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चर्चित आईएएस कोचिंग संस्थान दृष्टि IAS के संस्थापक और मशहूर शिक्षक डॉ. विकास दिव्यकीर्ति एक बार फिर विवादों में हैं। राजस्थान के अजमेर की एक अदालत ने न्यायपालिका और न्यायाधीशों को लेकर की गई कथित अपमानजनक और मानहानिकारक टिप्पणियों के मामले में उनके खिलाफ आपराधिक शिकायत पर संज्ञान लिया है और उन्हें पेश होने के लिए समन भेजा है।
क्या है मामला?
यह मामला डॉ. दिव्यकीर्ति द्वारा न्यायपालिका को लेकर की गई एक विवादित टिप्पणी से जुड़ा है। विवादित वीडियो का शीर्षक ‘IAS vs Judge: कौन ज्यादा ताकतवर?’ है, में डॉ. दिव्यकीर्ति ने कथित तौर पर न्यायिक प्रणाली और उससे जुड़े अधिकारियों पर कुछ टिप्पणियां की थीं। इन्हीं टिप्पणियों को लेकर एक शिकायत दर्ज की गई, जिसमें आरोप लगाया गया है कि उन्होंने न्यायपालिका के प्रति ‘अपमानजनक और व्यंग्यात्मक’ भाषा का इस्तेमाल किया है।
यह आदेश अतिरिक्त सिविल न्यायाधीश एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट मनमोहन चंदेल द्वारा पारित किया गया, जिन्होंने कहा कि डॉ. विकास दिव्यकीर्ति द्वारा वायरल वीडियो में की गई टिप्पणियां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या शैक्षणिक आलोचना के दायरे में नहीं आतीं, बल्कि यह न्यायिक प्रणाली की गरिमा और अधिकार को जानबूझकर ठेस पहुंचाने की एक सुनियोजित कोशिश प्रतीत होती है। अदालत ने अपने आदेश में कहा, “प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि आरोपी ने न्यायपालिका के प्रति अभद्र और अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया, जो एक संपूर्ण संस्थान की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला है।“
कोर्ट ने भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 353(2), 356(2), 356(3), और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66ए(बी) के तहत अपराध की संभावना को स्वीकार करते हुए मामला दर्ज किया है। अदालत ने अजमेर पुलिस को मामले की गहन जांच का आदेश भी दिया है और डॉ. दिव्यकीर्ति को 22 जुलाई को अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश होने को कहा है। यह मामला अधिवक्ता कमलेश मंडोलिया द्वारा दायर एक शिकायत पर आधारित है।
विकास दिव्यकीर्ति ने क्या कहा था?
शिकायतकर्ता का आरोप है कि वीडियो में न्यायाधीशों और न्यायपालिका को लेकर ऐसी टिप्पणियाँ की गईं हैं जो उनकी गरिमा को आघात पहुंचाती हैं। मंडोलिया के अनुसार, वीडियो में विकास दिव्यकीर्ति ने कथित तौर पर कहा था, “जिला जज बनना कोई बड़ी बात नहीं है… वह अकेले ही खाते हैं… हाईकोर्ट का जज बनने के लिए लॉबिंग करनी पड़ती है… मिठाई बांटनी पड़ती है, फिर भी फाइल आगे नहीं बढ़ पाती।”
शिकायतकर्ता मंडोलिया ने दावा किया कि इस वीडियो से ना केवल न्यायाधीशों और वकीलों का अपमान हुआ है बल्कि न्यायिक प्रणाली में जनता के विश्वास को भी कम किया है। शिकायतकर्ता ने कहा कि उन्हें गहरा दुख हुआ है और उन्हें लगता है कि हजारों दर्शकों, विशेषकर आईएएस उम्मीदवारों के सामने न्यायपालिका की गरिमा का गंभीर अपमान किया गया है।
डॉ. विकास दिव्यकीर्ति का क्या है पक्ष?
इस मामले में डॉ. विकास दिव्यकीर्ति ने अपनी सफाई में कहा है कि उनका उस वीडियो से कोई लेना-देना नहीं है और उन्होंने न तो ऐसा कोई वीडियो अधिकृत किया और न ही उस यूट्यूब चैनल से उनका कोई संबंध है जहां यह प्रसारित हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि संभवतः यह वीडियो किसी तीसरे पक्ष द्वारा एडिट कर अपलोड किया गया है। उनकी ओर से यह तर्क भी दिया गया कि वीडियो में कही गई बातें आमजन की रुचि और सार्वजनिक मुद्दों पर सामान्य टिप्पणी के रूप में हैं, न कि किसी विशिष्ट व्यक्ति या समूह पर निशाना साधने के लिए। उन्होंने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में प्रदत्त अधिकार बताया और कहा कि इसे मानहानि नहीं कहा जा सकता।
कोर्ट ने दी कड़ी टिप्पणी
हालांकि, कोर्ट ने डॉ. दिव्यकीर्ति के इन तर्कों को दरकिनार करते हुए कहा कि संबंधित वीडियो व्यापक रूप से प्रसारित हुआ और उसमें की गई टिप्पणियाँ न्यायपालिका का उपहास उड़ाने की श्रेणी में आती हैं। अदालत ने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि हाल के वर्षों में न्यायपालिका के प्रति असम्मान और अपशब्दों का चलन तेजी से बढ़ रहा है। कोर्ट ने कहा, “ऐसी टिप्पणियाँ जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर प्रश्न उठाती हैं, समाज में अविश्वास का वातावरण बनाती हैं। यह सब एक तुच्छ प्रसिद्धि और सोशल मीडिया पर अधिक व्यूज़ पाने के दुर्भावनापूर्ण इरादे से किया जाता है- जैसा कि इस मामले में प्रतीत होता है।”