पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से जुड़ी गतिविधियों की जांच में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने केरल में एक बड़ा खुलासा किया है। एजेंसी को इस प्रतिबंधित संगठन से जुड़ी कई हिट लिस्टें मिली हैं, जिनमें 950 से अधिक लोगों के नाम शामिल हैं। यह जानकारी पलक्कड़ जिले के चार आरोपियों – मुहम्मद बिलाल, रियासुद्दीन, अंसार के.पी. और सहीर के.वी. की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आई। केंद्र सरकार के निर्देश पर मई 2022 में NIA ने PFI के खिलाफ जांच शुरू की थी, जिसमें उस पर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया गया था। बाद में दिसंबर 2022 में आरएसएस नेता श्रीनिवासन की हत्या के भारतीयसरकारमामले को भी इस जांच में जोड़ा गया और दोनों मामलों की जांच एक साथ की गई।
जांच के दौरान NIA ने बताया कि PFI की एक संरचित और खतरनाक कार्यप्रणाली है, जो अलग-अलग शाखाओं के ज़रिए संचालित होती है। इसमें ‘रिपोर्टर विंग’ उन लोगों की पहचान करती है जो संगठन के लिए कथित रूप से खतरा माने जाते हैं, ‘सर्विस विंग’ यानी हिट टीम उन लक्ष्यों को निशाना बनाती है, जबकि ‘फिजिकल एंड आर्म्स ट्रेनिंग विंग’ में युवाओं को हथियार चलाने और हमलों के लिए तैयार किया जाता है। सिराजुद्दीन नामक एक आरोपी से 240 लोगों की हिट लिस्ट बरामद हुई। अलुवा के पेरियार वैली कैंपस में तलाशी के दौरान फरार आरोपी अब्दुल वहाद के पास से पांच अन्य लक्ष्यों की जानकारी मिली, जिसमें एक पूर्व जिला न्यायाधीश का नाम भी था। एक अन्य आरोपी, जिसने बाद में जांच में सहयोग करना स्वीकार किया, उसके पास 232 नामों की एक सूची थी। वहीं, अयूब टी.ए. नामक आरोपी के घर से लगभग 500 नामों की एक और सूची मिली। पेरियार वैली कैंपस को NIA ने आतंकवादी गतिविधियों से जुड़ी संपत्ति घोषित कर दिया है और इसे UAPA (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) के तहत जब्त कर लिया गया है।
इससे जुड़ी एक और बड़ी जानकारी बिहार से मिली, जहां NIA की नई दिल्ली इकाई ने जांच के दौरान आरोपी मुहम्मद जमालुद्दीन के पास से “इंडिया 2047” नामक एक छह पन्नों की दस्तावेजी योजना जब्त की। एजेंसी का दावा है कि यह दस्तावेज भारत में इस्लामी शासन स्थापित करने की योजना को दर्शाता है और इस कथित साजिश को श्रीनिवासन की हत्या से जोड़ा गया है। एजेंसी के पास इस साजिश के पक्ष में ऑडियो रिकॉर्डिंग और गवाहों के बयान भी हैं, जो इस योजना की पुष्टि करते हैं। इन सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, NIA का मानना है कि PFI की गतिविधियां एक गुप्त और खतरनाक नेटवर्क के तहत संचालित होती हैं, जिसका उद्देश्य देश की आंतरिक सुरक्षा को नुकसान पहुंचाना है।
चारों आरोपियों ने इन सभी आरोपों को खारिज करते हुए अदालत से जमानत की मांग की और कहा कि वे तीन वर्षों से अधिक समय से हिरासत में हैं तथा जांच पूरी हो चुकी है। लेकिन अदालत ने सभी प्रस्तुत सबूतों, दस्तावेजों और मामले की गंभीरता को देखते हुए पाया कि आरोपों पर विश्वास करने के लिए पर्याप्त आधार हैं। अदालत ने यह भी नोट किया कि अंतिम आरोप पत्र दाखिल हो चुका है और मुकदमे की सुनवाई शुरू होने के लिए तैयार है। इसलिए, अदालत ने गैरकानूनी गतिविधियों से जुड़ी धाराओं (UAPA) के अंतर्गत उनकी जमानत याचिकाएं खारिज कर दीं।
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) क्या है?
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) की स्थापना वर्ष 2006 में हुई थी और यह संगठन स्वयं को एक सामाजिक-राजनीतिक समूह बताता है, जो विशेष रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यकों के अधिकारों और कल्याण के लिए काम करता है। लेकिन समय के साथ इस पर कई गंभीर आरोप लगे हैं। कई राज्यों और केंद्रीय एजेंसियों ने इसे सांप्रदायिक हिंसा, जबरन वसूली, उग्रवाद और आतंकवाद से जुड़ी गतिविधियों में शामिल पाया है। केंद्र सरकार ने इन आरोपों को आधार बनाते हुए 2022 में PFI पर प्रतिबंध लगा दिया और इसे एक गैरकानूनी और चरमपंथी संगठन घोषित किया। जांच एजेंसियों का मानना है कि यह संगठन एक गुप्त ढांचे में काम करता है, जिसमें लोगों की भर्ती, उन्हें कट्टर विचारधारा से प्रभावित करना, शारीरिक व हथियारों का प्रशिक्षण देना और लक्षित हमलों को अंजाम देना शामिल है। वर्तमान में चल रही जांचों का उद्देश्य इस नेटवर्क की पूरी संरचना और मंसूबों को उजागर कर भारत की सुरक्षा के लिए खतरे को खत्म करना है।