वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने गुरुवार को कहा कि आतंकवाद को किसी भी धर्म से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने यह बात एनआईए अदालत द्वारा 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में सभी सात आरोपियों को “ठोस और विश्वसनीय” सबूतों के अभाव का हवाला देते हुए बरी करने के कुछ घंटों बाद कही। दिग्विजय सिंह का अचानक धार्मिक सद्भाव को अपनाना न केवल विडंबनापूर्ण है, बल्कि भारतीय जनता की बुद्धिमत्ता का अपमान भी है।
ऐसे नेता, जो एक दशक से भी ज़्यादा समय तक “भगवा आतंक” अभियान का चेहरा रहे, एक ऐसा नैरेटिव जिसने हिंदू धर्म को बदनाम किया और कांग्रेस पार्टी के विभाजनकारी राजनीतिक लक्ष्यों को पूरा किया। अब, जब विशेष एनआईए अदालत ने मालेगांव विस्फोट मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया है, तो क्या दिग्विजय सिंह देश को शांति और अहिंसा का उपदेश देना चाहते हैं? यह पश्चाताप नहीं, बल्कि उनकी हताशा है। वोटों के लिए धर्म को हथियार बनाने की कांग्रेस की कोशिश बुरी तरह उल्टी पड़ गई है। लोग भूले नहीं हैं और कोई भी दिखावटी बयानबाजी वर्षों से लक्षित बदनामी को मिटा नहीं सकती।
मालेगांव विस्फोट मामला: डेढ़ दशक का विवाद
29 सितंबर, 2008 को महाराष्ट्र के सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील शहर मालेगांव में एक शक्तिशाली विस्फोट हुआ। एक मस्जिद के पास हुए इस विस्फोट में छह लोगों की मौत हो गई और 100 से ज़्यादा घायल हो गए। यह मामला जल्द ही भारत में सबसे विवादास्पद आतंकी जांचों में से एक बन गया, जिसने राजनीतिक, धार्मिक और वैचारिक मतभेदों को जन्म दिया।
28 जुलाई, 2025 को, मुंबई की एक विशेष एनआईए अदालत ने पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को “ठोस और विश्वसनीय” सबूतों के अभाव का हवाला देते हुए बरी कर दिया। अदालत ने फैसला सुनाया कि अभियोजन पक्ष आरोपियों की किसी भी प्रत्यक्ष संलिप्तता को निर्णायक रूप से स्थापित करने में विफल रहा। फैसले में प्रक्रियागत खामियों, विरोधाभासी गवाहों के बयानों और अपर्याप्त फोरेंसिक लिंकेज का उल्लेख किया गया।
दिग्विजय सिंह का यू-टर्न: ‘भगवा आतंक’ से धार्मिक सद्भाव की ओर
अदालत के फैसले के तुरंत बाद, वरिष्ठ कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने एक बयान देकर सुर्खियां बटोर लीं। संसद के बाहर बोलते हुए, उन्होंने कहा, “न तो कोई हिंदू आतंकवादी हो सकता है, न ही कोई मुसलमान, सिख या ईसाई। हर धर्म प्रेम, सद्भावना, सत्य और अहिंसा का प्रतीक है।”
यह भावना शायद लोगों के दिलों में घर कर जाती, अगर यह उसी व्यक्ति की ओर से न आती जिस पर “भगवा आतंक” शब्द गढ़ने का आरोप है। वर्षों तक, वे एक ऐसे राजनीतिक अभियान में सबसे आगे रहे, जिसने आतंकवादी कृत्यों को हिंदू राष्ट्रवादी समूहों से जोड़ा, जिसके कारण भारतीय समाज के एक बड़े वर्ग की व्यापक आलोचना हुई और अलगाव हुआ। अब, मालेगांव मामले में दोषियों को बरी किए जाने के बाद दिग्विजय सिंह अपने बयान से पीछे हटते दिख रहे हैं। उन्होंने कहा कि चरमपंथी वे लोग हैं जो नफरत के लिए धर्म को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं, लेकिन उन्होंने इस बात से साफ़ इनकार किया कि कांग्रेस ने कभी “हिंदू आतंक” शब्द गढ़ा था।
राजनीतिक परिणाम: भाजपा का बचाव और कांग्रेस की शर्मिंदगी
दिग्विजय सिंह के बयान के बाद भाजपा ने प्रतिक्रिया देने में ज़रा भी देर नहीं की। पार्टी नेताओं ने इस फैसले की सराहना करते हुए इसे अपने लंबे समय से चले आ रहे इस विश्वास की पुष्टि बताया कि मालेगांव मामला राजनीति से प्रेरित था और इसकी जांच ठीक से नहीं की गई थी। कई लोगों ने सीधे तौर पर कांग्रेस नेतृत्व पर उंगली उठाई और उस पर राजनीतिक लाभ के लिए हिंदू धर्म को बदनाम करने का आरोप लगाया।
‘अचानक आये ज्ञान से नहीं हो सकती नुकसान की भरपाई’
पूर्व भाजपा सांसद और बरी किए गए लोगों में से एक, प्रज्ञा ठाकुर ने नैतिक रूप से उच्च स्थान लेते हुए कहा कि न्याय की जीत हुई है। सोशल मीडिया यूज़र्स ने दिग्विजय सिंह की आलोचना करते हुए X (पहले ट्विटर) पर लिखा, “15 साल तक हिंदुओं को बदनाम करने के बाद, अब धार्मिक शांति पर व्याख्यान आ रहा है? यह अचानक आया ज्ञान नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता।” पोस्ट में आगे कहा गया, “कोई भी हिंदू, मुस्लिम, सिख या ईसाई जन्म से आतंकवादी नहीं होता। यह सच है। लेकिन जब दिग्विजय सिंह जैसे राजनेता पूरे समुदाय पर आतंकवादी होने का ठप्पा लगा देते हैं, तो इससे शांति नहीं, बल्कि विभाजन बढ़ता है।”
जरूर होगी अपील : कमलनाथ
कोर्ट के फैसले के बाद दिग्विजय को अचानक ही सही, लेकिन ज्ञान तो आ गया। इधर, उसी पार्टी के पूर्व सीएम हैं कमलनाथ, उन्हें यह फैसला पच नहीं पा रहा है। वे अपने पुराने राग पर कायम है। 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में सभी 7 आरोपियों को बरी किए जाने पर कमलनाथ ने कहा, “अदालत ने मालेगांव में अपना फैसला सुना दिया है, और इस पर अपील की जा सकती है। और यह अपील ज़रूरी होगी।”
चुनाव में जनता ने दिया था जवाब
मालेगांव विस्फोट मामले ने भारतीय चुनावी राजनीति में भी अहम भूमिका निभाई। 2019 में, प्रज्ञा ठाकुर ने भोपाल लोकसभा सीट से दिग्विजय सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा और 3.6 लाख से ज़्यादा वोटों के अंतर से जीत हासिल की। प्रज्ञा की जीत ने एक स्पष्ट संदेश दिया: जनता ने उस कहानी को स्वीकार नहीं किया, जिसमें उन्हें आरोपी बताया गया था। मौजूदा फैसला जनका की इस भावना को और मज़बूत करता है। अदालत द्वारा यूएपीए के आरोपों को खारिज करना और अभियोजन पक्ष के प्रमुख दावों को खारिज करना, जिसमें विस्फोट में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल और प्रज्ञा ठाकुर के बीच संबंध शामिल हैं, राष्ट्रीय चेतना को झकझोर देने वाले इस मामले में विश्वसनीय आधार की कमी को रेखांकित करता है।
ज़िम्मेदारी किसकी है?
मालेगांव मुकदमे ने उजागर कर दिया है कि कैसे राजनीतिक कहानी, जब राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों पर आरोपित किए जाते हैं, न्याय को पटरी से उतार सकते हैं, समाज को विभाजित कर सकते हैं और प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति पहुंचा सकते हैं। दिग्विजय सिंह की नवीनतम टिप्पणी, भले ही नेक लगती हो, लेकिन वर्षों से चली आ रही दिखावटी राजनीति के सामने बेमानी साबित हो जाती है। कांग्रेस पार्टी, जो कभी सार्वजनिक चर्चा में “हिंदू आतंकवाद” शब्द का इस्तेमाल करती थी, अब इस यू-टर्न को समझाने में संघर्ष कर रही है। कई लोग सोच रहे हैं कि क्या चुनावी नुकसान का एहसास या न्यायिक दोषमुक्ति का भार आखिरकार उसके नेताओं को समझ आ गया है।
कैसे मिटेंगे राजनीतिक और सामाजिक घाव?
फैसले के बाद दिग्विजय सिंह की टिप्पणी सुधार की बजाय ध्यान भटकाने वाली लगती है। अगर किसी भी धर्म को आतंकवाद से नहीं जोड़ा जा सकता, तो वे खुद और कांग्रेस ने ऐसी कहानियों को वर्षों तक फलने-फूलने क्यों दिया? मालेगांव मामले में बरी होने के बाद भले ही आरोपियों को कानूनी तौर पर बरी कर दिया गया हो, लेकिन पीछे छूटे सामाजिक और राजनीतिक घाव सिर्फ़ दार्शनिक बातों से कहीं ज़्यादा की मांग करते हैं। भारत को इस मामले को ख़त्म करने का हक़ है और इसमें उन लोगों से ईमानदारी से हिसाब-किताब भी शामिल है, जिन्होंने आस्था को एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। क्षमा याचना तो अब देर से ही सही, लेकिन वास्तविक जवाबदेही के बिना, जो क्षति हुई है वह राष्ट्र की सामूहिक स्मृति में अंकित रहेगी।
रामभद्राचार्य ने दी कड़ी प्रतिक्रिया
मालेगांव विस्फोट में अदालत से फैसला आने के बाद जगद्गुरु स्वामी रामभद्रार्चा ने इस पर खुशी जताई है। कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए अपने एक्स एकाउंट से पोस्ट किया। उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा है “कांग्रेस का काला चिट्ठा जनता के सामने आ गया है। भगवाधारियों को सताने कांग्रेस ने ये षड्यंत्र रचा था। सातों बेकसूरों को कांग्रेस पे मानहानि का दावा करना चाहिए।”
जानें, बीएल संतोष ने क्या कहा
कोर्ट से फैसला आने के बाद भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष ने भी एक्स पर पोस्ट कर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने लिखा है “हिन्दू आतंक या भगवा आतंक न था, न है, न कभी होगा।” उन्होंने काफी कम लेकिन सधे शब्दों में अपनी प्रतिक्रिया ही है।