता है।
5. वृंदावन की रज को मस्तक पर लगाएं
पाँचवाँ और अत्यंत दिव्य उपाय जो प्रेमानंद महाराज ने बताया वह है – वृंदावन की रज का प्रयोग। वृंदावन को भगवान श्रीकृष्ण की लीला भूमि कहा जाता है। यहाँ की मिट्टी को अत्यंत पवित्र माना गया है। महाराज ने कहा कि जो भी व्यक्ति वृंदावन आए, वह यहाँ की रज (मिट्टी) को अपने साथ लेकर जाए और प्रतिदिन सुबह चुटकी भर इस रज को अपने मस्तक पर लगाए। यह न केवल आध्यात्मिक रूप से व्यक्ति को बलवान बनाता है, बल्कि मानसिक रूप से भी सकारात्मकता देता है। इससे भय, चिंता और अकाल मृत्यु की भावना का नाश होता है।
निष्कर्ष:
प्रेमानंद महाराज द्वारा बताए गए ये पाँच उपाय आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बेहद मूल्यवान हैं। यह केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि मन और आत्मा को संतुलन में रखने की पद्धति हैं। जब व्यक्ति नियमित रूप से इन नियमों का पालन करता है, तो उसका मन स्थिर होता है, उसका आत्मबल बढ़ता है और वह जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी डगमगाता नहीं।
अकाल मृत्यु और दुर्घटनाओं का भय सभी को सताता है, लेकिन यदि हम भगवान के चरणों में समर्पित होकर श्रद्धा और विश्वास के साथ जीवन जीते हैं, तो वह स्वयं हमारी रक्षा करते हैं।