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क्या कश्मीरी पंडितों को मिलेगा न्याय? तीन दशक बाद जम्मू-कश्मीर एसआईए ने खोला नर्स सरला भट की 1990 की हत्या का मामला

कश्मीरी पंडितों के लिए न्याय की संभावना बढ़ी

Mansi Singh द्वारा Mansi Singh
12 August 2025
in क्राइम
क्या कश्मीरी पंडितों को मिलेगा न्याय? तीन दशक बाद जम्मू-कश्मीर एसआईए ने खोला नर्स सरला भट की 1990 की हत्या का मामला

क्या कश्मीरी पंडितों को मिलेगा न्याय? तीन दशक बाद जम्मू-कश्मीर एसआईए ने खोला नर्स सरला भट की 1990 की हत्या का मामला

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तीन दशकों से अधिक समय बाद, जम्मू-कश्मीर की राज्य जांच एजेंसी (SIA) ने 27 वर्षीय नर्स सरला भट की हत्या के मामले में नई जान फूंक दी है। यह मामला 1990 में कश्मीरी पंडितों के खिलाफ हुई हिंसा का एक दर्दनाक उदाहरण माना जाता है। अब इसे फिर से जांच के दायरे में लाया गया है ताकि अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाया जा सके। इस कदम का मतलब है कि चाहे जितना भी समय बीत जाए, सरकार आतंकवाद के शिकार लोगों को न्याय दिलाने के लिए हमेशा तैयार है।

एक ऐसा अपराध जिसने घाटी को हिला कर रख दिया

सरला  भट अनंतनाग की रहने वाली थीं और श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (SKIMS) में नर्स के रूप में काम करती थीं। अप्रैल 1990 में, जब कश्मीर घाटी आतंकवाद की चपेट में थी, कश्मीरी पंडितों को आतंकवादी खुलकर धमकियां दे रहे थे कि या तो वे अपना घर छोड़ दें या गंभीर परिणाम भुगतें। कई परिवार भाग गए, लेकिन सरला ने अस्पताल में अपने काम और घर को छोड़ने से इनकार कर दिया।

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18 अप्रैल 1990 की रात, उनकी इस हिम्मत की कीमत उनकी जान के रूप में चुकानी पड़ी। जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) से जुड़े आतंकवादियों ने उन्हें उनके हॉस्टल से अगवा कर लिया। अगले दिन उनकी गोलियों से भरी लाश सूरत के उमर कॉलोनी में मिली, जहां उनके पास एक हाथ से लिखा नोट भी था, जिसमें उन्हें पुलिस सूचक बताकर उनके कत्ल को सही ठहराने की कोशिश की गई।

उनकी हत्या ने चिकित्सा क्षेत्र को हिला कर रख दिया, जो पहले ही डर और दहशत में था। कश्मीरी पंडित समुदाय के लिए यह एक और काला दिन था, जो घाटी से उनकी जबरदस्ती निकासी का प्रतीक बन गया।

हिम्मत दिखाने पर बना निशाना

जांचकर्ताओं का मानना है कि सरला ने धमकियों के बावजूद नौकरी और घर छोड़ने से इनकार किया था, जिससे वह आतंकवादियों की नजर में आ गईं। वह कश्मीरी पंडितों की जुझारूपन का प्रतीक थीं, जिन्होंने घाटी छोड़ने की बजाय डटे रहने का फैसला किया।

एक वरिष्ठ जांच अधिकारी ने बताया, “सरला ने खुले तौर पर JKLF की धमकियों की परवाह नहीं की और अपने कर्तव्य और घर से हटने से मना कर दिया। यही उनकी हत्या का कारण बना।”

उनकी मौत के बाद भी डर का माहौल बना रहा। आतंकवादियों के समर्थक परिवार को सार्वजनिक अंतिम संस्कार करने से मना कर रहे थे। डर के साये में अंतिम संस्कार बेहद शांतिपूर्वक किया गया।

डर की वजह से ठंडी पड़ी जांच

अप्रैल 1990 में निगीन थाने में एफआईआर तो दर्ज हुई, लेकिन कोई ठोस जांच नहीं हो पाई। गवाह डर के मारे सामने नहीं आए और पुलिस भी आतंकवाद से जुड़े मामलों की ठीक से जांच नहीं कर सकी।

यह अकेला मामला नहीं था। उस दौर में कश्मीरी पंडितों पर कई हमले हुए, जिनमें से ज़्यादातर मामलों में सच्चाई सामने नहीं आ सकी। इन घटनाओं में न्याय न मिलने से कश्मीरी पंडित समुदाय में काफी गुस्सा और मायूसी रही।

SIA की जांच: न्याय की नई पहल

पिछले साल, उच्च अधिकारियों के आदेश पर यह केस स्थानीय पुलिस से हटाकर जम्मू-कश्मीर की प्रमुख आतंकवाद विरोधी एजेंसी SIA को सौंपा गया। यह कदम उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के निर्देशों का हिस्सा था, जिसमें 1990 के दशक के पुराने अनसुलझे मामलों को फिर से जांचने का आदेश था।

मंगलवार को, SIA ने श्रीनगर के आठ स्थानों पर छापेमारी की। अधिकारियों ने कहा कि हत्या से जुड़ा अहम सबूत मिला है, हालांकि उन्होंने अधिक जानकारी साझा नहीं की। सूत्रों के अनुसार यह सबूत जांच में अहम मोड़ साबित हो सकते हैं, जिससे हत्या के पीछे की साजिश और दोषियों की पहचान संभव हो सकेगी।

एक अधिकारी ने कहा, यह सिर्फ दिखावे के लिए नहीं है। संदेश साफ है कि समय चाहे कितना भी बीत जाए, आतंक के शिकार लोगों के लिए न्याय का पीछा किया जाएगा।”

एक केस से बढ़कर एक संदेश

कश्मीरी पंडितों के लिए सरला का केस दोबारा खोलना सिर्फ एक हत्या की बात नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि सरकार अब अपने पुराने गलत फैसलों का सामना कर रही है, दोषियों को सजा देना चाहती है और पीड़ितों के दर्द को समझ रही है।

यह केस यह भी बताता है कि आतंकवाद से जुड़े पुराने मामलों को याद रखना और दोबारा जांचना क्यों जरूरी है। 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों पर हुए हमलों ने पूरे कश्मीर का माहौल बदल दिया था। इन मामलों की दोबारा जांच सिर्फ पुरानी बातों को याद करना नहीं है, बल्कि कानून और इंसाफ को फिर से मजबूत करना है।

भविष्य के लिए न्याय का संदेश

SIA की इस कोशिश से यह साबित होगा कि भले ही न्याय देर से मिले, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि न्याय नहीं मिलेगा। यह उन कश्मीरी पंडितों के दर्द और बलिदान को पहचान देने जैसा है, जिन्हें मजबूरी में अपना घर छोड़ना पड़ा था, जो भारत के इतिहास का एक बहुत दुखद हिस्सा है।

अगर इस जांच से कुछ लोगों की गिरफ्तारी और सजा होती है, तो यह सिर्फ कानून की जीत नहीं होगी, बल्कि यह एक नैतिक जीत भी होगी। इससे यह साबित होगा कि सरकार अपने लोगों को कभी नहीं भूलती, चाहे जितना भी समय बीत जाए। जैसा कि एक अधिकारी ने कहा, “इससे यह संदेश जाता है कि समय कितना भी बीते, आतंक के शिकार लोगों को न्याय जरूर मिलेगा।”

Tags: 1990 Kashmir KillingInvestigationJusticeKashmirKashmiri PanditSarla Bhat
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