बेंगलुरु से एक चौंकाने वाली खबर आई है, कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने अपनी ही पार्टी की सरकार पर आरोप लगाए हैं, जिन्होंने शहर में आवारा कुत्तों के लिए पकाया हुआ भोजन उपलब्ध कराने की अगली योजना शुरू की है। कांग्रेसी नेतृत्व वाली बीबीएमपी ने आठ जोनों में लगभग 600–700 कुत्तों को प्रतिदिन चिकन और अंडा चावल खिलाने के लिए 2.8 करोड़ रुपए का टेंडर निकाला है। इस पहल को शुरू में पशु कल्याण की योजना कहा गया था, लेकिन अब यह राजनीतिक विवाद का मुद्दा बन गया है।
कार्ति चिदंबरम ने इस योजना पर सवाल उठाते हुए कहा है कि यह सार्वजनिक स्वास्थ्य और शहरी सुरक्षा के लिए खतरा है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसके पीछे और भी उद्देश्य हो सकते हैं, क्योंकि कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का राहुल गांधी से काफी नजदीकी रिश्ता रहा है, जबकि कार्ति राहुल की नजरों में संभवतः अच्छे नहीं माने जाते। इसलिए नेताओं का मानना है कि उनकी यह तीखी टिप्पणी एक राजनीतिक संकेत भी हो सकता है।
आवारा कुत्तों के लिए मिड‑डे मील: भारत में पहली बार?
बीबीएमपी की 2.8 करोड़ी योजना में रोजाना मांस (चिकन) आधारित भोजन की व्यवस्था करने का प्रस्ताव है, क्योंकि स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि खराब पोषण के कारण कुत्ते आक्रामक हो रहे हैं। इस योजना के तहत पशु प्रेमी, होटल मालिक, सफाई कर्मी और स्वास्थ्य विभाग मिलकर इसे लागू करेंगे। पशु पालन के विशेष आयुक्त सुरलकर विकास किशोर ने कहा कि कुत्तों की बढ़ी हुई नाराजगी का एक मुख्य कारण पोषण की कमी हो सकती है, और इस उपाय से मानव–कुत्तों के बीच झगड़ों में कमी आएगी।
लेकिन आलोचकों ने इसे शहर की प्राथमिक ज़रूरतों- खड्डों, कचरे की सफाई, और बुनियादी ढांचों की कमी को अनदेखा करने वाली योजना बताया है। कार्ति चिदंबरम ने ट्वीट में लिखा: “कुत्तों का सड़कों पर खाना खाने से काम नहीं चलेगा, उन्हें आश्रय में भेजा जाए, टीकाकरण और नसबंदी की जाए। मुक्त घूमते हुए उन्हें खाना खिलाना स्वास्थ्य और सुरक्षा खतरा है।”
कांग्रेस vs कांग्रेस: पार्टियों में दरार
कार्ति की तीखी टिप्पणियों ने उन्हें सिर्फ बीबीएमपी के खिलाफ ही नहीं, बल्कि सीएम सिद्धारमैया की नीतियों से भी खड़ा कर दिया है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इनमें राहुल गांधी द्वारा चुने गए मुख्यमंत्री की कार्यशैली के खिलाफ भी असंतोष झलकता है।
कुत्ते के काटने की चिंता: बढ़ता हुआ खतरा
इस योजना पर उठ रहे विरोध में एक और गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता भी शामिल हो गई है-कुत्तों के काटने की बढ़ती घटनाएं। साल 2023 में पूरे भारत में 1.8 करोड़ से ज़्यादा लोगों को कुत्तों ने काटा, और ये आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है, खासकर बेंगलुरु, हैदराबाद और मुंबई जैसे बड़े शहरों में, जहां स्कूलों और रिहायशी इलाकों में ये घटनाएं आम हो गई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर बिना नसबंदी और टीकाकरण के सिर्फ खाना खिलाया जाए, तो कुत्तों का व्यवहार और ज़्यादा आक्रामक हो सकता है, जिससे ऐसे मामलों में और तेजी आ सकती है।
शहरी व्यवस्था या दिखावा?
पशु प्रेमी इस योजना को संवेदनशीलता भरा कदम बता रहे हैं, लेकिन करदाता और नागरिक समूह इसे प्राथमिकताओं की ग़लत समझ मान रहे हैं। बीबीएमपी का कहना है कि इससे आक्रामकता पर काबू मिलेगा, लेकिन नसबंदी, टीकाकरण और आश्रय जैसे प्रमुख पहलुओं पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया है।
कुछ लोग इसे पैसों की बर्बादी तक मान रहे हैं, क्योंकि पारदर्शिता और मॉनिटरिंग की कमी से 2.8 करोड़ रुपये कहीं का कहीं खो सकते हैं। एक कन्नड़ न्यूज़ चैनल की बहस में एक श्रोता ने कहा, “कुत्तों को गौर्मेट मील देते हैं, लेकिन खड्डे रोज़ शहरवासियों की जान ले रहे हैं।”
पशु कल्याण या राजनीतिक नाटक?
कर्नाटक सरकार की यह योजना ना केवल कांग्रेस के अंदर विवाद पैदा कर रही है, बल्कि बेंगलुरु के लोगों को भी गुस्सा आ रहा है। कार्ति चिदंबरम द्वारा खुलकर आलोचना करने से यह मामला सिर्फ एक नीति विवाद नहीं, बल्कि सियासी टकराव बन गया है। जबकि पशु कल्याण भावना अच्छी हो सकती है, लेकिन नसबंदी, सुरक्षा और शहरी मूलभूत जरूरतों पर काम न करने के कारण यह योजना दिखावटी लग रही है।
अब लोग पूछ रहे हैं: क्या यह सच में शहर की जरूरत है या सिर्फ अच्छा नज़र आने के लिए बनाया गया टुकड़ा?