पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार को भाजपा शासित राज्यों में बांग्ला भाषी लोगों के कथित उत्पीड़न पर चिंता व्यक्त की और भाजपा को चुनौती दी कि वह साबित करे कि वे रोहिंग्या हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी और पार्टी के अन्य नेताओं के साथ “बंगाली प्रवासी मज़दूरों” को रोहिंग्या बताकर हिरासत में लेने और बांग्लादेश भेजने के विरोध में कोलकाता की सड़कों पर उतरीं।
बीजेपी पर लगाया धांधली का आरोप
मुख्यमंत्री ने कहा, “मैं आपको चुनौती देती हूं कि आप साबित करें कि बांग्ला भाषी लोग रोहिंग्या हैं।” उन्होंने भाजपा पर तीखा हमला करते हुए उस पर महाराष्ट्र और दिल्ली में “मतदाता सूची से नाम हटाकर” चुनावों में धांधली करने का आरोप लगाया। टीएमसी नेता ने कहा, “भाजपा ने महाराष्ट्र में मतदाता सूची से नाम हटाकर जीत हासिल की, अब वह बिहार में भी यही कर रही है। भाजपा की बंगाल की मतदाता सूची से नाम हटाने की योजना है, हम उनसे इंच-इंच लड़ेंगे।”
अलग-अलग राज्यों में काम करते हैं बंगाल के 22 मजदूर
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दावा किया है कि बंगाल के 22 लाख प्रवासी मज़दूर विभिन्न राज्यों में काम करते हैं और उनके पास वैध पहचान पत्र हैं। उन्होंने कहा कि हाल ही में, दिल्ली और महाराष्ट्र सहित देश के विभिन्न हिस्सों में बंगाली प्रवासी मज़दूरों को हिरासत में लिए जाने और फिर बांग्लादेश भेजे जाने की कई खबरें आई हैं। मुख्यमंत्री बनर्जी ने दोपहर लगभग 1:45 बजे कॉलेज स्क्वायर से विरोध मार्च का नेतृत्व किया और धर्मतला में डोरीना क्रॉसिंग की ओर बढ़ीं। व्यवस्था बनाए रखने के लिए 3 किलोमीटर लंबे मार्ग पर लगभग 1,500 पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था। विरोध मार्च के कारण शहर में बैरिकेड्स और डायवर्जन के कारण यातायात भी बाधित हुआ।
चुनाव आयोग पहुंचे शुभेंदु अधिकारी
टीएमसी के विरोध प्रदर्शन के बीच, बंगाल के नेता प्रतिपक्ष और भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी मतदाता सूची से “रोहिंग्या” के नाम हटाने की मांग को लेकर चुनाव आयोग कार्यालय पहुंचे। चुनाव आयोग कार्यालय में उनके साथ 50 से ज़्यादा भाजपा विधायक भी शामिल हुए। गौरतलब है कि यह विरोध प्रदर्शन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज्य दौरे से एक दिन पहले आयोजित किया गया था। इस विरोध प्रदर्शन में हज़ारों तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ता और समर्थक शामिल हुए। पश्चिम बंगाल के विभिन्न ज़िला मुख्यालयों में भी इसी तरह की रैलियां हुईं।
जानकारी हो कि पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय बचा है। ऐसे में तृणमूल कांग्रेस क्षेत्रीय पहचान पर केंद्रित अपने अभियान को तेज़ कर रही है। पार्टी ने हाल की घटनाओं-जैसे ओडिशा में प्रवासी मज़दूरों को हिरासत में लेना, दिल्ली में बेदखली अभियान और असम के कूचबिहार में एक किसान को विदेशी न्यायाधिकरण के नोटिस को बढ़ते भाषाई भेदभाव का सबूत बताया