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देशहित में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ‘योगदान’ को नापने का ‘पैमाना’ क्या है?

पिछले लगभग 100 वर्ष से संघ के स्वयंसेवक हर परिस्थिति में अपने पारिवारिक कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हुए समाज, देश और धर्म की सेवा में निस्वार्थ भाव से लगे हुए हैं, क्या इस बात को नकारा जा सकता है ?

Dr. Mahender द्वारा Dr. Mahender
1 July 2025
in मत
देशहित में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ‘योगदान’ को नापने का ‘पैमाना’ क्या है?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

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इस बार दिल्ली प्रवास के दौरान एक मित्र ने पूछा कि देश हित में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ‘योगदान’ को नापने का पैमाना क्या है? अपनी समझ अनुसार उत्तर देने का प्रयास किया । मित्र ने और भी कईं बातें कीं, सुझाव भी दिए । लेकिन, जब मैंने पूछा कि आप संघ के साथ जुड़कर काम क्यों न करते तो भाईसाहब इधर-उधर देखने लगे और कन्नी काटने लगे !

उस मित्र से भेंट के बाद मुझे लगा कि इस प्रश्न का उत्तर बहुत सरल शब्दों में और सरल उदाहरणों के साथ देना बहुत जरूरी है । यही प्रयास इस आलेख में किया जा रहा है । मित्र की बातों से लगा कि वह जानकारी के आभाव में बहुत पहले से ही संघ को कुचलने के प्रयास करने वाले राजनीतिक दल/ दलों के प्रोपैगैंडा से प्रभावित है । जहाँ तक राजनीतिक दलों की बात है तो वे अपनी ‘रोटियां’ सेकने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं और संघ उनके लिए हमेशा से ‘सॉफ्ट टारगेट’ रहा है । लेकिन दिल्ली जैसी जगह में रहने वाले उच्च शिक्षा प्राप्त लोग जो देश, धर्म, संस्कृति के बारे में बात करते हैं या जिनका चिन्तन और जीवन इनके अगल बगल घूमता है, उनका संघ के प्रति ऐसा जानकारी का आभाव आश्चर्यजनक है । इसके बाद मन में सहज ही एक प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि क्या उन्हें ‘व्यक्ति निर्माण’ से ‘देश निर्माण’ का अर्थ पता नहीं होगा ?  क्या उन्हें देश के विकास में या हित में व्यक्ति निर्माण के माध्यम से संघ के ‘योगदान’ के बारे में कोई जानकारी नहीं होगी ?

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वास्तव में, संघ के स्वयंसेवक इस ‘योगदान’ शब्द को नकार देते हैं, उनके लिए यह ‘दायित्व’ या ‘कर्त्तव्य’ या ‘धर्म’ होता है । कदाचित संघ की परिधि से बाहर रहने वाले लोगों का तराजू एक पक्ष की झुका हुआ होता है । वैसे यहाँ यह लिखना आवश्यक है कि संघ आलोचना से परे नहीं है, लेकिन जानकारी के आभाव में या ज्यादा अपेक्षा के कारण संघ की आलोचना कम और बुराई ज्यादा होती है। राजनीतिक दल तो अपने-अपने योगदान को रोज रटते रहते हैं, लेकिन पिछले लगभग 100 वर्ष से संघ के स्वयंसेवक हर परिस्थिति में अपने पारिवारिक कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हुए समाज, देश और धर्म की सेवा में निस्वार्थ भाव से लगे हुए हैं, क्या इस बात को नकारा जा सकता है ?

आखिर ‘संघ’ है क्या ? ध्यान से देखेंगे या विचार करेंगे तो पायेंगे कि संघ उन लोगों का एक संगठन है जिसमें किसान भी है और वैज्ञानिक भी, जिसमें सब्जी बेचने वाला भी है और डॉक्टर भी, जिसमें रिक्शा चलाने वाला भी और हवाई जहाज चलाने वाला भी, जिसमें विद्यार्थी भी है और पढ़ाने वाला शिक्षक भी, जिसमें मोची का काम करने वाला भी है और कम्पनी का मालिक भी, जिसमें नाई और दर्जी का काम करने वाला भी है और इंजीनियर भी, दुकानदार भी है और बिल्डर भी । कुल मिलाकर समाज के हर वर्ग का व्यक्ति अपने-अपने स्तर पर, अपने-अपने सामर्थ्यनुसार संघ की योजना से बिना किसी स्वार्थ और लोभ लालच के देशहित में सतत काम कर रहा है । संघ का स्वयंसेवक अपना समय देता है, अपना पैसा लगाता है, अपना काम धंधा बंद करके या उसकी वैकल्पिक व्यवस्था करके आवश्यकतानुसार समाज हित के काम में जुटा रहता है । क्या देश के विकास में संघ या उसके स्वयंसेवकों के ‘योगदान’ को मापने का कोई पैमाना है? क्या ऐसी कोई विशेष पद्धति या तन्त्र है ?

नौकरी करने वाले लोग अपनी ट्रांसफर रुकवाने या सेटल करने के लिए किस तरह के प्रयास करते हैं, यह सब जानते हैं । जिस नौकरी से लोगों को पैसा मिलता है उसके लिए घर से दूर जाने में लोगों को बहुत कष्ट होने लगता है । लोग नेताओं के चक्कर काटते हैं, दुनिया भर के जुगाड़ करते हैं । लेकिन, दूसरी तरफ संघ के स्वयंसेवक विशेषकर ‘प्रचारक’ हैं, जो अपना घर परिवार छोड़कर हर क्षण केवल और केवल राष्ट्र सेवा में लगे हुए हैं । इनके लिए समाज ही अपना एक बड़ा परिवार है । संघ के प्रचारकों के इस योगदान को कोई कैसे नापेगा? संघ की अधिकांश शाखाएं सुबह लगती हैं और सब जानते हैं कि सुबह-सुबह नींद से उठना थोडा कठिन होता है, लेकिन संघ की शाखा का ‘गटनायक’ पहले स्वयं उठता है फिर लोगों के घर जाकर दूसरे लोगों को उठाता है, कई बार मुंह पर दरवाजा भी बंद होता है, बार-बार आवाज लगाने पर घर के भीतर सोया हुआ व्यक्ति सुनते हुए भी नहीं सुनता है। कई बार लोग अभद्रता भी कर देते हैं । विचार करिये दूसरे लोगों को सुबह-सुबह घर जाकर उठाने से उस ‘गटनायक’ को क्या मिलेगा? वह अकेला भी मैदान में जाकर व्यायाम कर सकता है, बहुत से लोग ऐसा करते भी हैं । लेकिन,  संघ का स्वयंसेवक अपने बंधुभाव के कारण दूसरों को जगाता है । वह चाहता है कि समाज के बंधुओं का स्वास्थ्य ठीक रहे, सब लोग मिलकर रहें, सब मिलकर काम करें, इसलिए वह सबको जोड़ने के लिए ऐसा करता है । सबके साथ शुद्ध सात्विक प्रेम के साथ व्यवहार करता है । भले ही यह बहुत छोटी बात है लेकिन, व्यक्ति निर्माण से समाज निर्माण की भावना से संघ की शाखा के ‘गटनायक’ के इस ‘योगदान’ को कोई कैसे नापेगा? फिर शाखा में गणशिक्षक बिना कुछ लिए बहुत कुछ सिखाता है, उस गणशिक्षक के योगदान को कोई कैसे नापेगा ? संघ के अलग अलग स्तर के प्रशिक्षण वर्ग होते हैं जिनमें संघ के कार्यकर्ता कई दिनों के लिए अपने खर्चे पर और अपने घर परिवार, काम-धंधे छोड़कर, नौकरी पेशे से छुट्टी लेकर जाते हैं, वहाँ पर प्रशिक्षण लेने आये लोगों को सिखाते हैं । जो कुछ भी वहाँ सिखाया जाता है उसके मूल में एक ही भावना होती है और वह भावना है हम सब भारत माता के पुत्र हैं, हम सब भाई हैं और समाज हित तथा देश हित सर्वोपरि है । संघ के स्वयंसेवकों के इस भाव को कोई कैसे नापेगा?

आज समाज की ये वृत्ति है कि कुछ भी करने से पहले यह प्रश्न आता है कि ‘हमें क्या मिलेगा’ या ‘हमें क्या लाभ होगा’? अगर लाभ नहीं होगा तो हम ये काम क्यों करें ? दूसरी ओर संघ के स्वयंसेवकों को यह पता होता है कि उन्हें कोई लाभ नहीं होगा, उन्हें कुछ नहीं मिलेगा, बल्कि कोई प्रशंसा भी नहीं करेगा, उन्हें अपनी चमड़ी और अपनी दमड़ी लगाकर ही सब करना है । इसके बाबजूद संघ के स्वयंसेवक हर परिस्थिति में सबसे पहले खड़े होते हैं । संघ के स्वयंसेवकों के इस भाव को कोई कैसे नापेगा?

देश में आने वाली आपदाओं के समय जो संघ के स्वयंसेवक तुरंत राहत कार्य में लग जाते हैं उनके भी घर परिवार होते हैं, व्यवसाय होते हैं, नौकरी धंधे होते हैं, लेकिन वे समक्ष आई उस परिस्थिति में अपना सब कुछ छोड़कर बिना किसी सरकारी आदेश या आमन्त्रण या निमंत्रण के राहत कार्य में लग जाते हैं । उन्हें कोई प्रशस्ति पत्र नहीं मिलता है, उनके लिए कोई सम्मान समारोह भी नहीं होता है । एक काम से छूटते ही वे दूसरे काम में लग जाते जाते हैं । समाज और देश हित में संघ के स्वयंसेवकों के इस समर्पण को कोई कैसे नापेगा?   

महाराष्ट्र या मध्य प्रदेश का कार्यकर्ता (प्रचारक) अपना सब कुछ छोड़कर सुदूर पूर्वोत्तर भारत के असम, मणिपुर और त्रिपुरा जैसे राज्यों में केवल इसी भाव से काम कर रहा है कि वहाँ पर रहने वाले लोग भी हमारे अपने बंधू हैं और इसी भाव से हिमाचल का कार्यकर्ता दिल्ली में, दिल्ली का कार्यकर्ता हिमाचल में काम कर रहा है । देश के सभी राज्यों में संघ का काम ऐसे ही चलता है । समय के साथ स्थान परिवर्तन भी होता है तो प्रचारक अपना झोला उठाकर तुरंत अपने नए स्थान की ओर चल पड़ता है। संघ के प्रचारक सुख सुविधाओं के आभाव में रहकर ‘सत्वोराजसिक’ गुणों के साथ सतत काम करते रहते हैं। संघ के प्रचारकों के इस ‘कर्मयोगी’ भाव को कोई कैसे नापेगा?  

एक तरफ राजनीतिक दल, एनजीओ गिरोह और भारत के शत्रु भारतीय समाज में विभाजन की दरार को बढ़ाने का कुकृत्य करते जा रहे हैं, वहीं संघ बिना किसी भेदभाव के समाज के हर वर्ग को जोड़ने का काम कर रहा है । संघ के स्वयंसेवक अपने पारिवारिक और पेशेवर दायित्वों का निर्वहन करते हुए स्वयंप्रेरणा से अपने सामाजिक दायित्व का पालन करते हुए देश भर में लाखों सेवा कार्य या प्रकल्प बिना किसी सरकारी अनुदान या योजना के चला रहे हैं । संघ के स्वयंसेवकों के इस सेवा भाव को कोई कैसे मापेगा?

एक नागरिक को अच्छा नागरिक बनाना, देशभक्त नागरिक बनाना क्या देश के विकास में इससे बड़ा और कोई योगदान हो सकता है ? संघ स्थापना के समय से ही इसके स्वयंसेवक समाज जीवन के जिस भी क्षेत्र में गए वहाँ उन्होंने अच्छे और देशभक्त नागरिक बनकर ही काम किया है, यही संघ और उसके स्वयंसेवकों का ट्रैक रिकॉर्ड है। संघ ने अपनी शाखा के माध्यम से देश के लोगों में ‘सामूहिक अनुशासन’ और संगठित होकर काम करने का जो बीजारोपण किया है, क्या उसे कोई नकार सकता है ? देशभर में संघ के कितने कार्यक्रम होते हैं, क्या कभी किसी ने सुना है कि वहाँ कोई हुडदंग हुआ, कोई भागदौड़ हुई? क्या आम आदमी को समाज और देश सेवा के लिए अनुशासित करने की पद्धति विकसित करके कार्यान्वित करना ‘योगदान’ नहीं कहलाता ? आखिर भारत विरोधी आसुरी शक्तियों के निशाने पर केवल संघ ही क्यों रहता है? क्या इसका कारण यह नहीं है कि संघ भारत माता को परम वैभव तक पहुँचाने का लक्ष्य लेकर देश के कोने कोने में हर क्षण काम कर रहा है?

अंत में, व्यक्ति, समाज और देश के उन्नयन में संघ और उसके स्वयंसेवकों के कार्य, योगदान, समर्पण और त्याग को मापने के लिए ‘संघमय’ होना आवश्यक है, नहीं तो भारत के लोग जाने-अनजाने में केवल देश विरोधी शक्तियों के ट्रैप में फंसकर उनकी उँगलियों पर नाचते रहेंगे और ‘क्या योगदान है ! क्या योगदान है !’ इसके लिए व्यर्थ में ही बुद्धि के व्यायाम करते रहेंगे ।

नारायणायेती समर्पयामि ……

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