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मुहर्रम के जुलूस में मारे गए अजय यादव M-Y समीकरण के Y हों या न हों, उनकी पहचान हिंदू थी

मुहर्रम के जुलूस में शिया अकीदतमंद पैगम्बर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की कर्बला में हुई शहादत पर शोक जताते हैं, लेकिन बीते कुछ वर्षों से इस जुलूस में मातम कम शक्ति प्रदर्शन ज्यादा नज़र आने लगा है

Sambhrant Mishra द्वारा Sambhrant Mishra
8 July 2025
in राजनीति, समीक्षा
जिस MY यानी मुस्लिम यादव समीकरण के दम पर ये कथित समाजवादी यूपी और बिहार में सालों तक राज करते रहे, उस MY समीकरण में भी उन्हें सिर्फ M ही नजर आया।

जिस MY यानी मुस्लिम यादव समीकरण के दम पर ये कथित समाजवादी यूपी और बिहार में सालों तक राज करते रहे, उस MY समीकरण में भी उन्हें सिर्फ M ही नजर आया।

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अजय यादव का नाम इन दिनों सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है। 32 वर्ष के अजय यादव, न कोई फिल्म स्टार थे, न राजनेता, न अधिकारी और न ही कोई सोशल मीडिया स्टार फिर एक गुमनाम सा आम आदमी अचानक से ट्रेंड क्यों करने लगा? दरअसल अजय यादव एक हिंदू थे और बिहार में मुहर्रम के जुलूस के दौरान मुस्लिम कट्टरपंथियों की भीड़ ने उनकी बेरहमी से हत्या कर दी है। घटना बिहार के मोतिहारी की है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, मेहसी की कोठिया हरेराम पंचायत में शाम को मुहर्रम का जुलूस निकाला जा रहा था। मुहर्रम का ये जुलूस पैग़म्बर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की कर्बला में शहादत की याद के तौर पर निकाला जाता है और इस जुलूस में अकीदतमंद उनकी शहादत पर शोक जताते है लेकिन बीते कुछ वर्षों से इस जुलूस में मातम कम शक्ति प्रदर्शन ज्यादा नज़र आने लगा है।अजय यादव समुदाय विशेष के इसी शक्तिप्रदर्शन का शिकार बन गए।

अजय यादव अपने साथियों के साथ बाज़ार में ताजियों का जुलूस देख रहे थे, तभी जुलूस में शामिल निजामुद्दीन ने अपने साथियों के साथ तलवारें लहराते हुए उन पर हमला बोल दिया। मुस्लिम भीड़ के इस हमले में अजय यादव और दो दूसरे लोग बुरी तरह जख़्मी हो गए उन्हें अस्पताल भी पहुंचाया गया लेकिन अजय यादव को नहीं बचाया जा सका। बिहार में एनडीए की सरकार है और अब अजय यादव के हत्यारों को तलाशने की क़वायद की जा रही है।

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अजय यादव जिस यादव जाति से आते हैं, वो बिहार का सबसे प्रभावशाली ओबीसी वोटबैंक तैयार करती है। इसी वोटबैंक के दम पर लालू यादव, उनके सुपुत्र तेजस्वी यादव अपनी कथित समाजवादी राजनीति चमकाते रहे हैं। लेकिन दुर्भाग्य से जब मुस्लिम भीड़ अजय यादव को तलवारों से काट रही थी (इसे आपसी रंजिश का नाम दिया जा रहा है ) तब उनके नेता, मुस्लिम तुष्टिकरण में जुटे थे। एक तरफ जहां तेजस्वी यादव मंच से शहाबुद्दीन अंसारी ज़िन्दाबाद के नारे लगा रहे थे, तो वहीं पटना में लालू यादव के आवास में मुहर्रम के जुलूस की एंट्री कराई गई, जहां उनकी मां और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और उनकी बेटी ने ताजियों का सजदा किया, लेकिन पूरे लालू परिवार के पास अपनी ही जाति (वोटबैंक) के अजय यादव की हत्या पर कोई पोस्ट करने, या शोक जताने का एक सेकेंड तक नहीं मिला।

जरा सोचिए जिस M-Y यानी मुस्लिम यादव समीकरण के दम पर ये कथित समाजवादी यूपी और बिहार में सालों तक राज करते रहे, उस M-Y समीकरण में भी उन्हें सिर्फ M ही नजर आया। दरअसल उन्हें तो बस M फैक्टर को ही ख़ुश करना है बाकी Y तो उनके घर की खेती है ही। इसीलिए चाहे तेजस्वी हों या लालू, राबड़ी हों या अखिलेश उन्होने अजय यादव की जगह मुस्लिम तुष्टिकरण को चुना, ताजियों की इबादत को तवज्जो दी। क्योंकि Y फ़ैक्टर तो झक मार कर उनके साथ आएगा ही। उसके लिए उनके पास आरक्षण से लेकर ऊंच-नीच, भेदभाव और कई दूसरे लॉलीपॉप लेकर बैठे ही हुए हैं।

इस निर्मम त्याकांड पर जहां M-Y समीकरण वालों कें मुँह सिले हुए हैं, तो वहीं हिंदू संगठन ही हैं जो इस यादव परिवार के लिए इंसाफ की आवाज़ तेज़ कर रहे हैं। ये वही हिंदू संगठन हैं, जिन्हें M-Y समीकरण के माईबाप- लालू, तेजस्वी और अखिलेश यादव गालियां देते नहीं थकते हैं। हालांकि ये संगठन अजय यादव और उनके परिवार के साथ इसलिए खड़े हैं, क्योंकि अपनी जाति और अपने सियासी समीकरणों से आगे अजय यादव हिंदू हैं। उनकी यही पहचान है और हमलावरों ने भी उनकी यही पहचान देखी लेकिन हमें और ख़ुद उनकी कम्युनिटी को अपनी ये पहचान नज़र क्यों नहीं आती? इसीलिए अजय यादव सोशल मीडिया पर ट्रेंड हो रहे हैं।

अब अभी भी अगर आपको लगता है ये कथित समाजवादी नेता, वाक़ई समाजवाद के लिए काम करेंगे या कम से कम अपनी ही जातियों का भला कर देंगे तो आप भयंकर गल़तफहमी का शिकार हैं, क्योंकि चाहे M-Y की बात करने वाली RJD हो या फिर PDA की बात करने वाली समाजवादी पार्टी, जातियां इनके लिए सिर्फ हिंदुत्व का ब्लॉक कमज़ोर करने, उसमें दरार डालने का एक तरीका हैं। जबकि मुस्लिम कम्युनिटी फिक्स डिपॉजिट की तरह एक सॉलिड वोटबैंक हैं। जऐसा सॉलिड वोटबैंक जिसे विकास से ज्यादा तुष्टिकरण के जरिए लुभाया जा सकता है।

और इसीलिए उनके तुष्टिकरण की खातिर इन कथित समाजवादी नेताओं में बकायदा होड़ लगी रहती है कि कहीं समुदाय विशेष को ख़ुश करने में दूसरा नेता आगे न निकल जाए। अब तेजस्वी यादव इतने भी नासमझ तो हैं नहीं कि अपने ही बिरादरी भाई को इंसाफ़ दिलाने के लिए मुस्लिम वोटबैंक को नाराज़ कर दें, वो भी इतने महत्वपूर्ण समय पर, जबकि इसी साल बिहार में चुनाव होने हैं इसीलिए वो ख़ामोश हैं।
इसी साल बिहार गया में भी ऐसा ही कुछ हुआ था, जब यादव समाज की एक बारात पर मुस्लिमों की भीड़ ने लाठी-डंडों और तलवारों से हमला कर दिया था, उस हमले में दूल्हे के पिता की मौत हो गई थी लेकिन तब भी इन M-Y समीकरण वालों के मुँह में दही जमी रही थी।

बात सिर्फ बिहार की हो, ऐसा भी नहीं है। उत्तर प्रदेश में भरत यादव की मथुरा के सबसे भीड़भाड़ वाले चौराहे पर मुस्लिम भीड़ द्वारा लिंचिंग कर दी गई थी। दरअसल, भरत यादव लस्सी बेचते थे, एक बार मुस्लिम समुदाय के कुछ युवक उनके यहां लस्सी पीने पहुंचे और बिल चुकाने को लेकर दोनों के बीच मामूली बहस हुो गई। अचानक क़रीब दर्जन भर मुस्लिम युवक लाठी डंडे लेकर वहां पहुँच गए और भरत यादव को उनकी दुकान से खींच कर इतना पीटा कि उनकी मौत हो गई।

अखिलेश यादव ओबीसी समाज के बड़े नेता हैं, भरत यादव भी उन्हीं की कम्युनिटी से आते थे। टेक्निकली तो इस मामले में अखिलेश यादव को ही सबसे मुखर होना चाहिए था। हमलावरों के ख़िलाफ़ समाजवादी पार्टी को पूरे प्रदेश में प्रदर्शन करने चाहिए थे। लेकिन हुआ क्या? कुछ नहीं। अखिलेश यादव और उनके समाजवादी कुनबे के मुँह से एक शब्द तक नहीं निकला, प्रदर्शन तो दूर की बात है। उस वक्त भी हिंदू संगठन ही भरत यादव के परिवार के साथ खड़े दिखे थे। अजय यादव हों या भरत यादव, ये दोनों तेजस्वी और अखिलेश के MY फॉर्मूले का सबसे अहम हिस्सा थे। ऐसे में सवाल ये है कि जब ये नेता उनके लिए कुछ नहीं बोल सके, तो ये दलितों के लिए, दूसरी जातियों और कमज़ोर वर्ग के दूसरे हिंदुओं के लिए क्या बोलेंगे?

जहां मुस्लिम समाज पार्टी होता है, वहां इन कथित समाजवादियों के मुँह पर अलीगढ़ी ताला लटक जाता है। हाँ, इनका जातिगत स्वाभिमान और प्रेम तब ज़रूर जाग जाता है जब पीड़ित और आरोपी दोनों पक्ष हिंदू समाज से हों। फिर चाहे वो कथावाचक मुकुटमणि यादव का मामला हो, हाथरस का मामला हो या फिर ऐसा ही कोई और दूसरा मामला। ऐसा इसलिए ताकि ये जातियाँ आपस में बंटी रहें और उन्हें वोट देती रहें। यानी बतौर समाज हिंदुस्तान और हिंदुत्व कमज़ोर हो तो हो, मुस्लिम वोटबैंक पर कोई आँच नहीं आनी चाहिए।

लेकिन इनके इस तुष्टिकरण की कीमत कौन चुका रहा है? अजय यादव जैसे लोग। जिनकी पहचान सियासी तौर पर कुछ भी हो, लेकिन समाज के तौर पर हिंदू ही है और निशाना बनाए जाने के लिए इतनी पहचान ही काफी है। मथुरा, मोतिहारी और पहलगाम जैसे उदाहरण ये साबित करने के लिए काफी हैं।

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