22 अप्रैल को पहलगाम में हुए बर्बर आतंकी हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की जान गई। इस घटना के सिर्फ तीन दिन बाद ही भारत ने पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन The Resistance Front (TRF) के खिलाफ कूटनीतिक और खुफिया स्तर पर बड़ा अभियान शुरू कर दिया। 25 अप्रैल को भारत ने अमेरिका को TRF की भूमिका से जुड़ी ठोस जानकारी सौंपी, जिसमें इस संगठन के नेताओं, लश्कर-ए-तैयबा से संबंध और बीते हमलों का जिक्र था।
भारत ने अंतरराष्ट्रीय समर्थन का इंतजार नहीं किया, बल्कि खुद ही आक्रामक और समय पर कार्रवाई की। इसका नतीजा ये निकला कि 18 जुलाई को, यानी हमले के तीन महीने से भी कम समय में, अमेरिका ने TRF को ‘Foreign Terrorist Organization (FTO)’ और ‘Specially Designated Global Terrorist (SDGT)’ घोषित कर दिया। ये सिर्फ कूटनीतिक जीत नहीं थी, बल्कि पाकिस्तान की उस रणनीति को भी बेनकाब कर दिया, जिसमें वह आतंकी संगठनों को नए नामों में छुपाकर इस्तेमाल करता रहा है।
भारत की रणनीति: तेज़, सटीक और आंकड़ों पर आधारित
भारत की यह मुहिम न सिर्फ तेज़ थी, बल्कि बहुत ही सुनियोजित और तथ्यों पर आधारित थी। 25 अप्रैल को भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और यहां तक कि चीन के प्रतिनिधियों को TRF की भूमिका पर जानकारी दी। ये मीटिंग्स G20 की कूटनीतिक बैठकों के तहत हुई थीं, जिनमें बताया गया कि TRF असल में लश्कर-ए-तैयबा का ही नया रूप है।
अप्रैल और मई के दौरान भारत ने अमेरिका और बाकी देशों के साथ लगातार संपर्क बनाए रखा। इसमें TRF के ऑपरेशनल प्रमुख शेख सज्जाद गुल की पहचान और 2024-25 में हुए हमलों की जिम्मेदारी TRF द्वारा लेने की बात प्रमुख थी।
भारत ने सात प्रतिनिधिमंडलों को भेजकर 33 देशों की राजधानियों में TRF और पाकिस्तान के बीच रिश्तों के सबूत पेश किए। हर मुलाकात में भारत ने यह साफ किया कि पाकिस्तान आतंक के खिलाफ लड़ाई का नाटक कर रहा है, लेकिन अंदर ही अंदर इन संगठनों को पनाह दे रहा है।
अमेरिका की घोषणा: पाकिस्तान की सफाई फेल
18 जुलाई को अमेरिका ने TRF को आतंकी संगठन घोषित कर दिया, और ये बात साफ तौर पर मानी कि यह फैसला भारत की तरफ से दिए गए सबूतों के आधार पर लिया गया है। अमेरिका ने TRF के पहलगाम हमले में शामिल होने की पुष्टि भी की। इससे भारत की बात को वैश्विक मान्यता मिली और पाकिस्तान की TRF को बचाने की कोशिशों को झटका लगा।
भारत ने यह भी उजागर किया कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने UN सुरक्षा परिषद के एक बयान से TRF का नाम हटवाया था, जबकि TRF ने खुद हमले की जिम्मेदारी ली थी। ऐसे में अमेरिका की कार्रवाई ने पाकिस्तान की दोहरी चाल को दुनिया के सामने ला दिया।
UNSC में मुश्किल: चीन और पाकिस्तान रोक रहे रास्ता
हालांकि अमेरिका का समर्थन भारत के लिए बड़ी जीत है, लेकिन अगला बड़ा कदम TRF को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की 1267 आतंकी सूची में शामिल करवाना है। ये काम आसान नहीं है, क्योंकि पाकिस्तान अभी UNSC का गैर-स्थायी सदस्य है (दिसंबर 2026 तक) और वो इस प्रक्रिया को धीमा या बाधित कर सकता है।
साथ ही, चीन की भूमिका भी चिंता का विषय है। चीन पहले भी भारत के प्रस्तावों को तकनीकी कारणों का हवाला देकर रोकता रहा है, जैसे मसूद अजहर और हाफिज सईद के मामले में। चीन “ज्यादा सबूत” और “परामर्श की जरूरत” जैसे बहाने बनाकर पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा रहता है।
अभी जंग बाकी है, लेकिन भारत को मिला अंतरराष्ट्रीय समर्थन
भारत की यह त्वरित और सुनियोजित मुहिम एक आदर्श उदाहरण है कि आतंकवाद से निपटने के लिए कूटनीति और खुफिया जानकारी कैसे मिलकर काम कर सकती है। 72 घंटों में वैश्विक स्तर पर ब्रीफिंग देना और तीन महीने में अमेरिका से आतंकी संगठन घोषित करवा लेना एक बड़ी उपलब्धि है।
हालांकि TRF को संयुक्त राष्ट्र से भी आतंकी घोषित करवाना अभी बाकी है, लेकिन अमेरिका की घोषणा ने भारत को एक सशक्त वैश्विक समर्थन दिलाया है। अब भारत के पास अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूती से TRF और पाकिस्तान के खिलाफ बात रखने का आधार है। अगर भारत इसी तरह दबाव बनाए रखता है, तो एक दिन UNSC भी TRF की सच्चाई को नजरअंदाज नहीं कर पाएगा। क्योंकि आतंकवाद को किसी भी हाल में कूटनीतिक सुरक्षा नहीं मिलनी चाहिए।