प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सप्ताह के अंत में एक अहम और उच्चस्तरीय दौरे पर ब्रिटेन रवाना होने वाले हैं। इस दौरे को लेकर भारत सरकार ने अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट कर दी हैं। इस यात्रा के दौरान भारत दो सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों को प्रमुखता से उठाने वाला है जिनमें पहला है ब्रिटेन में वर्षों से शरण लिए बैठे आर्थिक भगोड़ों का प्रत्यर्पण और दूसरा वहां फल-फूल रही खालिस्तानी कट्टरपंथ की गतिविधियों पर सख्त कार्रवाई की मांग है।
इन दोनों संवेदनशील मुद्दों के अलावा, भारत और ब्रिटेन के बीच इस दौरे में व्यापार, रणनीतिक सहयोग, जलवायु परिवर्तन, रक्षा और आंतरिक सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में संबंधों को नई दिशा और मजबूती देने की कोशिश की जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा को दोनों देशों के रिश्तों में एक नई राजनीतिक ऊर्जा और निर्णायक मोड़ लाने वाली पहल के तौर पर देखा जा रहा है।
आर्थिक भगोड़ों की वापसी पर होगा जोर
भारत सरकार इस दौरे के दौरान ब्रिटेन से विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे हाई-प्रोफाइल आर्थिक अपराधियों के प्रत्यर्पण में हो रही लगातार देरी का मुद्दा सख्ती से उठाएगी। ये दोनों भगोड़े अरबों रुपये के बैंक घोटालों के आरोप में वांछित हैं और सालों से ब्रिटेन में रहकर वहां की अदालतों में भारत प्रत्यर्पण के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
भारत इस बात को लेकर गंभीर है कि इस तरह की कानूनी प्रक्रिया की लंबी खींचतान न्याय की गति को प्रभावित करती है और भगोड़ों को बच निकलने का अवसर देती है। इसीलिए, भारत सरकार ब्रिटिश अधिकारियों से कानूनी सहयोग को मजबूत करने, प्रक्रियाओं को सरल बनाने और पारस्परिक सहायता समझौतों को प्रभावी बनाने की दिशा में ठोस पहल की मांग करेगी, ताकि ऐसे मामलों में तेजी लाकर अपराधियों को न्याय के कटघरे तक पहुंचाया जा सके।
खालिस्तानी गतिविधियों पर कड़ा संदेश
प्रधानमंत्री मोदी के ब्रिटेन दौरे का एक और अहम और संवेदनशील मुद्दा होगा- खालिस्तानी अलगाववादियों की गतिविधियों पर रोक लगाने की कड़ी मांग। भारत सरकार ने हाल के वर्षों में लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग के बाहर हुए हिंसक प्रदर्शन, तोड़फोड़ की घटनाएं और सोशल मीडिया के ज़रिए चलाए जा रहे भारत विरोधी अभियान को लेकर गंभीर चिंता जताई है। ये घटनाएं न सिर्फ भारत की संप्रभुता को चुनौती देती हैं, बल्कि भारत-ब्रिटेन राजनयिक संबंधों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
भारतीय एजेंसियों का कहना है कि ब्रिटेन में मौजूद कुछ संगठन खुलेआम खालिस्तान समर्थक गतिविधियों को फंडिंग, लॉजिस्टिक सपोर्ट और सार्वजनिक मंच उपलब्ध करवा रहे हैं, जिससे भारत की आंतरिक सुरक्षा को खतरा पैदा हो रहा है। ब्रिटेन सरकार ने हाल ही में ऐसे कई संदिग्ध खातों को फ्रीज किया है और कुछ संगठनों की जांच भी शुरू की है, जो भारत के दबाव का एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है।
इस दौरे में भारत ब्रिटिश नेतृत्व से खालिस्तानी नेटवर्क पर कड़ी निगरानी, गुप्तचर सूचनाओं के साझा आदान-प्रदान, कट्टरपंथी तत्वों पर कानूनी कार्रवाई और भारतीय मिशनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की ठोस मांग करेगा। भारत यह स्पष्ट करना चाहता है कि ऐसी गतिविधियों को नजरअंदाज करना न केवल द्विपक्षीय रिश्तों के लिए नुकसानदायक है बल्कि वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ साझा लड़ाई को भी कमजोर करता है।
व्यापार और रणनीतिक साझेदारी को मिलेगा नया बल
हालांकि सुरक्षा चिंताएं प्रमुख हैं, लेकिन यह दौरा भारत-ब्रिटेन के रणनीतिक और आर्थिक रिश्तों को नई दिशा देने का भी एक बड़ा अवसर है। दोनों देश फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) को लेकर लंबे समय से बातचीत कर रहे हैं। पीएम मोदी की यात्रा से इसमें राजनीतिक गति आने की उम्मीद है।
भारत की व्यापारिक प्राथमिकताएं होंगी:
वस्त्र, ऑटोमोबाइल और शराब जैसे उत्पादों पर टैरिफ घटाना
भारतीय पेशेवरों के लिए वीजा नियमों में ढील
तकनीकी साझेदारी और नवाचार को बढ़ावा
भारतीय सेवा क्षेत्र की ब्रिटेन में बेहतर पहुंच
साथ ही, दोनों देश ग्रीन एनर्जी, जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा, और समुद्री रक्षा जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ाने पर चर्चा करेंगे।
कूटनीतिक महत्व
यह दौरा उस समय हो रहा है जब दोनों देश वैश्विक भू-राजनीतिक बदलावों को ध्यान में रखते हुए अपनी विदेश नीतियों को फिर से परिभाषित कर रहे हैं। भारत के लिए यह एक मौका है कि वह ब्रिटेन से संवेदनशील मुद्दों पर जवाबदेही मांगे, वहीं साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और आर्थिक साझेदारी को भी मजबूत किया जाए। ब्रिटेन के लिए भारत इंडो-पैसिफिक में एक अहम साझेदार और ब्रेक्जिट के बाद एक बड़ा बाजार बना हुआ है।
पीएम नरेंद्र मोदी का यह ब्रिटेन दौरा कूटनीतिक तौर पर बेहद अहम और प्रतीकात्मक रूप से भी खास माना जा रहा है। भारत यह स्पष्ट संदेश देना चाहता है कि राजनयिक रिश्ते तभी आगे बढ़ सकते हैं जब उनमें पारस्परिक सम्मान, कानून का पालन और सुरक्षा को प्राथमिकता मिले। साथ ही, व्यापार, जलवायु और वैश्विक सहयोग जैसे मुद्दों पर नई शुरुआत से दोनों देश अपने रिश्तों को एक प्रगतिशील और व्यावहारिक दिशा देने की ओर बढ़ रहे हैं।