गर्मी अब केवल एक असहज मौसम नहीं रह गया, बल्कि यह एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन गया है। 20 मई 2025 को काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (CEEW) द्वारा जारी की गई रिपोर्ट “भारत पर अत्यधिक गर्मी का प्रभाव: ज़िला स्तर पर गर्मी के जोखिम का मूल्यांकन” ने इस सच्चाई को उजागर किया है कि देश की लगभग 76% आबादी—यानी करीब एक अरब लोग—तेज़ और खतरनाक मौसम की चपेट में हैं। यह रिपोर्ट केवल जलवायु के बदलते स्वरूप की ओर इशारा नहीं करती, बल्कि यह भी बताती है कि गर्मी अब लोगों की सेहत, कामकाज, शिक्षा, और सामान्य जीवन पर गहरा असर डाल रही है। देश के लिए यह चेतावनी मात्र नहीं, बल्कि एक ऐसा संकट है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
किन राज्यों पर सबसे ज्यादा असर?
रिपोर्टस के अनुसार, देश के कुछ प्रमुख राज्य इस अत्यधिक गर्मी से सबसे अधिक प्रभावित होते नज़र आ रहे हैं । इनमें दिल्ली, महाराष्ट्र, गोवा, केरल, गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य शामिल हैं। इन राज्यों में तापमान कई बार 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच जाता है, जिससे जनजीवन बुरी तरह प्रभावित होता है। ये राज्य सिर्फ भौगोलिक दृष्टि से विविध नहीं हैं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक रूप से भी अलग-अलग हैं, गर्मी से जुड़ी बीमारियों जैसे लू, डिहाइड्रेशन और हीट स्ट्रोक के मामलों में तेज़ी से वृद्धि देखने को मिल रही है, साथ ही इन राज्यों में कामकाजी वर्ग और गरीब समुदायों की स्थिति और भी खराब है क्योंकि उनके पास गर्मी से बचने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं ।
रिपोर्ट में क्या बताया गया है?
भारत के प्रत्येक जिले का गहराई से अध्ययन किया है। यह रिपोर्ट सिर्फ तापमान को नहीं देखती, बल्कि यह भी मूल्यांकन करती है कि किसी क्षेत्र के लोग इस बढ़ती गर्मी से कैसे निपटते हैं। क्या वहां ठंडा और स्वच्छ पानी उपलब्ध है? क्या स्वास्थ्य सेवाएं पर्याप्त हैं? क्या लोगों की आर्थिक स्थिति ऐसी है कि वे खुद को सुरक्षित रख सकें? इन सवालों का जवाब सीधे तौर पर यह तय करता है कि कौन-सा इलाका गर्मी के सामने ज्यादा असहाय है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2023 और 2024 में भारत ने ऐतिहासिक रूप से सबसे गर्म वर्षों का सामना किया, और अगर जलवायु परिवर्तन की दिशा नहीं बदली, तो यह स्थिति और गंभीर हो सकती है। इस गर्मी ने केवल शरीर को नहीं, बल्कि लोगों की काम करने की क्षमता, छात्रों की पढ़ाई और दैनिक जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित किया है।
गर्मी बढ़ने के पीछे मुख्य कारण
भारत में गर्मी बढने का सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है । वैश्विक स्तर पर बढ़ते तापमान के प्रभाव से भारत अछूता नहीं है। इसके साथ ही जंगलों की कटाई, अंधाधुंध शहरीकरण और औद्योगिक प्रदूषण ने इस समस्या को और भी भयावह बना दिया है। जैसे-जैसे हरियाली घट रही है, जमीन पर सीमेंट और कंक्रीट की सतहें बढ़ रही हैं, वैसे-वैसे गर्मी का स्तर और उसका असर दोनों गहराते जा रहे हैं। शहरी क्षेत्रों में हवा का प्रवाह सीमित होता जा रहा है, जिससे गर्मी का अनुभव और भी असहनीय बन गया है। ये सभी मिलकर भारत की जलवायु को असामान्य बना रहे हैं ।
शहरी गर्मी और असमान असर
शहरों में गर्मी का असर ग्रामीण इलाकों से कहीं अधिक महसूस किया जाता है, और इसका सबसे बड़ा कारण है “हीट आइलैंड इफेक्ट”। शहरी क्षेत्रों में कंक्रीट की इमारतें, डामर की सड़कें और वाहनों की अधिकता गर्मी को रोककर रखती हैं, जिससे तापमान ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में कई डिग्री तक ज्यादा हो सकता है। यह प्रभाव खासकर रात के समय ज्यादा देखा जाता है, जब शहर ठंडा नहीं हो पाता। इस गर्मी का सबसे बड़ा भार गरीब और कमजोर तबके पर पड़ता है—वे लोग जो झोपड़ियों या टिन की छतों वाले घरों में रहते हैं, जिनके पास पंखा या जानलेवा असर होता है। इस असमानता को समझना और इससे निपटना नीति-निर्माताओं के लिए एक जरूरी जिम्मेदारी है।
समाधान क्या हैं? — रिपोर्ट के सुझाव
इस संकट से निपटने के लिए रिपोर्ट में पाँच प्रमुख सुझाव दिए गए हैं। पहला सुझाव है, हर जिले में हीट एक्शन प्लान तैयार किया जाए, जिसमें अस्पतालों की तैयारियों, जल आपूर्ति और जन-जागरूकता को शामिल किया जाए। दूसरा, शहरों को ठंडा रखने के उपाय किए जाएं, जैसे-छायादार पेड़ लगाना, इमारतों की छतों को सफेद रंग से रंगना (जिससे वे कम गर्म हों), और हरित क्षेत्र बढ़ाना। तीसरा, गरीब बस्तियों और ग्रामीण इलाकों में लोगों को ठंडा और स्वच्छ पीने का पानी सुनिश्चित रूप से उपलब्ध कराया जाए। चौथा, गर्मी के मौसम में स्कूलों और मजदूरों के काम के समय को बदला जाए-ताकि वे दिन की सबसे गर्म अवधि में घर के अंदर रह सकें। और पाँचवां, जन-जागरूकता अभियान चलाए जाएं, जिनमें बताया जाए कि लू से कैसे बचा जाए, क्या पहनें, क्या खाएं और कब डॉक्टर की सलाह लें।
भविष्य के लिए चेतावनी
CEEW की रिपोर्ट हमें एक स्पष्ट चेतावनी देती है: अगर अभी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में गर्मी और भी जानलेवा रूप ले सकती है। जलवायु परिवर्तन की गति अगर धीमी नहीं की गई, तो सबसे अधिक असर उन समुदायों पर पड़ेगा जो पहले से ही आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी रूप से कमजोर हैं। यह समस्या केवल पर्यावरण की नहीं रह जाएगी, यह मानवाधिकार और जीवन की गरिमा से जुड़ा मुद्दा बन जाएगी। हर दिन जब हम इंतजार करते हैं, हम आने वाली पीढ़ियों को एक और अधिक कठिन, असुरक्षित और गर्म भविष्य की ओर धकेलते हैं।
निष्कर्ष
इस रिपोर्ट से साफ हो गया है कि भारत अब एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां गर्मी केवल एक मौसमी समस्या नहीं, बल्कि एक व्यापक सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संकट बन चुकी है। इससे निपटने के लिए अब केवल मौसम विभाग की चेतावनियों से बात नहीं बनेगी, बल्कि नीति-निर्माण, शहरी विकास, सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय को साथ लाकर ठोस और दीर्घकालिक रणनीतियां बनानी होंगी। हमें पर्यावरण की रक्षा, स्थानीय संसाधनों का संरक्षण, और गरीब समुदायों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। तभी हम भारत को एक ऐसा देश बना सकेंगे, जो बढ़ती गर्मी से न केवल सुरक्षित हो, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए जीने योग्य भी हो।